बेकल उत्साही

0
268

बेकल उत्साही का पूरा नाम लोदी मो. शफीक खान है। उनके पिता का नाम लोदी मो. जाफर खान बहादुर है और उनका निवास बलरामपुर, गोंडा है। आपका जन्म 1 जून 1928 को हुआ था। उन्होंने विशारद मुंशी हिंदी एवं अदीब माहिर एवं कामिल उर्दू की परीक्षाएं उत्तीर्ण कीं।
बेकल उत्साही ने सन्ï 1950 से ही लिखना प्रारंभ कर दिया था। उनकी पहली रचना बापू का सपना 1950 में प्रकाशित हुई। इसके बाद उनकी जो रचनाएं प्रकाशित हुईं उनमें प्रमुख हैं- विजय बिगुल, नगमा-ओ-तरन्नुम, निशात-ए-जिं़दगी, सुरूर-ए-जाविदां, पुरवाईयां, लहके बगिया महके फूल, कोयल कुकहारे बेकल गीत, अपनी धरती चांद का दर्पन, ग$जज सांवरी, रंग हजारों खुश्बू एक, मिट्टïी, रेत, चट्टïान, अंजुरी भर अजोर, ग़$जल गंगा, धरती सदा सुहागन, हमारे लोकप्रिय गीतकार बेकल उत्साही, वन=नज़्म, बद्ïदुआ, वल्ï-फज्र, जाम-ए-गुल, पयाम-ए-रहमत, दोहापुरम, धरती लहके जीवन महके, नज्मावत, नगमीना।
उनको जो पुरस्कार मिले उनमें प्रमुख हैं-पद्मïश्री, चेमफोर्ड शील्ड, नई दिल्ली, मौलाना मो. अली जौहर अवार्ड कानुपर, जिगर अवार्ड, विजय स्तंभ अवार्ड चितौरनगर, हिन्दी साहित्य समिति पूमर्वी क्षेत्र, मीर अवार्ड मीर अकादमी, पाकिस्तान सम्मान शील्ड, राष्टï्रीय एकता सीरत मेडल, सतना, उर्दू अंजुमन शील्ड, न्यूयार्क, सम्मान शील्ड मौलाना मो. अली जौर सा. नई दिल्ली, रष्टï्रीय जनवाणी सम्मान हिन्दी सेवा निधि, अवध गौरव गोंडा, तुलसीदास सम्मान-बलरामपुर, गौतम बुद्घ सम्मान-सिद्घार्थ नगर, शेरी भोपाली अवार्ड-शेरी अकादमी भोपाल आदि।
श्री बेकल उत्साही राज्यसभा के सदस्य भी रह चुके हैं। उन्होंने जर्मनी, इटली, इराक, कुवैत, रूस, मारीशस, दक्षिण अफ्रीका, ्रसऊदी अरब, कनाडा, पाकिस्तान, ब्रिटेन, नार्वे, स्वीडन, ओमान, नेपाल, आदि देशों की यात्राएं की हैं।
बेकल उत्साही की रचनाएं
दुश्मनों के तीरो-नश्तर से न खंजर से हुआ।
कत्ल मेरा पहरेदारों के ही लश्कर से हुआ॥
भीड़ में हर इक के हाथों में शगुफ्ता फूल थे।
सर मेरा जख्मी बताओ किसके पत्थर से हुआ॥
तश्नगी में किस कदर इक बूंद पानी है अ$जीम।
तश्नालब को इसका अंदा$जा समन्दर से हुआ॥
हर थपेड़ा कह गया सब कु़छ डुबो देने के बाद।
जुर्म ये मुझसे नहीं कश्ती के लंगर से हुआ॥
मैं था इक गुमनामियों के गांव में बेकल मगर।
शहर में चर्चा मेरा गीतों के दफ्तर से हुआ॥
0 0 0
प्यासा चेहरा तपता सावन किसका है॥
हिज्र का मौसम भीगा दामन किसका है॥
पानी पर तुम पत्थर मार के देखो तो।
फिर सोचो ये टूटा दर्पन किसका है॥
फूलों तक जब नर्म कलाई पहुंचेगी।
ज़ख्म बता देंंगे ये गुलशन किसका है॥
तेरेे हैं सब रंग-तरंग जवानी के।
फुटपाथों पर भूका बचपन किसका है॥
अपने अंदर झांक के बेकल सोच $जरा।
तू है सबका दोस्त तो दुश्मन किसका है॥
० ० ०
ये दुश्मन अब जो मेरी जान का है।
पड़ोसी है मेरी पहचान का है॥
जहां तुम फायदे में चल रहे हो।
इलाका वह मेेरे नुकसान का है॥
सियासी बुत के आगे सजदा कर लूं।
मियां ये मसअला ईमान का है॥
परिन्दे चुप, हवाएं सहमी-सहमी।
ये मंसूबा किसी तूफान का है॥
मुहब्बत से मिले तो सर झुका दूं।
ये जज़्बा दिल के हिन्दुस्तान का है॥