शासकीय सेवा में रहते हुए साहित्य के क्षेत्र में उपलब्धियां प्राप्त करना बहुत ही मुश्किल काम होता है, परंतु कुछ बिरले लोग होते हैं जो हर क्षेत्र में अपनी एक अमिट छाप छोड़ते हैं। म.प्र. उर्दू अकादमी के सचिव के रूप में कार्यरत सुश्री नुसरत मेहदी उर्दू शायरी में अपना एक मुकाम रखती हैं। उनके द्वारा रचित एवं पठित काव्यों में गहराई झलकती है एवं उनके द्वारा लिखी गई गजलें, नज़्में एवं गीत सुन कर उनकी साहित्यिक गहराई को समझा जा सकता है।
नुसरत मेहदी ने नगीना जिला बिजनौर (उ.प्र.) के डीएवी स्कूल से 12 उत्तीर्ण की, हिन्दी साहित्य अंग्र्रेजी और इतिहास विषयों के साथ मेरठ विश्वविद्यालय से स्नातक तथा बरकत उल्ला विश्वविद्यालय भोपाल से अंग्रेजी साहित्य में एमए और फिर बीएड किया। गजलें लिखने का सिलसिला उन्होंने 10वीं कक्षा से ही शुरू कर दिया था। लेकिन सन्ï 1984 से उनके लेखन में परिपक्वता आई। नुसरत मेहदी को घर से ही साहित्यिक माहौल मिला। उनकी दादी बहुत अच्छी शायरा थीं। उनकी दो बड़ी बहनें शमीम जहरा रजा, और डॉ. मुनीर जहरा भी अच्छी लेखिकाएं हैं, जिनकी कई किताबें भी प्रकाशित हो चुकी हैं।
भोपाल के बहुत ही मकबूल और मशहूर शायर मरहूम अख्तर सईद खान साहब की सदारत में आयोजित मुशायरे में उन्होंने पहली बार अपना कलाम पढ़ा जो कि टी.एम. कॉन्वेंट स्कूल में ईटीवी द्वारा आयोजित किया गया था। वह कहती हैं कि शायर या किसी भी साहित्यकार को आसपास का वातावरण अपनी ओर खींचता ही है। मैं अपनी रचनाओं में हमेशा सच ही बयान करने की कोशिश करती हूँ। उनकी कोशिश यही होती है कि झूठ बात अपनी गजलों में न कहें। उनकी मेन थीम सच है और हर तरह का सच, रिश्तों का सच। नारी की भावनाओं को वह अपने लेखन के माध्यम से सामने लाने का प्रयास करती हैं।
गजल इंटरनेशनल, इनकॉम (लखनऊ), सारिका, मनाशिरी के अतिरिक्त देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में उनकी कहानियों का प्रकाशन भी होता रहा है। वह रेडियो और टीवी पर स्क्रिप्ट लेखन का कार्य भी कर चुकी हैं। नुसरत मेहदी शहरयार की गजलों और उनकी अदब की बहुत बड़ी प्रशंसक हैँ और वर्तमान दौर के फज़ल ताबिश साहब, अख्तर सईद खां साहब और इशरत क़ादरी साहब उनके पसंदीदा शोअरा हैं। वह सन 1984 से रेडियो, टी.वी. के कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से भाग लेती रहीं हैं।
उनके द्वारा लिखी शायरी, कहानियां, ड्रामा स्क्रिप्ट एवं आलेख हिन्दी, उर्दू एवं अंग्रेजी के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। उर्दू अकादमी का सचिव का पदभार संभालने के बाद से ही उन्होंने उर्दू अकादमी में अनेकों साहित्यिक आयोजनों में सक्रिय भूमिका अदा की है। उर्दू और उर्दू वालों के हित संवर्धन कार्य करने में उनकी रूचि है। – रईसा मलिक
नुसरत मेहदी की गज़लें
कुछ बात तो है अपनी हर बात से वाबस्ता।
रिश्ता है कोई गुजऱे लम्हात से वाबस्ता॥
भीगी हुई आंखों से जाहिर तो ये होता है।
हैं अशक मुहब्बत की सौगात से वाबस्ता॥
अब जीस्त की दुनियां का हर तार ये कहता है।
है सोजे जिगर दिल के नगमात से वाबस्ता।
इस शहर के पेड़ों में साया ही नहीं मिलता॥
बस धूप रही मेरे हालात से वाबस्ता॥
मजबूत मकानों में मजरूह तहफ्फ़़ुज है।
असबाब हैं अब सारे खतरात से वाबस्ता।
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मौज ने रेत पे साहिल की लिखा शर्मिंदा।
तिशनगी ने मिरी दरिया को किया शर्मिंदा॥
जज़्बए यादे खुदा, शुक्रे खु़दा मस्लहतन।
बेअसर सजदों की चौखट पे दुआ शर्मिंदा॥
लज़्जते गम से जो बढऩे लगी जज़्बों में चमक।
तेरा बख़्शा हुआ हर जख़्म हुआ शर्मिंदा।
है हवाले से हवेली में तलबगार अजल॥
जिस्म शश्दर हैं भटकती है अना शर्मिंदा।
मौत के नित नये खेलों में है मसरूफ़ जहां ॥
क्यों नहीं शाहे फना और बका शर्मिंदा।
अज़्म जब मेरे चिरागों का मुसम्मिम देखा।
हो गई खुद ही करीब आके हवा शर्मिंदा॥