हसनात सिद्दिकी भोपाल के 80 के दशक में बड़े लीडरों में से एक थे, जिनकी पैदाइश भोपाल के एक आला मुफ़्ती ख़ानदान में हुई । आपके वालिद मोहम्मद इस्माइल,नवाबी दौर में तहसीलदार थे।शुरूआती तालीम मॉडल स्कूल से की फिर जहांगीरिया स्कूल में पढ़ाई की बाद में सैफिया कॉलेज में दाख़िला लिया। 1960 में सैफिया कॉलेज के स्टूडेंट यूनियन के प्रेसीडेंट बने,1965 में भोपाल की छात्र राजनीति के गढ़ हमीदिया कॉलेज के प्रेसीडेंट बने, 65 में ही एमपी यूथ कांग्रेस के वर्किंग कमेटी मेंबर बने उस एमपी यूथ कांग्रेस के कंवीनर अर्जुन सिंह थे ।
70 के दशक में विद्यार्थी मोर्चा नाम से आपका स्टूडेंट यूनियन था जो हर कॉलेज में चुनाव लड़ता था।1971 में संजय गांधी ने भारत में NSUI का गठन किया और हसनात सिद्दीकी मध्य प्रदेश NSUI के अध्यक्ष बनाए गए। उस समय भोपाल यूनिवर्सिटी नहीं थी और भोपाल के छात्र उज्जैन यूनिवर्सिटी में आते थे।आपने भोपाल के सारे छात्र नेताओं को एक मंच पर लाकर भोपाल यूनिवर्सिटी बनाने की तहरीक़ की शुरुआत की, इस बड़े आंदोलन में भारी मात्रा में लाठीचार्ज और गिरफ्तारियां हुई और छात्र भोपाल में यूनिवर्सिटी स्थापित कराने में सफल हुए। 1978 में भोपाल यूनिवर्सिटी का पहला चुनाव आपने डॉ शंकर दयाल शर्मा की पुत्री गीतांजली माकन को लड़वाया और अध्यक्ष बनवाया। जिसके बाद वह NSUI की राष्ट्रीय अध्यक्ष बनी।
छात्र राजनीति के समय में ही उन्होंने अंग्रेजी अखबार ‘Hitvada’ में अपनी पहली नौकरी की, दिन में वे कॉलेज जाते और रात में नाइट शिफ्ट में अखबार में लिखते।बाद में वे ‘MP Chronicle’ और ‘Free Press Journal’ जैसे अखबारों में उच्च पदों पर रहे।
आप हॉकी के बड़े कॉमेंटेटर भी रहे।भारत के अलग अलग शहरों में हॉकी टूर्नामेंट में कमेंट्री के लिए आपको बुलाया जाता था और खुद एक बेहतरीन क्रिकेटर होने के साथ,भारत की क्रिकेट टीम के कप्तान नवाब पटौदी के करीबी मित्र भी थे, जिनके साथ वे अक्सर भोपाल में देखे जाते थे। वे भोपाल के छात्रों में बहुत लोकप्रिय थे और कई छात्रों की फीस तक खुद दिया करते थे। मशहूर फिल्म लेखक जावेद अख्तर कॉलेज में आपके जूनियर थे, एक कार्यक्रम में कहते हैं ” हसनात भाई अगर किसी को अपना बनाना चाहे, तो यह हो नहीं सकता था कि वह इंसान उनका ना हो जाए, ऐसा जादू था उनमें।”
ये था आपका स्टूडेंट पॉलिटक्स में सफ़र ,
अब आपकी सियासी करियर पर नज़र डालते है ।
1977 और 1980 में कांग्रेस पार्टी के द्वारा टिकट नहीं दिए जाने पर,आपने नाराज हो कर 1985 में बीजेपी के टिकट पर भोपाल दक्षिण से चुनाव लड़ाऔर चुनाव जीतकर पहली बार विधायक बने पर 85 में “शाहबानो” वाले केस पर बीजेपी का स्टैंड देखकर आपने पार्टी की मेंबरशिप के साथ साथ विधानसभा से भी इस्तिफ़ा दे दिया। तब अटल बिहारी वाजपेयी ने आपसे बातकर इस्तिफा ना देने के लिए मनाया पर आप नहीं माने। 1986 के उपचुनाव में कांग्रेस पार्टी ने उनको टिकट दिया, जिसमें आपने बीजेपी के कैंडीडेट कैलाश सारंग को हराया और अर्जुन सिंह की केबिनेट में मंत्री रहे, बाद में श्यामा चरण शुक्ल की केबिनेट में भी मंत्री रहे।
निज़ी ज़िंदगी में आप एक सदाबहार बहुत खुशमिजाज़ शख्शियत के मालिक थे, जिसमें घमंड गुरूर तक़ब्बुर नाम की कोई चीज़ नहीं थी। मंत्री रहते हुए अक्सर अपने गार्ड और लाल बत्ती की गाड़ी को छोड़कर किसी दोस्त की स्कूटर के पीछे बैठ कर चल दिया करते ।
लेकिन आज सबसे ज्यादा जिस चीज के लिए वह याद किए जाते हैं, वह है उनकी ईमानदारी । रिश्वत के पैसों से भरे सूटकेस घर के बाहर फेंके जाने के और उस पर उनके गुस्से और डांट के किससे आज भी भोपाल की महफिलों में सुनाए जाते है। अपना मंत्री काल और विधायकी खत्म होते ही वह अगले ही दिन अपने अखबार की नौकरी पर वापस लौट गए। 21 फरवरी 2005 को आप ने दुनिया को अलविदा कहा।आपके आखिरी दिनों में सियासत से दूर अपनी इकलौती जीप में कुछ पौधे रखे हुए अपने गांव सिमरई की तरफ जाते हुए देखे जाते थे।
(Info- Syef Khalid Ghani)
Anas Ali