भोपाल का ताजमहल

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(पहली किश्त)
भारत के एक ही दो ताजमहल हैं, और दोनों ही शाहजहां के बनवाये हुए हैं। आगरे का ताजमहल शाहजहां बादशाह का बनाया हुआ है, तो भोपाल का ताजमहल बेगम शाहजहां द्वारा निर्मित है। एक अगर सफेद संगेमरमरी है तो दूसरा गारे-मिट्टी से बनाया हुआ। दोनों की ताजमहल प्रेम की निशानी हैं। यदि एक स्त्रीत्व प्रेम का प्रतीक है तो दूसरा पतीत्व प्रेम की निशानी। यद्यपि आगरे के ताजमहल भारत सरकार की देखरेख में हैं तो भोपाल का ताजमहल भी राज्य शासन की संपत्ति है।
पुरानी, रियासत भोपाल ने यहां की बेगम प्रशासकों के कारण देश में ही नहीं अपितु विश्व राष्ट्रों में अपनी एक अलग ही पहचान बनाई थी। सन्वत 1840 से 1926 ई. तक लगातार चार बार भोपाल रियासत के सिंहासन पर महिला प्रशासकों के पदारूढ होने से भोपाल की ओर अनेक इतिहासकारों का ध्यान आकर्षित हुआ और वे यहां की प्रशासनिक प्रणाली, राजतंत्र तथा नवाब बेगम की कार्यशैली के संबंध में जिज्ञासु रहे। नवाब कुदसिया बेगम यदि बहुत अधिक दयालु एवं धर्मावलम्बी थीं तो उनकी बेटी नवाब सिकन्दर जहां बेगम सदैव सैनिक वेशभूषा धारण किये रहती थीं। घुडसवारी में निपुण सिकन्दर जहां की अंग्रेज परस्ती के कारण 1857 ई. में रियासत भोपाल एवं बुन्देलखंड के क्षेत्रों में क्रांति की धधकती हुई ज्वाला को शान्त करने में बेगम ने अंग्रेजों का भरपूर साथ दिया। ऐसे ही एक अवसर पर रानी झांसी ने सिकन्दर बेगम को चेतावनी देते हुए लिखा कि ’’फिरंगियों से निपटने के बाद तुम्हारी अंग्रेजी परस्ती का मजा चखाऊंगी।‘‘ इतिहास का यह अजीब पहलू है कि सिकन्दर पर उनकी पुत्री नवाब शाहजहां बेगम सत्तारूढ हुईं तो अंग्रेजों से उनके संबंध बिगडते ही चले गये। अपने 23 वर्षीय राज-पाट में अंग्रेजों की पराधीनता को अनेक अवसरों पर बेगम शाहजहां ने ललकारा, वे जहा एक कवियत्री का कोमल हृदय रखती थीं तो दूसरी ओर प्रशासन तंत्र पर उनकी पकड बेमिसाल थी। बेगम शाहजहां ने जब बुर्का धारण किया तो अंग्रेज समर्थक समाचार-पत्रों ने लिखा था कि बेगम पर्दे में रहकर किस तरह राजतंत्र की महत्वपूर्ण जिम्मेदारियांॅ निभायेंगी? किन्तु अपने पिछडे हुए राज्य को उन्नति के शिखर पर पहुंचाने में बेगम शाहजहां के समय में जो कार्य हुए, उसने भारत हृदय पर एक छोटी रियासत को महत्वपूर्ण स्थान दिला दिया था 1884 ई. में भोपाल रियासत ने ग्रेट इण्डिया पेन्सुला नामक भारतीय रेल्वे की सहायता से राज्य में रेल्वे की स्थापना का महत्वपूर्ण कार्य किया तो अनेक ब्रिटिश समर्थक टीकाकारों ने बेगम की भूरि-भूरि प्रशंसा की। इनके समय में ही डाक एवं तार की आधुनिक प्रणाली ने जन्म लिया और भोपाल में इम्पीरिल पोस्ट एण्ड टेलीग्राफ ने कार्य प्रारम्भ किया, भोपाल शहर जो किला फतेहगढ की चारदीवारी तक ही सीमित था नगर विकास ने नये आयाम धारण किये। नगर को झीलों की नगरी का रूप देने में बेगम की रूचि का ही कारण था कि एक अवसर पर अंग्रेजों ने भोपाल की प्राकृतिक सुन्दरता के अनुरूप सुसज्जित करने हेतु बेगम शाहजहां के सामने जब यह प्रस्ताव रखा कि भोपाल नगर को केंद्र शासित नगरी के रूप में ब्रिटिश इण्डिया को दे दिया जाये जो बेगम ने इसे अपना अपमान समझा और बडी विनम्रता से इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया।
रियासत का प्रथम प्रिंटिंग प्रेस तथा प्रथम दैनिक समाचार पत्र ’’उसदातुल अखबार‘‘ का प्रकाशन शाहजहां बेगम के समय में ही हुआ। स्वभाव में जिद्दी और इस सीमा तक स्वाभिमानी बेगम शाहजहां थीं कि यदि कोई निर्णय एक बार ले लेतीं तो उस पर सदैव कायम रहतीं। जनवरी 1876 ई. में देश की राजधानी कलकत्ता में पिं्रस आॅफ वेल्स के स्वागत में विशाल दरबार आयोजित किया गया, तो देश के सभी राजघरानों, बडे ताल्लुकेदारों को तत्कालीन भारतीय वाइसराय नार्थ ब्रुक ने दरबार में शहजादे के समक्ष उपस्थित होने का न्यौता भेजा। 1857 ई. के प्रसिद्ध गदर के बाद ब्रिटिश राजघराने का कोई महत्वपूर्ण व्यक्ति पहली बार भारत दर्शन की यात्रा पर पधारा था, इस अवसर पर देश की पैंतीस करोड जनता पर ब्रिटिश उपनिवेशी राजसत्ता का दबदबा दिखाने के लिये अंग्रेजों ने इस अवसर पर सैन्य दलबल का अभूतपूर्व प्रदर्शन किया था। बेगम शाहजहां वाइसराय के निर्देशानुसार कलकत्ता दरबार में उपस्थित थीं। दरबार में आमंत्रित देशी राज्यों की भौगोलिक स्थिति अनुसार उनके बैठने की व्यवस्था की गई थी किन्तु शाहजहां बेगम जिनकी रियासत अन्य रियासतों की तुलना में बहुत छोटी थी, इस पर उतारू थीं कि उन्हें दरबार में प्रथम पंक्ति में स्थान दिया जाये, इस हेतु बेगम ने कलकत्ता पहुंचते ही बाइसराय के सूक्ष्म एक यादाश्त (शासन) प्रस्तुत किया जिसमें लिखा गया था कि भारत के देसी राज्यों में वो एकमात्र महिला नवाब हैं, इसलिये उन्हें दरबार के अवसर पर प्रथम पंक्ति में स्थान दिया जाये। वाइसराय ने प्रारम्भ में बेगम के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और पालिटिकल एजेंट के माध्यम से बेगम को कहलवाया कि उन्हें दरबार की सभी औपचारिकताओं का पालन करना होगा, इस अवसर पर अचानक कोई नवीन नीति नहीं बनाई जा सकती है, तब बेगम ने वाइसराय से अनुरोध किया कि उनके उक्त ज्ञापन को क्वीन विक्टोरिया के समक्ष प्रस्तुत करने की अनुमति दी जाये, जिसे वाइसराय ने स्वीकार कर लिया तो बेगम ने रियासत के वकील एवं पालिटिकल एजेंट को निर्देश दिये कि वे लंदन स्थित पालिटिकल डिपार्टमेंट के माध्यम से क्वीन विक्टोरिया को लिखें किः-
’’मैं और आप ही विश्व की दो महिला प्रशासक है, पश्चिमी सभ्यता में लेडीज फस्र्ट का जो स्थान है उसके अनुसार भी मुझे अनुमति दी जाये कि कलकत्ता दरबार के अवसर पर सभी रजवाडों से पहले मैं प्रिंस आॅफ वेल्स का स्वागत करूं और इस अवसर पर प्रथम पंक्ति में मेरा स्थान सुरक्षित रहे।‘‘
क्वीन विक्टोरिया ने ज्ञापन पर अपनी टिप्पणी लिखते हुए वाइसराय को सूचित किया कि बेगम का अनुरोध उचित है, इसलिये उन्हें दरबार में प्रथम पंक्ति में स्थान दिया जाना उच्च परम्पराओं का ही सम्मान करना होगा। 1 जनवरी 1875ई. को आयोजित कलकत्ता दरबार में बेगम शाहजहां प्रथम पंक्ति में बैठने में न केवल सफल हुईं बल्कि सर्वप्रथम वाइसराय की पिं्रस आॅफ वेल्स से उनकी भेंट करानी पडी इस घटना ने वाइसराय की बेगम के प्रति उत्तेजित कर दिया था, इसी कारण वाइसराय ने बेगम को अब ये निर्देश दिये कि वे दरबार में बुर्का धारण नहीं कर सकतीं, बेगम शाहजहां ने इसके उत्तर में वाइसराय को कहलवा भेजा कि जिस तरह दरबारी औपचारिकताओं के प्रति मैं कटिबद्ध हूं उसी प्रकार अपने धर्म के लिये भी निष्ठावान हूं। यदि आप महसूस करते हैं कि दरबार में बुर्के में मेरी उपस्थिति जरूरी नहीं है तो मेरे पति नवाब सिद्दीक हसन खां को मेरी ओर से, और रियासत भोपाल की ओर से प्रतिनिधित्व करने की अनुमति दी जाये, तब वाइसराय को बेगम की इस जिद को भी स्वीकारना पडा। क्रमशः