फहमीदा रियाज
फहमीदा रियाज की गिनती पाकिस्तान की प्रगतिशील कवियत्रियों की पंक्ति में प्रथम पायदान पर होती है। मार्शल लॉ के जमाने में वो दिल्ली आ गईं थीं और कई वर्षों तक उन्होंने भारत में निवास किया। अपनी आज़ाद नज़्मों में उन्होंने महिलाओं के अधिकारों के लिए आवाज उठाई और ढकी-छुपी नारी भावनाओं का साहस के साथ प्रदर्शन किया। बाद की नज़्मों में उन्होंने आज़ादी, लोकतंत्र आदि के लिए भी निर्भीकतापूर्ण लिखा। इनकी शायरी में एक विशेष प्रकार की संघर्षपूर्ण दृढ़ता पाई जाती है जो मजहबी रूढि़वादिता और वर्णभेद की ऊंच-नीच के खिलाफ है।
इंसानी समस्याओं पर लिखते समय उन्होंने हमेशा सच कहना अपनी आदत बनाई। आजकल वो कराची में रह रही हैं और भारत में आयोजित होने वाले मुशायरों में आती-जाती रहती हैं।
फहमीदा रियाज की नज्म
लाओ हाथ अपना लाओ जरा
छू के मेरा बदन
अपने बच्चे के दिल का धड़कन सुनो
नाफ1 के इस तरफ
इसकी जुम्बिशों2 को महसूस करते हो तुम?
बस यही छोड़ दो
थोड़ी देर और इस हाथ को मेरे ठण्डे बदन पर यहीं
छोड़ दो
मेरे बेकल नफ्स3 को करार4 आयेगा
मेरे ईसा, मेरे दर्द के चारागर5
मेरा हर मुएतन6
इस हथेली से तस्कीन पाने लगा
इस हथेली के नीचे मेरा लाल करवट लेने लगा
उंगलियों से बदन इसका पहचान लो
तुम इसे जान लो
चूमने दो मुझे अपनी ये उंगलियां
इनकी हर पोर को चूमने दो मुझे
नाखूनों को लबों7 से लगा लूं जरा
इस हथेली में मुंह तो छुपा लूं जरा
फूल लाती हुई यह हरी उंगलियां
मेरी आंखों से आंसू उबलते हुए
इन से सीचूंगी मैं
फूल लाती हुई उंगलियों की जड़ें
चूमने दो मुझे अपने बाल, अपने माथे का चांद, अपने लब,
यह चकमती हुई काली आंखें
मुस्कुराती यह हैरान आंखें
मेरे कांपते होंठ, मेरी छलकती हुई आंख को
देख कर कितनी हैरान हैं
तुम को मालूम क्या . . तुमको मालूम क्या
तुमने जाने मुझे क्या से क्या कर दिया
मेरे अंदर अंधेरे का आसेब8 था
यांकरां तांकरा9 एक अनमिट ख़ला10
यूं ही फिरती थी मैं
जीस्त11 के ज़ायके12 को तरसती हुई
दिल में आंसू भरे सब पे हंसती हुई
तुमने अंदर मेरा इस तरह भर दिया
फूटती है मेरे जिस्म से रोशनी
सब मुकद्दस13 किताबें जो नाजिल14 हुईं
सब पयम्बर15 जो अब तक उतारे गये
सब फरिश्ते के है बादलों से परे
रंग, संगीत, सुर, फूल, कलियां, शजर16
सुबह दम पेड़ की झूलती डालियां
उनके मफहूम17 जो भी बताये गये
खाक18 पर बसने वाले बशर19 को मसर्रत20 के जितने भी नगमे
सुनाये गये
सब ऋषि, सब मुनि, अंबिया, औलिया
खैर के देवता, हुस्ने नेकी, खुदा
आज सब पर मुझे
ऐतबार आ गया . . .ऐतबार आ गया।
शब्दार्थ:-1. नाभि, 2. हलचल, 3. सांस, 4. सकून, चैन, 5. डाक्टर, 6. शरीर का बाल, 7. होठों, 8. भूत, 9. यहां-वहां, 10.शून्य, 11.$िजन्दगी, 12.स्वाद, 13. पवित्र, 14. अवतरित, 15.देवदूत, 16. पेड़, 17. अर्थ, 18. मिट्टïी, 19.मानव, 20. खुशी।