भोपाल की गंगा-जमुनी संस्कृति से तो वैसे सभी परिचित हैं और यहां आने वाले व्यक्ति भी यहां के माहौल से प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाते। किन्तु ऐसे बहुत कम लोग हैं जिन्हें भोपाल रियासत के दौर की संस्कृति, यहां के रहन-सहन और रिवायकों के विषय में जानकारी हो। यहां तक की भोपाल की वर्तमान युवा पीढ़ी भी यहां की पुरानी संस्कृति, भाईचारे तथा गंगा जमुनी संस्कृति से अपरिचित हैं। भोपाल रियासत के दौर में भोपाल की संस्कृति और रियासतों के संबंध में भी किसी किताब में विस्तार से जानकारी नहीं मिलती। इसी को ध्यान में रखते हुए इतिहासकार श्रीमती वंदना राग ने एक सराहनीय पहल की है। श्रीमती राग इन दिनों भोपाल रियासत की तहज़़ीब, रिवायतें, जीने के ढंग आदि पर एक पुस्तक का लेखन कर रही है, जिसमें उन्होंने उस दौर के हालात का सटीक चित्रण करने का प्रयास किया है। उनकी यह पहल वास्तव में भोपालवासियों के लिए एक बहुत बड़ा तोहफा होगा। क्योंकि अभी तक इस विषय को ध्यान में रखते हुए कोई भी किताब प्रकाशित नहीं हुई हैं। इस प्रयास के लिए श्रीमती वंदना राग नि:संदेह बधाई की पात्र हैं। इसी विषय को लेकर उनसे रईसा मलिक द्वारा की गई बातचीत के कुछ अंश प्रस्तुत किये जा रहे हैं।
प्र. वंदना जी आपके परिवार में कौन-कौन हैं?
उ. मेरे परिवार में मेरे पति श्री पंकज राग एवं एक पुत्र तथा एक पुत्री है।
प्र. आपकी शिक्षा-दीक्षा कहां पर हुई?
उ. मैंने दिल्ली से इतिहास में एम.ए. किया है।
प्र. इतिहास में लेखन हेतु आपको प्रेरणा किससे प्राप्त हुई?
उ. मेरे पति श्री पंकज राग जी से मुझे प्रेरणा मिली, वह स्वयं भी इतिहास में एम.ए. हैं और इस विषय में उनकी रूचि को देखते हुए मुझे भी इस विषय से लगाव हो गया।
प्र. इस काम में आपके परिवार का आपको कितना सहयोग मिला?
उ. मेरे पति ने तो मेरा हौसला सदैव बढ़ाया ही, मेरे सास-ससुर ने भी मुझे इस काम को करने के लिए उत्साहित किया और मुझे हर संभव सहयोग प्रदान किय। मेरे ससुर इतिहास के प्रोफेसर रही हैं। इस काम के लिए मुझे मेरे परिवार से बहुत प्रोत्साहन एवं सहयोग मिला।
प्र. भोपाल रियासत की संस्कृति और रहन-सहन पर पुस्तक लिखने का विचार आपके मन में कैसे आया?
उ. भोपाल आने के पश्चात् हम लोग भोपाल के भ्रमण पर निकले और भोपाल की पुरानी इमारतों को देख कर मेरे मन में इनके बारे में जानने की एक ललक पैदा हुई। विशेष कर इस्लाम नगर के भ्रमण के दौरान मन में विचार आया कि क्यों न भोपाल रियासत के शासकों तथा उस दौर की रिवायतों, संस्कृति तथा रहन-सहन के बारे में विस्तार से जाना जाए।
प्र. आपकी पुस्तक की विषय वस्तु क्या है?
उ. मैंने भोपाल रियासत के इतिहास से संबंधित कई पुस्तकों का अध्ययन किया तो मैंने पाया कि उस दौर की संस्कृति, रहन-सहन तथा रिवायतों के विषय में विस्तार से बहुत कम लिखा गया है। यहीं से मुझे लगा कि इन विषयों पर केंद्रित करते हुए एक पुस्तक की रचना की जाए जिसमें उस दौर के शासकों तथा आम जनता के रहन-सहन एवं संस्कृति के संबंध में लिखंू।
प्र. पुस्तक लिखने के लिए जानकारी आपने कहां-कहां से प्राप्त की?
उ. मैेंने सर्वप्रथम तो भोपाल रियासत पर उपलब्ध समस्त पुस्तकों का अध्ययन किया। इसके पश्चात् मैंने भोपाल में रहने वाले पुराने भोपाली परिवारों से भेंट की और उनसे उस दौर के रहन-सहन, संस्कृति आदि विषयों पर जानकारी एकत्रित की।
प्र. भोपाल रियासत पर कुछ पुस्तकें उर्दू भाषा में भी हैं, इनका अध्ययन आपने किस प्रकार किया?
उ. मैं थोड़ी-बहुत उर्दू जानती हूं तथा उर्दू विषय के जानकार लोगों की मदद भी मैंने इन पुस्तकों को समझने के लिए ली।
प्र. आप भोपाल में किन-किन लोगों से इस संबंध में मिलीं?
उ. मैंने नवाब परिवार से संबंध रखने वाले लोगों, रियासत में शासकीय पदों पर रहने वाले लोगों से तथा जागीरदार परिवार के लोगों के साथ ही भोपाल में निवास करने वाले पुराने लोगों से मुलाकात की। इनमें अख्तर सईद खां, फजल मियाँं, ऐना मियां, तथा शकीला बानों भोपाली आदि प्रमुख हैं जिनसे मुझे काफी जानकारी प्राप्त हुई।
प्र. भोपाल रियासत की संस्कृति के संबंध में आपको क्या जानकारियां उपलब्ध हुईं।
उ. मुझे ज्ञात हुआ कि उस दौर में भी भोपाल में गंगा जमुनी संस्कृति का बोलबाला था और रियासत में उच्च पदों पर हिन्दू समाज के लोग भी आसीन थे। यहां पर पठनी कल्चर था और यहां पर पर्दे के बावजूद महिलाएं पढऩे-लिखने में रूचि लेती थीं।
प्र. आपने इस पुस्तक के संबंध में रिसर्च कब से प्रारंभ की?
उ. मैंने दिसम्बर 2004 से इस संबंध में रिसर्च कार्य प्रारंभ किया है।
प्र. आपकी इस पुस्तक के कब तक प्रकाशित होने की संभावना है?
उ. मैं अंग्रेजी भाषा में पुस्तक लिख रही हूं तथा आगामी 7-8 माह में इस पुस्तक के प्रकाशित होने की संभावना है तथा इसके पश्चात् इस पुस्तक का उर्दू में अनुवाद भी प्रकाशित किया जायेगा।
प्र. इसके अतिरिक्त आपकी अन्य रूचियां क्या हैं?
उ. मैं इससे पहले भी लेखन कार्य में संलग्र रही हूँ तथा कुछ लघु कथाएं भी मैंने लिखी हैं। इसके अतिरिक्त कुछ आलेख भी समाचार पत्रों में प्रकाशित हुए हैं। भोपाल की शख्सियतों पर भी एक पुस्तक की रचना करने का इरादा है।
उ. भोपाल में तो बेगमात का शासन रहा है और उन्होंने बहुत सी इमारतों का निर्माण कार्य करवाया। इसके साथ ही उन्होंने बहुत ही अच्छे ढंग से रियासत का शासन चलाया और बहुत से अच्छे-अच्छे काम किये। जिनमें अस्पतालों का निर्माण, स्कूलों की स्थापना तथा विशेष कर महिला शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया। इन्हीं पुरानी बेगमात से प्रेरणा लेते हुए आज की महिलाएं भी अपने जीवन में ऐसे कार्य कर सकती हैं जो समाज तथा राष्ट्रहित में हों और उनके कार्यों को लोग याद रखें। विशेष कर शिक्षा पर ध्यान दें तथा अपनी बच्चियों को अवश्य शिक्षित बनाएं। एक पढ़ी-लिखी महिला अपने परिवार, अपने बच्चों की बहुत अच्छे से देखभाल कर सकती हैं।
प्र. इस पुस्तक के लिए रिसर्च के दौरान आपने क्या अनुभव किया?
उ. भोपाल की संस्कृति का गंगा जमुनी स्वरूप मुझे बहुत पसंद आया। यहां के लोगों की आत्मियता भी मुझे अच्छी लगी। पुराने लोगों से भेंट के दौरान मैंने महसूस किया कि उनके रहन-सहन में काफी बदलाव आया है। विशेषकर जागीरदार परिवार के लोगों की स्थिति पहले से बहुत दयनीय हो गई है और उनके पहले के रहन-सहन में काफी परिवर्तन हुआ है।
प्र. भोपाल रियासत के दौर में महिलाओं की स्थिति आपने कैसी पाई्?
उ. भोपाल रियासत के दौर में महिलाओं में पर्दा प्रथा थी, लेकिन इसके बावजूद भी इनकी पढऩे-लिखने में रूचि थी तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के समय कई महिलाएं चिकित्सक तथा शिक्षक आदि के पदों पर कार्यरत थीं।
भोपालवासी अपनी धरोहरों को संभालने के लिए आगे आएं
श्रीमती वंदना राग का कहना हेै कि भोपाल रियासत के काल की बहुत सी इमारतें और अन्य वस्तुएं हैं जिन में से कुछ बहुत खस्ताहाल हैं और दिन ब दिन उनकी हालत खराब होती जा रही है। ऐसे में भोपाल के नागरिकों को स्व्प्रेरणा से आगे आना चाहिए और अपनी पुरातन विरासतों और धरोहरों को बचाने के लिए प्रयास करना चाहिए। केवल शासन और प्रशाासन के भरोसे ही इनको छोड़ देने से काम नहीं चलेगा। इसके लिए जागरूक और जिम्मेदार नागरिकों को आगे आकर एक फोरम बनाना चाहिए और इनके संरक्षण के लिए प्रयास करना चाहिए।
उन्होंने इस संबंध में उदाहरण देते हुए बताया कि चंडीगढ़ में एक झील थी जो प्रदूषण के कारण समाप्त होती जा रही थी। वहां के निवासियों ने जिनमें महिला-पुरूष, युवा-वृद्ध सभी वर्ग के लोग सम्मिलित थे। उन सभी ने मिल कर इसकी साफ-सफाई की और इसे बचा लिया। इसी प्रकार मुम्बई में जब कोई इमारत 100 वर्ष से अधिक पुरानी हो जाती हैं तो वहां के निवासी आगे आकर इसके संरक्षण में भागीदार बनते हैं और अपनी धरोहरों को बचाने में जुट जाते हैँ। भोपालवासियों को अपनी धरोहरों को बचाने और उन्हें संरक्षित करने के लिए आगे आना होगा, तभी आने वाली पीढ़ी इस शहर की शानदार विरासत और धरोहरों से रूबरू हो सकेगी।
(सातवां फलक के अगस्त 2005 के अंक में प्रकाशित)