भोपाल में कुछ ऐसे शायर भी हैं जिन्होंने बहुत खूबसूरत कलाम लिखे हैं, परंतु आज के हालात में वह फिट नहीं बैठते क्योंकि उनकी फितरत में खुशामदपसंदी नहीं है और वो अपने आप में मस्त रहना पसंद करते हैं। ऐसे ही एक शायर हैं मंजूर भोपाली।
मंजूर भोपाली ने फिल्मों में भी गीत लिखे हैं और उनके लिखे कई गीत व गज़लें अनेकों गजल गायकों ने गाई हैं। भोपाल में जन्मे मंजूर भोपाली विगत 30-35 वर्षों से गीत-गज़ल एवं दोगाने लिख रहे हैं। उन्होंने देशभक्ति, राष्टï्रीय एकता सहित लगभग सभी विषयों पर गीत-गजल लिखी हैं। वो बताते हैं कि मशहूर फिल्मी गीतकार शकील बदायूंनी से प्रभावित होकर उन्होंने शायरी करने का फैसला किया। उनके गीत-गजलें दूरदर्शन एवं आकाशवाणी पर भी प्रसारित किये जा चुके हैं।
वर्ष 1985 में उन्होंने फिल्म सिला के लिए गीत लिखा। उनके लिखे गीत-गजलों को दो राही नामक कैसेट में अशोक सिंह एवं वंदना चटर्जी ने गाया है। उनका एक काव्य संग्रह शाम-ए-गम के नाम से 20-25 वर्ष पूर्व प्रकाशित हुआ था। वे बताते हैं कि जीवन की विसंगतियों ने ही तड़प और दर्द ने कलम चलाना सिखा दिया। उनकी शायरी में इश्क, मोहब्बत, जुदाई, तड़प, शोखी पाई जाती है। हर रंग को बखूबी गीत-गजल व नज़्म में पेश किया है। उनकी गजलेें उर्दू-हिन्दी की अनेेकों पत्र-पत्रिकाओं में प्रकााशित हो चुकी हैं। उनका लिखा एक रूपक आओ दीप जलायें 1984 में आकाशवाणी से प्रसारित हुआ था। मंजूर भोपाली की गजलों-गीतों में ऐसी गहराई होती है कि सुनने वाला उसमें डूब जाता है। आज के दौर की भेड़चाल से उनको सख्त नफरत है और यही कारण है कि वे मुशायरों और इस प्रकार के दूसरे आयोजनों से दूर रहते हैं। उनका कहना है कि खुशामंद पसंदगी से कुछ भी हासिल करना अपने सम्मान का सौदा करना है।
एकता का गीत
नफरत को हर दिल से मिटाते चले चलो।
दीपक मोहब्बत के जलाते चले चलो॥
झगड़े ये ऊंच-नीच और ज़ात-पांत के।
अपने वतन से इनको मिटाते चले चलो॥
गुलशन वही है जिसमें खिलें हर तरह के फूल।
हर दिल में ऐसा बाग लगाते चले चलो॥
तोड़ी है सबने मिल कर जंजीर गुलामी की।
भूले हुओं को ये भाी बताते चले चलो॥
मालिक भी सबका एक है मंजिल भी सबकी एक।
उपदेश सत्य सांई सुनाते चले चलो॥
है जिन्दगी और मौत में एक पल का फासला।
उस पल की याद सबको दिलाते चले चलो॥