प्रसिद्घ तबला वादक रामस्वरूप रतौनिया

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आकाशवाणी भोपाल के सहायक केन्द्र निदेशक के पद पर कार्यरत रामस्वरूप रतौनिया एक प्रसिद्घ तबला वादक भी हैं। मृदुभाषी एवं सभी के चहेते रतौनिया जी को तबला वादन का गुण जन्मजात मिला। आपके परिवार में दादा, पिता सभी प्रसिद्घ तबला वादक रहे हैं। रतौनिया जी ने हिन्दी साहित्य में एम.ए. किया, उसके पश्चात इन्दिरा संगीत विश्वविद्यालय खैरागढ़ सेे तबला वादन में एम.ए. गोल्ड मैडलिस्ट के रूप में किया। जिस वर्ष उनको वहां उपाधि दी गई उसी वर्ष लता मंगेशकर एवं रुकमणी देवी अरुणडेल जैसी विभूतियों को डी.लिट. की मानद उपाधि प्रदान की गई। पूरे भारत में अनेकों कलाकारों के साथ संगत कर चुके रामस्वरूप रतौनिया से रईसा मलिक की बातचीत के कुछ अंश प्रस्तुत हैं-
प्र. आपका जन्म कहां हुआ?
उ. मेरा जन्म ग्वालियर में हुआ। तथा शिक्षा-दीक्षा भी ग्वालियर में ही सम्पन्न हुई।
प्र. तबला आपने कितनी उम्र से बजाना शुरू किया?
उ. मैंने जब से होश संभाला तभी से तबला बजाना शुरू कर दिया था। मेरे पिता नारायण प्रसाद जी रतौनिया प्रसिद्घ तबला वादक थे और हमारे घर में संगीत का माहौल था। तबले की आवा$ज से ही हमारी नींद खुलती और लगती थी।
प्र. आपके प्रेरणा स्त्रोत कौन हैं?
उ. मेरे पिता ही मेरे पे्रेरणा स्त्रोत हैं, मेरे दादा जी भी बहुत अच्छे तबला एवं पखावज वादक थे।
प्र. आपके गुरू कौन थे?
उ. मेरे प्रथम गुरू मेरे पिता स्व. नारायण प्रसाद जी थे। उनके अलावा प्रो. लल्लू सिंह जी से भी मैंने तबला वादन सीखा। इसके अलावा उस समय आकाशवाणी की एक पत्रिका आती थी मैं उसको मंगाता था और उसमें कार्यक्रम पढ़कर बड़े कलाकारों के कार्यक्रम के दौरान रेडिया ट्यून करके उनके साथ तबला बजाकर अभ्यास करता था। इससे मुझे यह लाभ मिला कि किसके साथ कैसी संगत करना है, इसका मुझे अभ्यास हो गया।
प्र. आप किन-किन कलाकारों के साथ संगत कर चुके हंै?
उ. वैसे तो मैं भारत के अधिकांश कलाकारों के साथ संगत कर चुका हूँ। जिनमें प्रमुख लोग हैं, ग्वालियर घराने के कृष्णराम शंकर, बाला साहब पूंछवाले, एकनाथ साहुलकर आदि। सारंगी में पं. रामनारायण, हनुमान प्रसाद मिश्रा, उस्ताद अब्दुल लतीफ खाँ, बांसुरी में पं. हरीप्रसाद चौरसिया, रघुनाथ सेठ। सरोद में जरीन शर्मा एवं एस.के.दासगुप्ता। सितार में उस्ताद हलीम जाफर खाँ, अरविन्द पारेख, गिरीराज जी आदि के साथ मैंने बजाया है। संतूर में ओमप्रकाश चौरसिया, महिला गायिकाओं में सविता देवी, निर्मला अरोन, लक्ष्मीशंकर, शोभा गुरटू सहित अनगिनत कलाकारों के साथ तबला बजाया है।
प्र. आपने कहां-कहां कार्यक्रम प्रस्तुत किये हैंïïï?
उ. भारत के लगभग प्रत्येक बड़े नगरों मुम्बई, दिल्ली, चेन्नई, बैंगलोर, लखनऊ, कलकत्ता आदि अनेक स्थानों पर मैं कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुका हूँ। जब मेरी आयु 18 वर्ष की थी तब मैंने अपना पहला स्टेज कार्यक्रम प्रस्तुत किया था।
प्र. आपका कोई ऐसा कार्यक्रम जिसे आप कभी नहीं भूलतेï?
उ. एक प्रोग्राम यादगार है। ग्वालियर में आयोजित तानसेन समारोह में मुझे उभरते कलाकार के रूप में आमंत्रित किया था। यह कार्यक्रम सन्ï 1973 में हुआ था। समारोह के दौरान मेरा कार्यक्रम लगभग बीच में था। जब मैं प्रस्तुति देने लगा तो अचानक मेघ उमड़-घुमड़कर बरसने लगे उस समय उस्ताद बशीर खाँ सारंगी पर थे और मेरे पिताजी भी बजा रहे थे। मौसम को देखते हुए वर्षा होने की सम्भावनाएं न$जर नहीं आ रही थी लेकिन जैसे-जैसे मेरा तबला वादन ज़ोर पकड़ता गया वैसे-वैसे मेघ भी गरज-गरजकर बरसते गए। एक स्थिति यह हुई कि स्टेज तक पर पानी भर गया और उसी समय कार्यक्रम को रोकना पड़ा। दूसरे दिन के समाचार पत्रों में प्रमुखता से यह खबर छपी की रतौनिया का तबला वादन सुनने के लिए मेघ भी उमड़-घुमड़कर आये और जमकर उनका साथ दिया।
मेरा दूसरा यादगार कार्यक्रम पं. हरीप्रसाद चौरसिया के साथ मालवा उत्सव के दौरान इंदौर में आयोजित कार्यक्रम था। पं. हरीप्रसाद चौरसिया विश्व के जाने-माने बांसुरी वादक हैं। और मेरी इच्छा थी कि मैं भी कभी उनके साथ संगत करूं। इस कार्यक्रम में मुझे उनके साथ तबला वादन का मौका मिला। मैंने उनके साथ संगत का अभ्यास करने के लिए उनके कई कैसेट और रिकॉर्ड खरीदे और उनको सुनकर लगभग एक माह तक घर पर ही अभ्यास किया और पूरी तरह से उनके वादन को मैंने दिल में उतार लिया। कार्यक्रम के लिए मैं खुशी-खुशी इन्दौर पहुंचा। हम लोग वहां होटल प्रेसीडेंट में ठहरे थे, जब मैं पंडित जी के पास पहुंचा कि रिया$ज कर लें तो उन्होंने कहा दोपहर में आना और जब मैं दोपहर में गया तो उन्होंने मुझे शाम को आने के लिए कहा। इस तरह मैं उनके साथ रिर्हसल नहीं कर पाया और कार्यक्रम का समय हो गया। इसके बाद मैं सीधे कार्यक्रम देने के लिए स्टेज पर पहुंच गया। पंडित जी ने मुझसे मध्य ताल मैं तबला बजाने के लिए पूछा तो मैंने हामी भर दी और तबला बजाना प्रारंभ किया और मेरी शुरूआत ही इतनी अच्छी रही कि पंडित जी ने बीच में रुक कर कहा कि मुझे पता नहीं था कि मध्यप्रदेश में इतना बड़ा तबला वादक है। यह सुनकर हाल में श्रोताओं ने बहुत तालियां बजाईं। इसके बाद मैंने जगह-जगह पंडित जी के साथ कई प्रोग्राम दिये।
प्र. शासकीय सेवा में रहते हुए कार्यक्रम प्रस्तुत करने में आपको कोई दिक्कत तो नहीं आती?
उ. हाँ दिक्कतें तो आती हैं, शासकीय सेवा में होने के कारण बहुत अधिक कार्यक्रम नहीं कर पाता। क्योंकि कभी छुट्टïी मिल जाती है और कभी नहीं मिल पाती।
प्र. आपको कौन-कौन से सम्मान मिल चुके हैंï?
उ. मुझको अभिनव कला समाज द्वारा श्रेष्ठï कला आचार्य सम्मान सन्ï 2006 में मिला। इसी वर्ष कर्वट कला परिषद द्वारा मुझे कला साधना सम्मान दिया गया। सन्ï 2005 में गांधी शांति प्रतिष्ठïान नई दिल्ली द्वारा मुझे संगीत शिरोमणी के सम्मान से नवा$जा गया। मुझे मध्यप्रदेश के राज्यपाल श्री बलराम जाखड़ द्वारा भी सम्मानित किया जा चुका है। लेकिन असली सम्मान तो श्रोताओं का प्यार है जो मुझे हमेशा मिलता है।
प्र. आपके परिवार में और कौन-कौन तबला वादन करता है?
उ. मेरा बेटा विभास रतौनिया और बेटी प्रियंका रतौनिया तबला वादन करते हैं। प्रियंका ने संगीत जगत में एक अपनी अलग पहचान कायम की है। मेरा छोटा भाई और उसके बच्चे भी तबला वादन करते हैं।
प्र. नये कलाकारों के लिये आपका क्या संदेश है?
उ. मेरा यह संदेश है कि धैर्य धारण करें, मेहनत करें, क्योंकि सफलता आसानी से नहीं मिलती है, सफलता पाने के लिए मन को बहुत पक्का करना पड़ेगा। सबसे पहले आप अच्छी तालीम प्राप्त करें, गुरूजी की सेवा करें। इसके बाद ही इसका फल देर से मिले लेकिन मिलेगा $जरूर। नियमित रूप में रिया$ज करें, मैं भी रो$ज सुबह शाम नियमित अभ्यास करता हूँ।
प्र. आपके इस काम में आपके परिवार जनों का कितना सहयोग मिलता है?
उ. मेरे परिवार के लोगों का विशेषरूप से मेरी पत्नी का मुझे भरपूर सहयोग मिलता है। उन सबके सहयोग के कारण ही आज मैं इस ऊंचाई तक पहुंच सका हूँ। -रईसा मलिक