सात साल की सुचिता ने अपने जन्मदिन पर अपनी क्लास के 30 बच्चों को फैंसी पेंसिल बॉक्स बांटे। इनकी कीमत 75 रु . प्रति बॉक्स थी। साथ ही मम्मी-पापा से उसने कैसियो का 3000 रु. का कीबोर्ड, 1000 रु. की गुडिय़ा और 1500 रु. का हवा वाला पूल तोहफे में लिया। ये सच है कि सम्पन्न माता-पिता इतना खर्च कर सकते हैं।
ये भी कह सकते हैं कि बच्ची खर्चीली स्वभाव की है। लेकिन बच्चे के पैसे खर्च करने की आदत पर तोहमत लगाने से पहले एक नजर खुद पर भी डालिए। जब वह आपसे थोड़े पैसे लेकर चॉकलेट खरीदने जाता है, तो क्या आपने कभी उन्हें पैसे की महत्ता समझाई है? आपके बच्चे को मालूम होना चाहिए कि पैसा सिर्फ खर्च करने की चीज़ नहीं है।
क्या आपने उसे बताया है कि पैसों को कैसे बचाया जाए कि भविष्य में काम आए, कैसे इसका बेहतर ढंग से खर्च किया जा सकता है? क्या आपका बच्चा जानता है कि उसके पिता और मां कितने घंटे काम करके, कितना धन कमा पाते हैं? उन्हें कितना टैक्स चुकाना पड़ता है? बच्चे की कॉलेज की पढ़ाई के लिए उन्होंने किस तरह पैसा जोड़ा है? पैसे की कीमत समझने के लिए बच्चे के लिए ये सब जानना ज़रूरी है। घर के खचों के बारे में बच्चे को बताने से उसमें आर्थिक समझ विकसित होगी, अपने जीवन पर उसका बेहतर नियंत्रण बनेगा।
जितना जल्दी, उतना अच्छा…
बच्चों को शुरू से यह सिखाएं। अध्ययन बताते हैं कि आजकल तीन या चार साल के बच्चे भी घर में आने वाली चीजों की खरीदारी को प्रभावित करते हैं। बच्चा जब तीन साल की उम्र में पहुंच जाए, तब उसे पैसे के बारे में बताना शुरू कर दें। शुरुआती दौर में आप उसे सिक्के पहचानना सिखा सकती हैं। थोड़ा-सा बड़ा होने पर यानी छह या सात साल के बच्चे को छोटी रकम खर्च के लिए दीजिए। इसे हर माह निश्चित तारीख पर पॉकेटमनी दें।
यदि वह कोई चीज खरीदने की मंशा जाहिर करे, तो उसे सहयोग करें। उसे यह समझाएं कि वह मिलने वाले पैसे में से कुछ भाग अपने पिगी बैंक में डाले। जब उसका पिगी बैंक भर जाए और खोलने की बारी आए, तब अपनी तरफ उसेे कुछ अतिरिक्त रकम दें। बिल्कुल उसी तरह, जैसे कोई बैंक ब्याज देता है।
यह बच्चे को उत्साहित करेगा और उसे पैसे जमा करने के लिए प्रेरित करेगा। यह आदत उसमें बैंक के प्रति रुझान भी बनाएगी। ग्यारह साल की उम्र तक आते-आते बच्चे को निवेश के बारे में थोड़ी-थोड़ी जानकारी देना शुरू कर देंं। 15-20 की आयु में परिवार का बजट बनाने में बच्चे की मदद लें। उसको स्वतंत्र बैंक खाता खोलने व एटीएम इस्तेमाल करने की छूट दें।
उदाहरण पेश करें…
बच्चे हमेशा माता-पिता से सीखते हैं। यदि आप बहुत खर्चीली जीवनशैली अपनाते हैं, तो वह भी वही करेगा। बच्चा पैसा जोडऩा सीखे, इसके लिए जरूरी है आपमें वह आदत हो। यदि आप ज्यादा खर्चीले हैं, तो बच्चे को पैसा खर्च करने से नहीं रोक पाएंगे।
10 व 15 वर्ष के बच्चों के पिता अरुण सिंह एक किस्सा बताते हैं। मैं अपने बड़े बच्चे की हर दूसरे दिन नए खिलौने की जिद की वजह से परेशान रहता था। जब मैंने उसे ऐसा करने से मना किया, तो उसका जवाब था- ‘पापा आप भी तो बहुत सारी शर्ट खरीदते हैं, जबकि आपके पास पहले से ही ढेर सी शर्ट्स हैं।Ó भले ही आपका बचपन ज्यादा आराम में न बीता हो, लेकिन बच्चे की हर जिद पूरी करने का यह कोई कारण नहीं हो सकता।
कठिनाईयां भी बताएं…
हर घर में ऐसे बच्चे होते हैं, जो उपदेश सुनना पसंद नहीं करते। यदि कोई बच्चा एक ही बार में सारा पैसा खर्च कर देता है, तो उसके दोबारा पैसे मांगने तक इंतजार कीजिए। कभी-भी उसकी प्यार से की गई जिद को न मानें। आठ साल का करण अपनी सारी पॉकेटमनी आइसक्रीम में खर्च कर देता था।
वह एक खिलौना ट्रक खरीदना चाहता था, जो उसमें डिपार्टमेंटल स्टोर में देखा था। इसके लिए उसे निश्चित तौर पर बचत करना चाहिए थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। जब वह माता-पिता के साथ स्टोर में गया, तो उसने ट्रक खरीदने की जिद की। मां के मना करने पर उसने लोगों के सामने रोना शुरू कर दिया। मां-पापा ने रोते हुए करण के साथ ही पूरी शॉपिंग की।
उसकी मां का कहना था- ‘मैं जानती हूं यदि मैंने आज यह जिद पूरी की, तो फिर वह ‘नहींÓ का मतलब कभी नहीं समझेगा। यद्यपि मेरे लिए उसे रोते हुए लेकर बाजार में घूमना बड़ा अजीब था, पर कुछ देर बाद उसने रोना बंद कर दिया और चुपचाप मेरे पीछे चलने लगा। सिर्फ इसलिए, क्योंकि मैंने उसकी जिद पर ध्यान नहीं दिया था। उसके बाद कुछ हफ्तों में उसने ट्रक के पैसे बचाए और वह खरीद लिया।Ó
बचत का लक्ष्य…
बच्चों को बचत क्यों करना है, यह बताना हमेशा फायदेमंद होता है। आप उन्हें बता सकती हैं कि वे जेब खर्च को दो भागों में बांट दें। एक खर्च करने वाला पैसा और दूसरा भाग उनकी बचत। जब भी जरूरत महसूस हो, उन्हें बचत का लक्ष्य दे दें।
अनुभव है गुरू…
उन पर बचत का पाठ थोपिए नहीं। एक बार यदि वे बचत के अनुभव का मजा ले लेने लगे, तो आपको समझाने की जरूरत नहीं होगी। कभी-कभार उन्हें दिलेरी से खर्च करने की अनुमति दे दें। हो सकता है, एक सीनियर स्कूल का विद्यार्थी अपनी बचत से तीन सामान्य शर्टों की बजाय, एक मंहगी शर्ट खरीदना चाहे। उसे रोकिए नहीं। हफ्ते में दो-तीन बार उस शर्ट को पहनना पड़ेगा, तो खुद समझ जाएगा कि दिखावे में कुछ नहीं रखा। हां, ऐसे में ये न करें कि चलो हम तीन दिला देते हैं। इस तरह से वह हर बार आपकी मदद का सहारा लेकर, मनमानी करना सीख जाएगा।
पैसे का रोना नहीं…
चाइल्ड सायकोलॉजिस्ट प्रिया कण्णन बताती हैं कि, ‘हमेशा बच्चों से पैसे की बात करना ठीक नहीं। यह सबसे बड़ी गलती है, जो माता-पिता करते हैं। इससे बच्चे के आत्मसम्मान को ठेस लग सकती है। यदि आप कहते हैं कि हम यह चीज नहीं खरीद सकते, क्योंकि हमारे पास उतना पैसा नहीं है, तो उसे लगेगा वह औरों से बेहतर नहीं है।Ó ज़रूरी मामलों में ही जि़क्र करें।
कोई क्यों दे दखल…
बच्चों को पैसे के बारे में सिखाने वाले दूसरे भी हो सकते हैं। आप सुनिश्चित करें कि ऐसे लोगों की समझाइश मिलने से पहले आप उन्हें समझा पाएं। आज बाजार की जानकारी लेने के कई साधन मौजूद हैं। प्रिया कहती हैं, ‘उसके साथ दुकान वाले खेल खेलें। दुकानदार बनकर कुछ चीजें रख लें। जब वह कोई महंगी चीज का दाम पूछे, तो उसे बताएं कि वह यह नहीं खरीद सकता, क्योंकि उसके पास पैसे कम हैं।
उसे बताएं कि यह वस्तु 10 रु. की है, जबकि उसके पास अभी सिर्फ 5 रु. हैं। यदि वह कुछ और पैसे जोड़कर 10 रु. बना लेगा, तो यह चीज खरीदने लायक हो जाएगा। यह खेल उसे सही मायनों में बाजार के बारे में जानकारी दे देगा।Ó किशोर बच्चे को तीन पिगी बैंक लाकर बैंकों के खातों के ऑपरेट करने की जानकारी दें। एक को चेकिंग खाता, एक को बचत खाता और एक को निवेश खाता बना दें। चेकिंग के पैसे बिना बताए खर्च किए जा सकते हैं, पर एक बार खर्च हुए, तो गए।
बचत खाते में प्रति सौ रुपए बचाने पर बच्चे को ब्याज दें। इसका पैसा बिना पूछे खर्च नहीं किया जा सकता, ये बता दें। मकसद ये है कि बच्चा बचत के बढऩे और ज़रूरत पडऩे पर ही खर्च किए जाने की अहमियत समझे। निवेश वाले बैंक में भी बच्चे को मिलने वाला ब्याज बता दें। पर इसका पैसा खर्च नहीं किया जा सकता। मकसद है कि बच्चे को धन जमा करने की कीमत समझाएं।
ऐसा भी कर सकते हैं कि इस पैसे को बच्चे के लिए असली खाते में जमा कर दें या किसी फंड में डालकर, बच्चे को उसके निवेश के बढऩे के बारे में लगातार बताते रहें। मनोविशेषज्ञ के मुताबिक यदि आप बच्चे को मनमाना खर्च करने देते हैं, तो मानकर चलिए कि बड़े होकर वह गंभीर वित्तीय संकट में फंस सकता है। अगर बच्चे को इससे बचाना चाहते हैं, तो उसे पैसों की कद्र करना सिखाएं.।