सूफियाना महफिलों में शिरकत करने से रूह को फऱहत और ताज़गी मिलती है। महफिले समां रूहानी गिज़ा हासिल करने का बहुत अच्छा ज़रिया है। भोपाल के अवाम सूफियाना रंग के दिलदादा हैं। फन और फनकार की कद्र, शैर को समझना, मौसिकी से लुत्फअन्दोज़ होना, उसकी बारीकियों को समझना, भरपूर दाद देना भोपाल के अवाम की खूब है। ये बात आलमी शोहरत के मालिक कव्वाली के बेताज बादशाह हाजी असलम साबरी साहब ने मुझसे भोपाल में हुई एक मुलाकात में कही।
हाजी असलम साबरी साहब ने कव्वाली को उसके मेयार के मुताबिक उरूज बख्शा, मुम्बई के फिल्मी और हलके-फुलके बाजारी रंग से निकाल कर उसे सूफियाना पैराहन से अराास्ता करके, शायस्तगी और अदब के साथ महफिले समां में ला बिठाया। साबरी साहब की महफिलें सूफियाना रंग से सराबोर रहती हैं। अदब का पूरा लिहाज़ रहता है, प्रोग्राम के दौरान चलना-फिरना उनको सख्त नागवार गुज़रता है। वह साफगोई से टोक देते हैं। म्यूजि़क सिस्टम के सिलसिले में वह बहुत नाज़ुक मिजाज़ हैं, ज़रा सी भी खराबी बर्दाश्त नहीं होती।
ये बात बहुत कम लोगों को मालूम होगी कि हाजी असलम साबरी साहब फने कव्वाली के जितने अच्छे शहसवार हैं उतने ही अच्छे शायर भी हैं। नात और $गज़ल दोनों सिनफों में अच्छा शेर कहते हैं। हाजी असलम साबरी साहब बहुत सुरीले गले के मालिक हैं। नातों और गज़लों की कम्पोजिंग राग-रागनियों पर आधारित होती है। दौरन कव्वाली उनकी सबसे बड़ी खूबी शैर के मुताबिक उसमें गिरह लगाना है। गिरह लगाना अपने आपमें एक बहुत बड़ा फन है और इस फन में असलम साबरी साहब का कोई सानी नहीं। हाजी असलम साबरी साहब खुद आशिके रसूल हैं। इसलिए नात को बहुत अच्छे अंदाज़ में पेश करते हैं।
– डॉ. कमर अली शाह, भोपाल