आकशवाणी पर प्रस्तुत नाटकों में एक नाम अक्सर सुनाई देता है रईस हसन। नाटक के क्षेत्र में यह नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। श्री रईस हसन ने सन्ï 1964-65 से अभिनय एवं निर्देशन के क्षेत्र में क़दम रखा। वो बताते हैं कि जब उनकी उम्र लगभग 14-15 की थी तभी से वे इस विधा से जुड़े हैं। तब लेकर आज तक निरन्तर वे इस क्षेत्र में सक्रिय हैं।
फिल्म अभिनेता रजा मुराद हसन साहब के बहुत करीबी दोस्त हैं। वो बताते हैं कि अक्सर वे बाम्बे जाया करते थे। और मुराद साहब के घर में रूका करते थे। मुराद साहब इनके बड़े बाबा के दोस्त होने के नाते अक्सर इनके घर पर आया करते थे। और इस प्रकार प्रारम्भ से ही फिल्मों की बातें घर सुनीं और फिल्मकारों को देखा तो उससे इस क्षेत्र की ओर आकर्षण पैदा हुआ।
रंगमंच में सन्ï 1970 के बाद एक गंभीरता आई थी। जब कारन्त साहब ने मध्यप्रदेश कला परिषद के माध्यम से रंग शिविर का आयोजन करके यहां के स्थानीय कलाकारों को प्रशिक्षित करके उन्हें गम्भीर थियेटर से जोडऩे की कोशिशि की। भाऊ साहब खिलवड़कर जो सूचना प्रकाशन विभाग में पीआरओ थे। उन्होंने एक अन्तर्राज्यी नाटक प्रतियोगिता का आयोजन किया था। जिसमें श्री रईस हसन को मध्यप्रदेश से सर्वश्रेष्ठï अभिनेता का पुरस्कार मिला। उनको डॉ. शंकर शेष के नाटक ‘फंदीÓ में उनके अभिनय के लिए पुरस्कृत किया गया था। गुजरात में आयोजित अन्र्तदेशीय नाटक प्रतियोगिता में उनके नाटक फंदी ने मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व किया। वहां पर 19 राज्यों के नाटकों का मंचन किया गया था। जिसमें हसन साहब को सर्वश्रेष्ठï अभिनय के लिए द्वितीय पुरस्कार प्रदान किया गया था। उनके द्वारा अभिनीत नाटक फंदी के 30 शो हुए और उनके अभिनय से प्रभावित होकर डॉ. शंकर शेष ने उनकी बहुत प्रशंसा की।
उन्होंने लगभग 15-20 नाटकों में अभिनय किया उसके पश्चात्ï वे निर्देशन के क्षेत्र में सक्रिय हो गये। निर्देशक के रूप में उन्होंने लगभग 15-20 साल तक थियेटर को बहुत गम्भीरता पूर्वक चलाया। उस दौरान रंगमंच की दुनियां में उनका एकछत्र राज्य था। राजीव वर्मा, रजा मुराद, रूमी जाफरी, जावेद जेैदी, आभा, गंगा मिश्रा, विभा मिश्रा एवं रंगमण्डल के अनेकों कलाकार उनके साथ जुड़े हुए थे। ये तमाम कलाकार आज भी विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय हैं। कुछ उनमें से मुम्बई में कार्यरत हैं। एक $जमाने में अलखनंदन और आलोपी वर्मा भी इनसे जुड़े थे। आज भी यह सभी लोग देश में काफी नाम कमा रहे हैं।
उनसे यह पूछने पर की आपने रंग मंच को ही अपना जीविकोपार्जन का साधन क्यों नहीं बनाया तो उन्होंने कहा कि कुछ पारिवरिक कारणों से मैं नौकरी नहीं छोड़ सकता था। श्री रईस हसन लगभग पांच-छै सौ रेडियो नाटक रिकार्ड करवा चुके हैं। इसमें उन्होंने अतिथि कलाकार के रूप में काम किया है। श्री हसन ने रेडियो के लिए कई नाटक भी लिखे हैं। आकाशवाणी के जब पचास वर्ष पूरे हुए तो एक नाटक विशेषरूप से रिकार्ड किया गया जिसमें श्री रईस हसन के साथ राजीव वर्मा, रीटा भादुड़ी आदि ने भाग लिया।
श्री रईस हसन ने भोपाल दूरदर्शन के लिए एक टेलीफिल्म जिसको ज्ञान रंजन ने लिखा था ‘फेंस के इधर और उधरÓ को निर्देशित किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम से सम्बंधित भोपाल के इतिहास पर फिल्म ‘अनुगूंजÓ का निर्माण किया। उनकी यह फिल्म जावेद अख्तर साहब ने विशेष रूप से उनके घर आकर देखी।
ईटीवी उर्दू चैनल के लिए 1घंटा 50 मिनट की टेली फिल्म जिसमें वीरेंद्र सिंह, स्वाति परमार आदि कलाकारों ने काम किया था। इस फिल्म की कहानी, स्क्रीन प्ले, संवाद, और निर्देशन सभी हसन साहब ने किया। उनसे यह पूछने पर कि चैनलों की ओर उन्होंने रूख क्यों नहीं किया- उन्होंने बताया कि नौकरी के कारण उसके लिये समय ही नहीं निकाल पाया।
फिल्मों में श्याम बैनेगल, सत्यजीत रे, या वे अन्य निर्देशक जो कला सिनेमा के क्षेत्र में गम्भीरता से काम कर रहे हैं उनसे वे काफी प्रभावित रहे हैं। गंभीरता पूर्वक बनाई गई अच्छे विषयों की फिल्में उनको पसंद हैँ।
वर्तमान में टीवी चैनलों पर दिखाए जा रहे टीवी सीरियलों के संबंध में श्री हसन का कहना है कि यह सीरियल अधिकांशत: व्यवसायिक दृष्टिïकोण से बनाये जा रहे हैं। जिसमें अक्सर देखने में आता है कि रीएक्शन्स के अधिक शॉट होते हैं।
भविष्य की योजना के संबंध में वे बताते हैं कि नौकरी से रिटार्यमेंट के बाद वे अपना पूरा समय इस क्षेत्र में लगायेंगे। उनको मध्यप्रदेश फिल्म जर्नलिस्ट एसोसिएशन द्वारा ‘फिल्म सौरभ सम्मानÓ से सम्मानित किया जा चुका है।
नए कलाकारों से वे कहते हैं कि बहुत जल्दी परिणामों के लिए लोग लालायित रहते हैं जबकि उनको परफेक्ट होने में काफी समय होता है फिर भी वो बहुत जल्दी हीरो बनने और निर्देशक बनने का सपना पाल लेते हैं। आजकल लोग इस क्षेत्र में पैसा कमाने की नियत से काम कर रहे हैं, किन्तु उनका ऐसा मानना है कि इससे नये कलाकारों को कोई ज्यादा लाभ नहीं मिल पायेगा।
स्मिता पाटिल, शबाना आजमी, तब्बू, दिलीप कुमार, नसरूद्दीन शाह आदि कलाकार उन्हें बहुत प्रभावित करते हैं। उनका मानना है कि भोपाल में बनायी जाने वाली फिल्मों में स्थानीय कलाकारों का शोषण किया जा रहा है उन्हें कम से कम पारितोषिक देकर ज्यादा से ज्यादा काम लिया जाता है। ये यहां के कलाकारों के भविष्य के लिए अच्छा नहीं है।
शंकर शेष का ‘एक और द्रोणाचार्य’, सुरेंद्र वर्मा का ‘सूर्य की पहली किरण से, सूर्य की अन्तिम किरण तकÓ विजय तेंदुलकर का ‘अंजीÓ आदि अनेक नाटक उन्होंने किये हैं उनके पसंदीदा नाटकों में ‘अंजीÓ बहुत हिट गया। रईस हसन निर्देशन एवं रेडियो नाटक के क्षेत्र की एक जानी-मानी हस्ती हैं, परंतु समयाभाव के कारण वह अपनी रचनात्मकता का पूरा उपयोग नहीं कर पा रहे हैं। – रईसा मलिक