सदियोïं से भारतीय समाज पुरुष प्रधान रहा है। आज भी अधिकतर परिवारोंï मेंï बेटी के बजाय बेटे को वरीयता दी जाती है। धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओïं के लिहाज से भी पुत्र को ही पारिवारिक संपत्ति का उत्तराधिकारी माना जाता है। एक पुत्र ही अपने पूर्वजोïं का अंतिम संस्कार कर सकता है। यही नहींï उसे ही अपने वृद्ध अभिभावकोïं का एकमात्र सहारा समझा जाता है। लेकिन, अब स्थितियां बदल चुकी हैï। आज बेटे की ही तर्ज पर बेटियां भी न सिर्फ शिक्षित हैï, बल्कि सफल भी हैï। अधिकतर मामलोïं मेंï समाज के प्रत्येक तबके की बेटियां न सिर्फ अच्छा कमा रही हैïं, बल्कि वह एक बेटे की ही तरह अपने अभिभावकोïं की देखभाल करने को भी तैयार हैंï। यही वजह है कि कई बेटियोïं ने तो अपने पारिवारिक व्यवसाय को पूरी तरह से संभाल लिया है और इसके साथ ही वह परिवार की भी देखभाल कर रही हैïं। इसे देखते हुए यह कहा जा सकता है कि अब भारतीय लड़कियोïं को ‘इंडिया शाइनिंग वूमैनÓ के तौर पर देखना होगा। भारत की चमक बढ़ाती ये महिलाएं जीवन के हर क्षेत्र मेïं पुरुषोïं को कड़ी टक्कर दे रही हैïं।
हर तरफ जलवा ही जलवा
यकीन नहीïं आता तो गौर करेï कि देश के पांच राज्योïं की मुख्यमंत्री महिलाएं हैï। आर्थिक क्षेत्र मेंï चंदा कोचर, ललिता गुप्ते, नैना लाल किदवई और तमाम अन्य अपनी प्रतिभा के झंडे गाड़ चुकी हैंï। निफ्ट की डायरेक्टर जनरल गौरी कुमार अपने किस्म का देश मेंï पहला डिजायन शो मार्च मेंï आयोजित करने जा रही हंैï। इस आयोजन से भारतीय फैशन अंतरराष्टï्रीय परिदृश्य पर जोरदार दस्तक देगा। आशा है कि इसके बलबूते आने वाले समय मेïं भारत सिर्फ फैशन क्षेत्र से ही 6 बिलियन डॉलर सालाना आय अर्जित करने मेंï सक्षम होगा। गौरी की ही तरह दर्जनोïं अन्य महिलाएं प्रशासन, राजस्व, पुलिस, रेलवे, सूचना प्रौद्योगिकी और विदेश सेवा मेïं अपना नाम रौशन किए हुए हैï।
मनोरंजन-कला क्षेत्र मेंï धूम
मनोरंजन और कला क्षेत्र से जुड़ी महिलाएं अंतरराष्टï्रीय परिदृश्य पर अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज कराने मेंï सफल हुई हैï। पूर्व मिस वल्र्ड ऐश्वर्य राय न सिर्फ टाइम पत्रिका के कवर पर आने वाली पहली भारतीय अभिनेत्री बनने मेंï सफल रही हैï तो लता मंगेशकर और आशा भोंसले सरीखी गायिकाएं अपनी आवाज के जादू से दुनिया को मदहोश करने मेïं सफल रही हैïं। पूजा भट्ट अपने निर्देशन मेïं बनी पहली फिल्म पाप का पाकिस्तान मेïं प्रीमियर करने वाली पहली भारतीय निर्देशक बन कर उभरी हैïं।
विदेश नीति निर्धारण मेंï प्रभावी भूमिका
हालिया रिपोर्ट बताती हैï कि आने वाले वर्षों मेïं महिलाएं भारत की विदेश नीति निर्धारण मेंï प्रभावी भूमिकाएं निभाएंगी। कारण, विदेश मंत्रालय के कनाडा-अमेरिका विभाग का नेतृत्व सुजाता मेहता कर रही हैïं। वॉशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास मेïं रेनू पॉल को अधिकृत प्रवक्ता पद पर नियुक्त किया गया है। विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता रही निरुपमा राव को अब अमेरिका के पश्चिमी क्षेत्र की काउंसिल जनरल नियुक्त किया गया है। उनके क्षेत्र मेïं जगप्रसिद्ध सिलिकॉन वेली भी आती है। कनाडा मेंï भारतीय उच्चायोग का नेतृत्व शशि त्रिपाठी को सौïंपा गया है तो पावर्ती सेन को ओटावा मेंï भारतीय वाणिज्यदूत नियुक्त किया गया है। जाहिर है विदेश सेवा से जुड़े महत्वपूर्ण पदोï पर महिलाओïं की नियुक्त कर भारत सरकार आशा करती है कि इससे संपूर्ण विश्व मेïं शांति और सद्भावना का संदेश जाएगा।
औद्योगिक घरानोïं की भी कमान
अगर इससे भी आप प्रभावित नहींï होते हंैï तो जरा इस पर गौर फरमाएं। मुंबई के एस. पी. जैन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेïंट एंड रिसर्च ने देश के 110 औद्योगिक घराने की बेटियोंï और पुत्रवधुओïं के रूप मेंï 30 महिलाओïं को प्रशिक्षण दिया है। मकसद, ताकि वे पारिवारिक उद्योग मेंï बतौर निर्देशक अपनी जिम्मेदारी निभा सकेï। यानी पारिवारिक व्यवसाय से भी पुरुष प्रधानता समाप्त हो रही है। इसकी पुष्टिï इस तथ्य से भी होती है कि महिला उद्यमियोïं की संख्या के मामले मेंï भारत विश्व मेंï दूसरे नंबर पर आता है। पार्ले समूह की शौना चौहान, काइनेटिक इंजीनियरिंग की प्रबंध निर्देशक सुलज्जा फिरोदिया मोटवानी, थर्मेक्स की अध्यक्ष अनु आगा और बालाजी टेलीफिल्म्ïस की एकता कपूर तो सिर्फ चंद नाम भर हंैï।
मुखर होती आवाज़
हर क्षेत्र मेïं अपना परचम लहराती महिलाएं अब अपनी आवाज मुखर करने मेंï भी पीछे नहीïं हैंï। उनका मानना है कि अब जब भारतीय महिलाएं अंतरराष्टï्रीय स्तर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने मेंï सक्षम हैï तो वह घर परिवार मेïं भी शांति और समृद्धि लाने का बुद्धि कौशल रखती हैï। महिलाओंï को पारिवारिक व्यवसाय संभालने लायक जिम्मेदारी का प्रशिक्षण देने वाली सीमा महाजन के मुताबिक ‘भारतीय समाज को अब यह स्वीकार करना ही पड़ेगा कि लड़कियां भी पारिवारिक गौरव बढ़ाने मेंï न सिर्फ सक्षम हैï, बल्कि अभिभावकोïं के वृद्ध होने पर वे उनकी देखभाल भी कर सकती हैंï।
जहाँ तक सवाल रीति रिवाजोïं और अंतिम संस्कार का है तो ऐसा कहींï भी नहींï लिखा है कि सिर्फ पुत्र ही उन्हेïं अंजाम दे सकता है। अगर ऐसा रिवाज कहीïं है भी तो इन्हेï बनाया तो पुरुषोंï ने ही होगा। इस रिवाज का वास्तविक धर्म से कोई लेना देना नहीï है। फिर समय के साथ साथ रीति रिवाजोंï मेï बदलाव भी आना चाहिए। आज एक लड़की भी इन सभी धार्मिक, सामाजिक रीति रिवाजोïं का निर्वहन कर सकती है। इसका एक सशक्त उदाहरण कुछ वर्ष पूर्व मल्लिका साराभाई ने भी प्रस्तुत किया था, जब उन्होïंने अपने पिता को मुखाग्नि दी थी। उनका विरोध न तो परिवार वालोïं ने किया और न ही समाज ने।Ó
भारतीय संविधान ने भले ही जीवन के हर क्षेत्र मेï महिलाओïं को बराबरी के अधिकार दिए हैïं, लेकिन यह अलग बात है कि बराबरी के इस अधिकार के लिए कानून बनने की गति बहुत धीमी है। इसे देखते हुए महिलाओंï ने अपने पूर्वाग्रहोंï को भुलाते हुए स्वयं अपने स्तर पर एक दूसरे के उत्थान का बीड़ा उठाया है। नतीजतन आज वे एक मजबूत शक्ति का स्रोत बन कर उभरी हैं, जो भारतीय समाज के महिलाओंï के प्रति रवैये मेंï बदलाव लाने की दिशा मेïं प्रयासरत हैïं।
– विमला पाटिल