हिन्दी फिल्म जगत की पुरानी गायिकाओं सुरैया, शमशाद बेगम, नूरजहां, उमादेवी (टुनटुन), रेशमा, सलमा आ$गा, आदि की आवा$ज में गीत प्रस्तुत करने वाली रजनी रायकवार (धूरिया) ने नौ वर्ष की उम्र से ही आकाशवाणी पर गाना शुरू कर दिया था।
वह कहती हैं कि बचपन से ही पुरानी गायिकाओं के गीतों को आवा$ज मिलाते हुए गुनगुनाने की आदत थी। रजनी जी का पहला कार्यक्रम रवीन्द्र भवन भोपाल में आयोजित हुआ। उनको गायन क्षेत्र में आये हुए लगभग पन्द्रह वर्ष हो चुके हैं। अपनी माता जी की प्रेरणा से उन्होंंने शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेना प्रारंभ की। वर्तमान में वो सज्जनलाल भट्टï से शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त कर रही हैं। रजनी धूरिया ने देश के अनेक बड़े शहरों में अपने कार्यक्रम प्रस्तुत किये हैं।
रजनी रायकवार को संगीत विरासत में मिला है। इनकी माँ स्व. सावित्रीदेवी रायकवार, आकाशवाणी भोपाल की वरिष्ठï बुंदेली लोकगीत गायिका रह चुकी है, साथ ही उन्होंने अभिनय जगत (फिल्म-बेन्डिट क्वीन, एक सांस $िजन्दगी व दूरदर्शन सीरियल-पंचतंत्र, सुनो कहानी, मुझे चांद चाहिये इत्यादि के साथ ही बहुत सी फिल्मों व सीरियल में अभिनय द्वारा) अपनी एक अलग छाप छोड़ी।
अपनी माताजी से विरासत में मिले संगीत और बुंदेलीखण्डी लोकगीतों को इन्होंने आगे बढ़ाया। आकाशवाणी दिल्ली के लिये बने प्रोजेक्ट ‘लुप्तोन्मुखी लोकगीतों का संग्रहण एवं सॉफ्टवेयर प्लानÓ के अंतर्गत बुन्देलखण्डी लोकगीतों की सॉफ्टवेयर रिकार्डिंग कर अपना अमूल्य योगदान दिया। इसके अलावा रजनी धूरिया पिछले कई वर्षों से आकाशवाणी के ग्राम सभा/ग्राम लक्ष्मी और कई अन्य प्रोग्रामों में आकस्मिक कम्प्येरर हैं। माताजी के स्वर्गवास के उपरांत उनकी बुंदेली लोकगीत की विरासत को आगे बढ़ाते हुये रजनी जी ने खुद बुंदेली लोकगीत का अपना स्वतंत्र समूह बनाकर आकाशवाणी से ‘बीÓ ग्रेड के साथ पास किया है।
घर में शुरू से ही संगीत का माहौल होने व सभी बड़े-छोटे भाई-बहनों का संगीत से जुड़ाव देखकर रजनी का भी म्यूजिक की तरफ झुकाव होना ला$िजमी था और घर का ही ‘सरगम म्यूजिकल ग्रुपÓ होने से वो जल्दी ही स्टेज पर गाने लगी। शुरू से ही उनको कुछ अलग हटकर गाये विशेष गाने गाना अच्छा लगता था और उनकी हूबहू प्रस्तुति करने की कोशिश करती हैं और उसमें काफी हद तक सफल भी रहती हैं।
शुरू से ही थोड़ा संकोची स्वभाव की होने के कारण और अपने घर के सरगम म्यू$िजकल ग्रुप के सिलेक्टेड अच्छे कार्यक्रमों के होने के कारण यह जल्दी ही सबके सामने नहीं आ सकी। लेकिन धीरे-धीरे भोपाल के कुछ बड़े कार्यक्रमों में जब इन्होंने शिरकत की तो लोग इनकी आवाज के दीवाने हो गये। आज भोपाल या भोपाल के बाहर के बड़े कार्यक्रम रजनी जी के बगैर अधूरे माने जाते हैं। जिस कार्यक्रम में रजनी जी गाती हैं उस कार्यक्रम का रंग ही अलग होता है इनके गाने सुनने के लिये श्रोता दूर-दूर से विशेष रूप से पंहुचते हैं।
इतनी प्रसिद्घी मिलने के बावजूद भी श्रीमती रजनी धूरिया बहुत ही सरल स्वभाव की हैं और घमण्ड से कोसों दूर बहुत ही सरल एवं सहज स्वभाव वाली हैं जो कि सब उनके माता-पिता से मिले संस्कारों के कारण हैं। कई कार्यक्रमों में इन्हें विशेष सम्मान से सम्मानित किया गया है। खास तौर से उन्हें उनकी संगीत यात्रा के लिये वर्ष 2000 में ‘मिलेनियम सम्मानÓ से नवाजा गया था। वर्ष 2005,2006 में उनको लंदन (इंग्लैंड) से भी उनके कार्यक्रम हेतु आमंत्रित किया गया परन्तु पारिवारिक व्यवस्थाओं और कुछ अन्य कारणों से यह लंदन कार्यक्रम हेतु नहीं जा पाईं। उन्होंने बताया कि निकट भविष्य में यह वहां कार्यक्रम देने हेतु जरूर जायेंगी।
संगीत के अलावा रजनी जी कई अन्य विधाओं से भी जुड़ी हैं जैसे की हस्तशिल्प कला, पेपरमेसी वर्क, मीमिक्री व उद्ïघोषिका इत्यादि। इन कला के $जरिये ये हस्तशिल्प विभाग से रजिस्टर्ड हैं और पेपरमेसी की बहुत सी सुन्दर कलाकृति बनाती हैं। जिन्हें भारत में कई जगह आयोजित प्रदर्शनी में रखा गया व बेचा गया है। इनकी खुद की डिजाईन की गई पेपरमेसी वर्क को काफी पसंद किया जाता है। खजुराहो फेस्टीवल में इनके द्वारा बनाई गई पेपरमेसी वर्क की पारम्परिक कलाकृति ‘बारातÓ को काफी पसंद किया गया।
उनके तीनों बच्चों का रूझान संगीत की ओर है। उनका सबसे बड़ा बेटा वतन धूरिया सिंथेसाइ$जर पर उनके गानों के साथ संगत देता है। उनके दूसरे पुत्र अभिनय और बेटी स्तुति भी अभी से वादन और गायन के $जरिये संगीत से जुड़ रहे हैं। उनके पति आदेश धूरिया भी कला परिषद भोपाल से जुड़े हुए हैं वो उनको प्रोत्साहित करते हुए हरदम उनका सहयोग करते हैं। रजनी जी मानना है कि संगीत तो संगीत है। मगर इसकी मधुरता इसके सही रूप में ही रहती है न कि रीमिक्स के रूप में। अनमोल घड़ी फिल्म में नूरजहां द्वारा गाया गीत ‘आवाज़ दे कहां है, दुनियां मेरी जवां हैंÓ उनका सबसे पसंदीदा गीत है। गायिकाओं में आशा भौंसले और लता मंगेशकर को वे बहुत पसंद करती हैं। – रईसा मलिक