ब्लैक होल की वास्तविकता

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अंतरिक्ष में ’’ब्लैक होल’’ (श्याम विवर) होने की कहानी सच में बदलती जा रही हैं कभी इसे वैज्ञानिक सिद्धांतों के साथ कवि की कल्पना का मिला जुला उत्पाद माना जाता था। इसकी वजह थी कि प्रमाण नहीं मिल पा रहे थे। खगोल निरीक्षण से जो संकेत मिलते थे, उनकी व्याख्या को लेकर भी मतभेद हो जाते थे। अतः कोई भी दावे से नहीं कह पाता था कि ब्रह्मांड में सचमुच ’’ब्लेक होल’’ जैसी कोई चीज है या नहीं। अब इस बारे में जो नवीनतम जानकारी मिल रही है। अब इस बारे में जो नवीनतम जानकारी मिल रही है, वह प्रमाण जुटाती है। यह जानकारी जुटाने का श्रेय भारतीय वैज्ञानिक रमेश नारायण के नेतृत्व में काम कर रही टीम को भी जाता है जो अमरीका में शोधरत है।
रमेश नारायण के शोध का विवरण अमरीका में ’’वाशिंगटन पोस्ट’’ अखबार में छपा । उन्होंने अंतरिक्ष में ऐसी गैस के प्रमाण जुटाये हैं जो अकल्पनीय रूप से गर्म है। बताया गया है कि उक्त गैस का तापमान दस खरब डिग्री सेल्सियस है। इतना उच्च तापमान भी दुनिया में कहीं हो सकता है, यह गणनाएं तो बताती हैं, पर उसकी मोजूदगी का कहीं कोई प्रमाण नहीं था।
यह ताप कितना अधिक है, इसे समझने के लिए जून की तपती दुपहरी में सूर्य की ओर मुंह करके खड़े हो जााइए। सूर्य से आती गरमी थोड़ी देर में ही असहनीय लगती है जबकि वह तापमान मात्रा 45 डिग्री सेल्सियम के आसपास होता है। पर सूर्य की अपनी बाहरी सतह पर तापमान लगभग 6000 डिग्री सेल्सियम होता है और लगभग 15 करोड़ किलोमीटर की दूरी पार कर आने की वजह से वह पृथ्वी पर आते-आते इतना कम रह जाता है।
सूर्य के गर्भ में करोड़ों नाभिकीय विस्फोट एक साथ होते रहते हैं, ठीक उस तरह के लिये हम हाइड्रोजन बम के नाम से जानते हैं। इतने सारे विस्फोटकों की वजह से भी गर्भ में तापमान 2 करोड़ डिग्री सेल्सियस तक ही पहुंच पाता है। अब जो नई भयानक रूप से गर्म गैस का पता लगाया गया है, वह तो सूर्य के गर्भ के ताप से भी पचास हजार गुना अधिक गर्म है। कैसे संभव हुआ इतना अधिक ताप? कहां से आई इतनी अधिक ऊष्मा व ऊर्जा? सैद्धांतिक रूप से इसे फिलहाल केवल ब्लैक होल की मौजूदी से ही समझाया जा सकता है। इसलिए कहा जा रहा है कि उपर्युक्त गैस के आसपास जरूर कोई ब्लैक होल होना चाहिए।
ब्लैक होल के बारे में और चर्चा से पहले कुछ प्रारंभिक जानकारी जरूरी है और यह भी कि क्यों और कब इस संकल्पना का प्रादुर्भाव हुआ। इस शब्द को बेशक बहुत बाद में प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक जाॅन व्हीलर ने गढ़ा हो, पर ब्लैक होल का विचार सबसे पहले अंग्रेज  खगोली विज्ञानी जाॅन मिचैल ने 1783 में दे दिया था। तब उसकी बात इतनी हास्यास्पद मानी गई थी कि उसे भुला देना ही सभी ने ठीक समझा।
बाद में एल्बर्ट आइंस्टीन के सामान्य सापेक्षता (जनरल रिलेटिविटी) के सिद्धांत के आलोेक में ऐसी किसी चीज का अस्तित्व होने की जरूरत फिर महसूस की जाने लगी। पर विज्ञान में साक्षात प्रमाण के बिना किसी भी परिकल्पना या सिद्धांत की ज्यादा दिनों दाल नहीं गलती।
गनीमत यही है कि इससे पहले कि ब्लैक होल फिर मखौल का विषय बनने लगे, प्रमाण स्वरूप कुछ न कुछ संकेत मिलने शुरू हो गये। ऐसा विशेषकर तब हुआ जब पृथ्वी के वायुमंडल से ऊपर जाकर अंतरिक्ष में आते विकिरणों का अध्ययन किया गया। मूलतः ब्लैक होल द्रव्य का अत्यंत संघनित वजह से उसकी गुरूत्वाकर्षण शक्ति भी अत्यधिक हो जाती है। इससे वह न केवल आसपास के तारे, ग्रह, लघु ग्रह आदि सभी चीजों को निगल जाता है, बल्कि प्रकाश तक को भी वह पी जाता है,परिणामस्वरूप ब्लैक होल नजर नहीं आता।
’’ब्लैक होल’’ के संदर्भ में नोबेल पुरस्कार विजेता भारतीय मूल के वैज्ञानिक एस. चंद्रशेखर का स्मरण करना लाजिमी है क्योंकि उन्होंने ही पहली बार यह सैद्धांतिक व्याख्या दी थी कि कौन से तारे ’’ब्लैक होल’’ में परिणित हो सकते हंै। उन्होंने बताया था कि मृत्यु के बाद सभी तारों की गत एक जैसी नहीं होती। धधकते तारे जब ठंडे होने लगते हैं तो यह तारों के अपने द्रव्यमान से तय होता है कि उसका अंतिम रूप क्या होगा। कुछ तारे श्वेेत वामन (व्हाइट ड्वार्फ) बनकर रह जाते हैं, तो कुछ न्यूट्रान तारे में बदल जाते हैं। रमेश नारायण ने टोरंटा में अमरीकी एस्ट्रोनामीकल सोसाइटी की बैठक में अत्यधिक गर्म गैस की जिस घटना का जिक्र पिछले हफ्ते किया, भी ऐसी ही है। ’’ब्लैक होल’’ के बारे में बताया जाता है कि उसके गिर्द गैसों की ही उम्मीद की जा सकती है जो भयानक गति से घूमती है। जब कोई और द्रव्य ’’ब्लैक होल’’ के पास आता है तो वह पहले इसी गैस की तूफानी चपेट में आता है। भीषण टकराहट से गैसें और भी गर्म हो उठती हैं।
वैज्ञानिकों की गणना है कि अगर ’’ब्लैक होल’’ ठोस होता है तो हाथ के अंगूठे के पोर जितने आकार में 20 करोड़ टन द्रव समाता। पर आश्चर्य की बात यह है कि ’’ब्लैक होल’’ ठोस नहीं होता। इसका अधिकांश द्रव बहुत ही छोटे आयतन में बसा होता है जो परमाणु के केंद्रक से भी बहुत छोटा होता है।