पाकिस्तान की मशहूर शायरा परवीन शाकिर का जन्म 24 मार्च 1952 को कराची में हुआ। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में एम.ए. एवं पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। उनका विवाह सैयद नासिर अली के साथ सम्पन्न हुआ। उनका एक पुत्र सैयद मुराद अली है। उनका दुखद निधन 29 दिसम्बर 1994 को मात्र 42 वर्ष की आयु में एक सड़क दुर्घटना में हो गया।
परवीन शाकिर का खुश्बू के नाम से पहला काव्य संग्रह 1976 में प्रकाशित हुआ। उनको आदमजी अवार्ड से सम्मानित भी किया गया। उनके अन्य संग्रह हैं- इंंकार, सद-बर्ग, खुद कलामी, काफ-ए-आईना। इसके अतिरिक्त उनके द्वारा समाचार पत्र में लिखे जाने वाले कॉलम गोशा-ए-चश्म को पाकिस्तान सरकार द्वारा विशेष पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
परवीन शाकिर ने बहुत कम उम्र से ही लिखना प्रारंभ कर दिया था। उन्होंने शायरी के साथ ही लेख आदि भी लिखे। उनकी शायरी में प्रमुख रूप से प्रेम, महिलाओं की भावनाओं एवं सामाजिक विषयों पर लिखा गया है। परवीन शाकिर पहली पाकिस्तानी महिला शायरा मानी जाती हैं जिन्होंने पुरुषों के आधिपत्य वाले इस क्षेत्र में अपनी अलग पहचान कायम की। उनकी कई गज़लें बहुत प्रसिद्घ हुईं और अनेक गजल गायकों ने उनकी गजलो को अपनी आवाज दी है। उनकी प्रसिद्घि केवल पाकिस्तान तक नहीं थी अपितु अपनी शायरी के दम पर उन्होंने पूरी दुनिया में अपनी एक अलग पहचान कायम की। – सैफ मलिक
कुछ तो हवा भी सर्द थी, कुछ था तिरा खयाल भी
दिल को ख़्ाुशी के साथ-साथ होता रहा मलाल भी
बात वो आधी रात की, रात वो पूरे चांद की
चांद भी ऐन चैत का, उस पे तिरा जमाल1 भी
सबसे नज़र बचाके वो, मुझको कुछ ऐसे देखता
एक दफा तो रूक गई गर्दिशे-माह-ओ साल2 भी
दिल तो चमक सकेगा क्या, फिर भी तराश के देख लें
शीश: गराने3 शहर के हाथ का ये कमाल भी
उसको न पा सके थे जब, दिल का अजीब हाल था
अब जो पलट के देखिये, बात थी कुछ मुहाल भी
मिरी तलब था एक शख़्स, वो जो नहीं मिला तो फिर
हाथ दुआ ये यूँ गिरा, भूल गया सवाल भी
शाम की नासमझ हवा, पूछ रही है इक पता
मौजे-हवा-ए-कू-ए-यार4, कुछ तो मिरा ख्य़ाल भी
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कू-ब-कू 5 फैल गई बात शनासाई6 की
उसने खुशबू की तरह मिरी पज़ीराई7 की
कैसे कह दूं कि मुझे छोड़ दिया है उसने
बात तो सच है, मगर बात है रूसवाई8 की
वो कहीं भी गया, लौटा तो मिरे पास आया
बस, यही बात है अच्छी मिरे हरजाई की
तिरा पहलू, तिरे दिल की तरह आबाद रहे
तुझ पे गुज़रे न कयामत शबे-तनहाई की
उसने जलती हुई पेशानी पे जो हाथ रखा
रूह तक आ गई तासीर9 मसीहाई10 की
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बादबाँ खुलने से पहले का इशारा देखना
मैं समुन्दर देखती हूँ, तुम किनारा देखना
यूँ बिछडऩा भी बहुत आसाँ न था उससे मगर
जाते जाते उसका वो मुड़ कर दुबारा देखना
किस शबाहत11 को लिये आया है दरवाज़े पे चांद
ऐ शबे-हिज्राँ12 ज़रा अपना सितारा देखना
आईने की आँख ही कुछ कम न थी मिरे लिये
जाने अब क्या क्या दिखाएगा तुम्हारा देखना
शब्दार्थ=– 1- सुंदरता, 2-काल का चक्र, 3- शीशे का सामान बनाने वाला, 4-यार के आंगन की हवा,5-आंगन-आंगन,6-जान पहचान, 7- स्वीकार करना, 8-बदनामी, 9- असर, 10- ईसा मसीह का छूना, 11- रूप, 12- जुदाई की रात।