बालीवुड में कलाकारों की भरमार है, लेकिन उनमें शायद ही कोई कलाकार ऐसा हो जो किशोर कुमार की तरह बहुमुखी प्रतिभा का धनी हो। किशोर कुमार का अभिनय जहां लोगों को गुदगुदाता है वहीं उनके दर्द भरे गीत आंखेंनम करने का हुनर रखते हैं। उनकी गायकी की लोकप्रियता का यह आलम है कि आज के लगभग सभी युवा गायकों ने उनकी शैली को अपनाया है। किशोर दा के अभिनय और गायन की बाबत जाने माने फिल्म समीक्षक अजय ब्रह्मात्ज का कहनाहै कि जब उनके दौर के अभिनेता गंभीर किरदार के तौर पर अपने अभिनय से लोगों के मन में बस रहे थे ऐसे वक्त में किशोर दा ने हास्य अभिनेता के तौर पर ऐसे किरदार निभाए जो अपनी मिसाल खुद बन गए। अजय ने बताया कि पुरानी हिंदी फिल्मों में आम तौर पर कॉमेडियन का एक किरदार होता था, जो कहानी के साथ साथ चलता था । एक जमाने में गोप, याकूब, मुकरी, धूमल, महमूद, जगदीप, जानी वाकर जैसे कलाकार उसी किरदार के दम पर हिंदी फिल्म जगत में अपनी जगह बनानेमें कामयाब रहे। उस जमाने की फिल्मों में हीरो, हिरोइन और हास्य कलाकारों का अपना एक दायरा होता था, लेकिन किशोर कुमार ने इस दायरे से बाहर निकलकर फिल्म की मुख्य भूमिका में रहते हुए हास्य अभिनय के नये कीर्तिमान स्थापित किए।
किशोर दा ने ‘चलती का नाम गाड़ीÓ, ‘झुमरूÓ ,’हाफ टिकटÓ और ‘पड़ोसनÓ जैसी हिट फिल्मों में नायक और हास्य के बीच ऐसा तालमेल बिठाया कि बाद के दिनों में बालीवुड का एक ट्रेंड बन गया। उनके गाने की शैली भी वक्त से आगे थी। किशोर कुमार को गायक बनने का मौका मशहूर संगीतकार एस डी बर्मन ने दिया। फिल्म ‘मशालÓ की शूटिंग के दौरान उन्होंने बॉलीवुड सुपरस्टार अशोक कुमार के भाई किशोर कुमार को के एल सहगल के अंदाज में रियाज करते देखा तो उन्होंने उसे किसी की नकल करने के बजाय अपना अलग विकसित करने की नसीहत दी। किशोर दा ने उनकी इस नसीहत पर पूरे मन से अमल किया और उसके बाद अपनी गायकी का धमाल हर तरफ मचा दिया। उन्होंने अपना एक ऐसा अंदाज बनाया, जिसे उनके बाद के हर गायक ने अपनाने की कोशिश की। आशा भोंसले, किशोर कुमार और एस डी बर्मन की तिकड़ी की मकबूलियत किसी से छिपी नहीं है।
‘पेइंग गेस्टÓ फिल्म का गाना ‘छोड़ दो आंचल….Ó आज भी कहीं सुनाई दे तो कदम थम जाते हैं और ‘चलती का नाम गाड़ीÓ का ‘पांच रूपया बारह आना…Ó भी हर किसी को गुदगुदा जाता है। संगीतकार राहुल देव बर्मन का साथ पा किशोर कुमार ने गायकी में बुलंदियों को छुआ। ‘आराधनाÓ इन दोनो की पहली फिल्म थी और इस फिल्म के गाने ‘रूप तेरा मस्तानाÓ के लिए किशोर दा को फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। बाद में तो पुरस्कारों की झड़ी लग गई। उन्होंने सात फिल्मफेयर पुरस्कार जीते। सत्तर के दशक के सारे नायकों को उन्होंने अपनी आवाज दी। राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, संजीव कुमार और रिषी कपूर को हिट बनाने में उनका अमूल्य योगदान था। एस डी बर्मन के अलावा किशोर दा ने अपने जमाने के लगभग सभी संगीतकारों के साथ काम किया और सदाबहार गाने दिए। लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ ‘मेरे महबूब कयामत होगीÓ (मिस्टरएक्स इन बांबे), ‘मेरे नसीब में ऐ दोस्त तेरा प्यार नहीÓ (दो रास्ते), ‘ये जीवन हैÓ (पिया का घर) और न जाने कितने दिल में बस जाने वाले गीत दिए, जो आज भी लोगों की जुबां पर रहते है। गायन के साथ किशोर दा ने फिल्म निर्माण में भी अपना परचम लहराया।
उन्होंने 1961 में ‘झुमरूÓ बनाई। इस फिल्म में उन्होंने अभिनय किया, गीत लिखे, संगीत दिया। 1964 में उन्होंने गंभीर फिल्म ‘दूर गगन की छांव मेंÓ बनाई। इस फिल्म में उन्होंने एक मूक और बधिर पुत्र के पिता का किरदार निभाया। पुत्र के किरदार में उनके पुत्र अमित कुमार थे। इस फिल्म को आलोचको ने खूब सराहा। उन्होंने बाद में ‘दूर का राहीÓ(1971) और’दूर वादियो में कहीÓ (1980) बनाई। किशोर दा ने अपने प्रशंसको को अपनी अल्हड़ आवाज दी, हास्य और गंभीर अभिनय दिया, अच्छी फिल्में दीं और ढेर सारा मनोरंजन दिया। जिंदादिली में किशोर दा ताउम्र किशोर रहे और अमर हो गए।