मजहर इमाम

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मज़हर इमाम के पिता का नाम सैयद अमीर अली था। उनका जन्म 3 मार्च 1930 को जिला दरभंगा बिहार में हुआ। उन्होंने उर्दू भाषा में मगध विश्वविद्यालय से एम.ए. किया। इसके साथ ही वो फारसी भाषा से भी लगाव रखते थे। इसलिए उन्होंने फारसी भाषा में बिहार विश्वविद्यालय से एम.ए. किया। एम.ए. की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात श्रीनगर में दूरदर्शन के निदेशक के रूप में शासकीय सेवा प्रारंभ की। उनका पहला काव्य संकलन Ó$जख़्मे तमन्नाÓ 1962 में प्रकाशित हुआ जिसको साहित्यिक जगत के लोगों ने बहुत पसंद किया।
मजहर इमाम के अब तक लगभग छह काव्य संकलन प्रकाशित हो चुके हैं। ‘रिश्ता गूंगे सफर काÓ 1974 में प्रकाशित हुआ। इसमें गजलें और नज़्में दोनों मौजूद हैं। ‘बंद होता हुआ बाज़ारÓ, ‘पिछले मौसम के फूलÓ 1987, में प्रकाशित हुआ, इसमें उन्होंने ने हिन्दी लिपि में अपनी गजलें प्रकाशित कीं। इनका नवीनतम काव्य संग्रह ‘पालकी कहकशां कीÓ है जो 2000 में प्रकाशित हुआ है।
इसमें कोई शक नहीं है कि उन्होंने नज़्में भी लिखीं, लेकिन वो अपनी गजल ही की वजह से प्रसिद्घ हुए। इनकी शायरी पर क्लासिकी असर दिखाई देता है। उनके यहां हुस्न व इश्क के विषय पाये जाते हैं मगर इनमें बनावट और बनावटीपन नजर नहीं आता है। बल्कि ये वास्तविकता से अधिक करीब हैं। उन्होंने भावनाओं को उजागर करने का प्रयास किया। मजहर इमाम ने वर्तमान समय के बहुत से विषयों को अपनी गजलें प्रस्तुत की हैं। उनकी शायरी में दर्द भी है और हलका सा व्यंग्य भी छुपा हुआ प्रतीत होता है। जो उनकी शायरी को और ज्यादा परिपक्वता प्रदान करता है।
मजहर इमाम ने कुछ आलोचनात्मक आलेख भी जैसे ‘आती जाती लहरेंÓ 1979, ‘एक लहर आती हुईÓ भी लिखे हैं। उ.प्र. उर्दू अकादमी और बिहार उर्दू अकादमी की ओर से उन्हें सम्मानित भी किया गया है। – सैफ मलिक
मजहर इमाम की ग़जल
मैं जानता हूं वो नजदीक व दूर मेरा था।
बिछड़ गया जो मैं उस से कुसूर1 मेरा था॥
जो पांव आये थे घर तक मेरे वो उसके थे।
वो दिल बढ़ा था जो उसके हुजूर में मेरा था॥
बड़ा गुरूर2 था दोनों को हमनवाई3 पर।
निगाह उसकी थी, लेकिन सुरूर4 मेरा था॥
वो आंख मेरी थी जो उस के सामने नम थी।
खामोश वो था कि यौमे नुशूर5 मेरा था॥
कहा यह सब ने कि तो वार थे उसी पर।
मगर यह क्या, कि बदन चूर-चूर मेरा था॥
शब्दार्थ :- 1- दोष, 2- घमंड, 3-साथी, 4- नशा, 5- मुर्दे के कयामत के दिन उठने का दिन