भोपाल नगर निगम में एक से एक नये कारनामे सामने आते रहते हैं और जांच के नाम पर लीपा-पोती कर मामलों को ठण्डे बस्ते में डाल दिया जाता है। दोषी कर्मचारी एवं अधिकारी मजे से अपना कार्य करते रहते हैं और आमजन तथा नगर निगम को इसका खमियाजा भुगतना पड़ता है। इस बार जबसे परिषद का गठन हुआ है और आलोक शर्मा महापौर पद पर आसीन हुए हैं तबसे ही नगर निगम भोपाल की आर्थिक स्थिति खराब चल रही है। समय पर न तो कर्मचारियों को वेतन ही मिला पा रहा है और न ही नगर निगम में हुये कार्यों का भुगतान समय पर हो पा रहा है। इस तंगी को लेकर सभी परेशान हैं।
नगर निगम की आर्थिक तंगी के दो प्रमुख कारण है। पहला तो सही ढंग से नगर निगम द्वारा रोपित करों की वसूली नहीं हो पा रही और पार्किँग एवं होर्डिँग आदि से होने वाली आय भी बहुत कम हो गई है। पार्किंगों के टेण्डर ने होने के कारण नगर निगम कर्मचारियों द्वारा पार्किँगों का संचालन किया जा रहा है, जिसमें की भारी भ्रष्टाचार हो रहा है और आय का बड़ा हिस्सा कर्मचारियों एवं संबंधित अधिकारियों की जेब में जा रहा है। आप अगर उन पार्किँगों की टेण्डर हेतु न्यूनतम मांग राशि का अवलोकन करेंगे तो पायेंगे कि ठेकेदार को लाखों रुपये में पार्किँग का ठेका दिये जाने संबंधी निर्देश हैं। जबकि उन्हीं पार्किँगों का निगम द्वारा संचालन करने पर प्रत्येक माह कितनी आय प्राप्त हो रही है की तुलना करने पर सारा सच सामने आ जायेगा।
इसी प्रकार संपत्ति कर एवं जलकर वसूली में लगे कर्मचारी एवं अधिकारी एक ही वार्ड एवं स्थान पर वर्षों से तैनात हैं, जिनकी स्थानीय नागरिकों से सेटिंग जमी हुई है और वह अपने हिसाब से ही कर वसूली करते हैं। संपत्ति कर वसूली बढ़ाने के लिए नगर निगम के वरिष्ठ अधिकारियों को सबसे पहले ऐसे कर्मचारियों एवं अधिकारियों को चिन्हित करना होगा जो वर्षों से एक ही स्थान पर जमे हुए हैं। इन सभी का स्थानांतरण अन्यंत्र कर उनके स्थान पर दूसरे व्यक्ति को पदस्थ करने पर ही वसूली कार्य में तेजी आ सकेगी।
नगर निगम आयुक्त ने जब से पदभार ग्रहण किया है तब से ही वह वसूली बढ़ाने के लिए भरसक प्रयास कर रही हैं और लगातार समीक्षा कर कार्य में सुस्ती दिखाने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों की वेतनवृद्धि रोकने एवं वेतन रोकने के निर्देश भी दे रही हैं, परंतु बहुत सुधार नहीं हो सका है। इसके लिए सुस्त कार्य करने वाले तथा कम वसूली कर पाने वाले अधिकारियों एवं कर्मचारियों को फौरन बदला जाना आवाश्क है, तभी वसूली कार्य में गति आयेगी।
नगर निगम आय में कमी का दूसरा बड़ा कारण नगर निगम की संपित्तयों का सही प्रकार से दोहन नहीं कर पाना भी है। भोपाल शहर में नगरनिगम की इतन संपित्तयां हैं जिनका सही प्रकार से उपयोग किया जाये तो उनसे काफी आर्थिक लाभ प्राप्त किया जा सकता है। नगर निगम की अनेक ऐसी भूमियां एवं संपत्तियां हैं जिन पर अवैध अतिक्रमण अथवा अवैध कब्जे हैं। इनको मुक्त करा कर आवश्यकता अनुसार उन स्थानों पर व्यवसायिक उपयोग हेतु निर्माण कर नगर निगम की आय में वृद्धि की जा सकती है। नगर निगम की कई बेशकीमती संपत्तियों पर अवैध कब्जाधारी कब्जा कर लाभ उठा रहे हैं और नगर निगम के अधिकारी उनका कुछ नहीं बिगाड़ पा रहे।
महापौर आलोक शर्मा ने भी लगभग एक वर्ष पूर्व परिषद में नगर निगम भोपाल में अलग से संपदा विभाग के गठन की घोषणा की थी, परंतु एक वर्ष बीत जाने के बाद भी उसके सार्थक परिणाम सामने नहीं आ पाये हैं। नगर निगम के अधिकारी न तो नगर निगम की पूरी संपत्ति की सही जानकारी जुटा सके हैं और न ही अतिक्रमणकारियों से अपनी जमीनों एवं संपत्तियों को रिक्त करा सके हैं। हालांकि राज्य शासन के सेवानिवृत्त अधिकारी श्री श्रीराम तिवारी को राजस्व संबंधी मामलों के लिए सलाहकार नियुक्त किया गया है और नगर निगम के कुछ सेवानिवृत्त राजस्व अधिकारियों की सेवाएं भी राजस्व संबंधी कार्यों हेतु लिये जाने की चर्चा चल रही है। परंतु बहुत कुछ सार्थक होता नजर नहीं आ रहा है।
दिनांक 29 जुलाई 2015 को नगरनिगम परिषद की बैठक में कांग्रेस पार्षद श्रीमती रईसा मलिक द्वारा नगर निगम की संपत्तियों के संंबंध में एक प्रश्न पूछा गया था, जिसमें नगर निगम की अनेक संपत्तियों के बारे में जानकारी मांगी गई थी। इसी बैठक में उनकी मांग पर महापौर आलोक शर्मा ने केेटेग्राइज मार्केट (नया कबाडख़ाना) में भूमि आंवटन एवं अवैध कब्जों को लेकर जांच के लिए एक समिति का गठन किया था। परंतु छह माह तक इस समिति की कोई बैठक नहीं हुई। दोबारा परिषद में सवाल उठाने पर आनन-फानन में इस समिति की एक बैठक राजस्व उपायुक्त प्रदीप वर्मा के कक्ष में बुलाई गई और आगे कार्यवाही करने की बात तय हुई। श्री वर्मा ने बताया कि तहसीलदार से दोबारा सीमांकन कराने संबंधी लिखा-पढ़ी चल रही है। परंतु एक वर्ष से अधिक समय गुजर जाने के बाद उक्त समिति की न तो दोबारा बैठक बुलाई गई और न ही जांच की प्रक्रिया आगे बढ़ पाई। इससे साफ प्रतीत होता है कि केटेग्राइज मार्केट के आंवटन में गड़बडिय़ांं हैं और अधिकारी दोषियों को बचाना चाह रहे हैं।
इस बैठक में महापौर आलोक शर्मा ने अपने वक्तव्य में अशोक विहार, कोकता ट्रांसपोर्ट नगर, कबाडख़ाना सहित आठ स्थानों पर नगर निगम की जमीनों की खरीद-फरोख्त में बड़े घोटाले की आशंका जताई थी।
केटेग्राइज मार्केट हेतु भू अर्जन वर्ष 1975 में एवं वर्ष 1978 में कुल 87.13 एकड़ भूमि का किया गया था। व्यवसायियों को भूखण्ड मासिक किराये पर बिना प्रीमियम लिये वर्ष 1975 से लेकर 1989 तक तथा उसके पश्चात वर्ष 2000-2001 से नीलामी के माध्यम से इस प्रकार कुल 874 विभिन्न आकार के भूखण्डों का आवंटन किया गया। आंवटित भूमि के अतिरिक्त शेष भूमि के संबंध में संपूर्ण भूमि का सीमांकन एवं सर्वे कराये जाने की बात कही गई। परंतु कोई भी कदम नहीं उठाया गया। आज उक्त क्षेत्र में ढेरों अवैध अतिक्रमणकारियों ने कब्जे कर लिये हैं, तथा लोगों ने अधिकारियों की सांठ-गांठ से आंवटित भूमि से अधिक भूमि पर कब्जा कर लिया है।
नगर निगम यदि केटेग्राइज मार्केट का ही ठीक ढंग से सर्वे एवं सीमांकन करवा ले तो उसकी काफी भूमि उसके कब्जे में आ जायेगी और आज वर्तमान बाजार दर से उसकी नीलामी करने पर नगर निगम को करोड़ों की आय होगी। देखना यह है कि इस प्रकरण में महापौर आलोक शर्मा एवं आयुक्त कितनी तेजी से निर्णय लेते हैं और आगे क्या कार्यवाही होती है।
भोपाल में किसी समय पर नगर निगम के चुंगी नाके स्थापित थे। आज वह सभी नाके समाप्त हो चुके हैं और उनकी भूमि पर अन्य कार्य हो रहे हैं। इनमें से संत हिरदाराम नगर का स्टेशन रोड पर स्थित चुंगी नाका जर्जर अवस्था में है जिसका कोई उपयोग नहीं हो रहा है। पुल बोगदा जहांगीराबाद स्थित नाके पर अतिक्रमण हो गया है और उसका प्रकरण वर्षों से जबलपुर न्यायालय में लम्बित है। हबीबगंज नाका के स्थान पर गणेश मंदिर का निर्माण हो गया है। भदभदा नाका पुराने पुल के पास स्थित था, इसका भी कोई उपयोग नहीं हो रहा है। इसी प्रकार पुराना चुंगी नाका बैरागढ़, सीहोर रोड वार्ड क्रमांक 2 का चुंगी नाका, लालघाटी का चुंगी नाका सहित अन्य भूमि मार्ग विस्तारीकरण में जाना बताया गया है। वर्तमान में जो चुंगी नाकों की भूमि पड़ी है उस पर नगर निगम व्यवसायिक उपयोग कर आर्थिक लाभ प्राप्त कर सकता है।
इसी प्रकार नगर निगम के कांजी हाउस बैरागढ़ थाने के पीछे, गांधी नगर, नबी बाग बैरसिया रोड, शाहजहांनाबाद, माता मंदिर टी.टी. नगर, मिसरौद, बावडिय़ा ग्राम, अन्ना नगर, जहांगीराबाद, खजूरी कलां आदि स्थानों पर स्थित थे। इन भूमियों का वर्तमान में क्या उपयोग हो रहा है किसी को पता नहीं है। माता मंदिर स्थित कांजी हाउस की जमीन सीआई बिल्डर्स को दे दी गई और आज वहां एक बड़े हिस्से पर बहुमंजिला इमारतें बनी हुई हैं और इनमें से कुछ फ्लेटों के मालिक नगर निगम के कुछ अधिकारी और कर्मचारी हैं। यह भूमि किस प्रकार से सीआई बिल्डर को दी गई एवं किस प्रकार वहां बहुमंजिला भवन का निर्माण हुआ यह भी जांच का विषय है। अन्ना नगर और जहांगीराबाद के कांजी हाउस पर अतिक्रमणकारियों के कब्जे हैं। इसी प्रकार अन्य कांजी हाउस की भूमियां भी हैं। इन सभी की जांच कर इनको अतिक्रमणकारियों से मुक्त करा कर नगर निगम अपने उपयोग में ले सकता है।
गांधी नगर के आगे आलसेंट कॉलेज के पास 2.49 एकड़ भूमि नगर निगम की है जिस पर वर्तमान में नर्सरी संचालित होना बताया गया है। उक्त भूमि का भी व्यवसायिक उपयोग किया जा सकता है। इसी प्रकार से भानपुर खंती के पास नगर निगम की भूमि है जिस पर दूसरे लोग कब्जा किये हुये हैं। यदि पूरी ईमानदारी और मेहनत के साथ नगर निगम का संपदा विभाग अपनी संपत्तियों की जानकारी जुटाये तो बहुत सी संपत्तियां ऐसी सामने आयेंगी जिनके बारे में नगर निगम के बहुत से अधिकारियों को भी नहीं मालूम और उन पर अवैध कब्जे हैं।
इसी प्रकार से नगर निगम के संबंधित अधिकारियों ने एक और गड़बड़ की है। नगर निगम की अनेक संपित्तयों का आज तक तहसील कार्यालय में नामांतरण नहीं कराया और उक्त संपत्तियां नगर निगम की होने के बावजूद नजूल और शासन के नाम पर चढ़ी हुई हैं। ऐसी संपत्तियों के विवाद न्यायालय में जाने पर नामांतरण नहीं होने के कारण नगर निगम का पक्ष कमजोर पड़ता है और अतिक्रमणकारियों और अवैध कब्जाधारियों को लाभ मिलता है।
नगर निगम के संपदा विभाग को तत्काल प्रभाव से नगर निगम की ऐसी संपत्तियों को चिन्हित कर उनका नामांतरण कराने के प्रयास करना होंगे ताकि नगर निगम की संपत्तियों को गलत हाथों में जाने से बचाया जा सके।
नगर निगम की संपत्तियों एवं कालोनियों में प्लाट आवंटन में भी भारी गड़बडिय़ां एवं भ्रष्टाचार किया गया है। इसी कड़ी में लोकायुक्त की फटकार के बाद अशोक विहार कॉलोनी में आठ वर्ष पूर्व प्लॉट आंवटन को लेकर की गई गड़बडिय़ों को लेकर नगर निगम के चार अधिकारियों सहित सात व्यक्तियों के विरुद्ध अशोका गार्डन थाने में एफआईआर दर्ज हुई। इस कॉलोनी में 100 से ज्यादा प्लाटों के दस्तावेज गायब होने की भी शिकायत है।
पुलिस के अनुसार वर्ष 2006 में तत्कालीन वार्ड प्रभारी और जोनल अधिकारी से सांठगांठ कर गड़बड़ी को अंजाम दिया गया था। इसमें नगर निगम के कर्मचारी लालचंद पमनानी, महेश माथुर और मनोहर सक्सेना की भी मिलीभगत उजागर हुई। इस प्रकरण में अब्दुल हफीज, शेख मुहीउद्दीन और अताउल्ला के विरुद्ध भी प्रकरण दर्ज किया गया है। इस प्रकरण की जांच लोकायुक्त में भी लम्बित है।
अशोक विहार में 40 वर्ष पूर्व कचरा खंती थी। जब यह भर गई तो वर्ष 1980 में इस जमीन को नगर निगम के कर्मचारियों को आवंटित करने का निर्णय किया गया। दर थी महज 1.05 रुपए प्रति वर्गफिट। सस्ती दर के कारण नगर निगम कर्मचारियों ने इसमें आवेदन दिया, लेकिन अधिकारियों ने गड़बड़ी कर बाहरी व्यक्तियों को प्लाट आवंटित कर दिये। नगर निगम के लगभग 300 कर्मचारी ऐसे हैं जो सेवानिवृत्त होने के बाद भी आज तक प्लाट आवंटन की बाट जोह रहे हैं।
देखना यह है कि नगर निगम के अधिकारी एवं महापौर आलोक शर्मा नगर निगम की संपत्तियों को लेकर कितने गंभीर हैं और इनको अतिक्रमणकारियों मुक्त कराने एवं इसकी उचित देख-रेख के लिए क्या कदम उठाते हैं। – सैफ मलिक