महिला को प्रतिदिन बहुतेरे काम करने होते हैïं। वह एक माँ, बहन और बेटी है, जो परिवार के प्रत्येक सदस्य का ख्याल रखती है। पत्नी अपने पति, बेटी माता-पिता और बहन अपने भाई-बहन का ख्याल रखती है। वह माँ बनती है तो पूरे परिवार खासकर बच्चोïं का ध्यान रखती है, उनके पालन-पोषण, देखभाल, पढ़ाई-लिखाई, उनके व्यक्तित्व और चरित्र-विकास मेïं योगदान करती है। कुल मिलाकर महिला का स्वास्थ्य ही उसके पूरे परिवार का स्वास्थ्य होता है। वो बीमार तो सब बीमार, वो परेशान तो सब परेशान।
रखना होगा खास ख्याल
औरतोंï की सेहत और खुशी का खास ख्याल रखना इसलिए भी जरूरी है क्योïंकि वे अपना दुख-दर्द छिपाती हैïं व अन्य परिजनोंï को प्राथमिकता देते हुए अपनी जरूरतेंï व परेशानियाँ सबसे आखिर मेïं रखती हैं। उन्हेïं भावनात्मक रूप से मजबूत मानकर समाज नजरअंदाज तो करता ही है। लड़कियोïं का पालन-पोषण भी कुछ इस ढंग से होता है कि उनके हक की अनदेखी कर दी जाती है।
पुरुषप्रधान मानसिकता
प्राय: हर घर मेïं पैसा कमानेवाला आदमी ही होता है। औरत उसकी गाढ़ी कमाई को अपने दवा-इलाज तक पर खर्च करना गलत समझती है, अत: कोई भी बात वह एक अर्से तक टालती रहती है। आम तौर पर मर्द समझते हैंï कि औरतोंï को दिनभर काम करते रहना चाहिए, वे जब सोकर उठें, औरत तब तक नहा-धोकर, नाश्ता तैयार कर ले व काम से लौटने पर इंतजार करती मिले व रात मेंï पूरे परिवार को सुला कर ही सोये।
चैन कहाँ, आराम कहाँ
घर के पचासोïं काम से औरत को आकस्मिक छुट्टïी चाहिए हो तो पूरे साल मेंï एक भी दिन नहींï मिलती। पहले कभी मायके जाने और एक -आध माह रहकर आने की प्रथा थी पर अब वह भी खत्म हो गई है, अत: महिला को कभी भी छुट्टïी या आराम नहींï मिलता और वह भली-चंगी रह ही नहींï पाती। यदि वह मानसिक तनाव मेïं है तो किसी से कह नहींï सकती क्योïंकि इसे असभ्यता माना जाता है।
रजोनिवृत्ति का कठिन दौर
औरतोंï मेïं रजोनिवृत्ति उपरान्त दिल की बीमारी, ब्लडप्रेशर, मस्तिष्क रोग, पक्षाघात आदि ज्यादा होते हैïंं व बढ़ती उम्र के साथ-साथ उसमेंï जननेन्द्रियोïं के रोग भी अधिक होते हैं। वक्ष व गर्भाशय-कैïंसर तो बहुत ही आम है क्योïंकि ये ऐसे अंग हैïं, जिन्हेïं किसी पुरुष चिकित्सक को दिखाने मेंï औरतेंï हिचकिचाती हैंï।
ऐसे मेïं उसे डॉक्टरी सलाह और सहारे की अधिक जरूरत पड़ती है किंतु उसे मदद की बजाय कोसा जाता है। फिर वह अवसाद से घिर जाती है। तब उसे नियमित स्वास्थ्य परीक्षण तथा हॉर्मोन रिप्लेस्मेïंट थिरैपी की जरूरत होती है। मौजूदा आँकड़ोï के अनुसार, पुरुषोïं के मुकाबले औरतोंï मेंï मृत्यु -दर बढ़ रहा है।
रखेंï अधेड़ उम्र मेï खास ख्याल
40-45 के बाद प्रत्येक स्त्री को ब्लडप्रेशर, ब्लडशुगर, टी. एम. टी. तथा पेट-पित्त की थैली, गुर्दा, अण्डाशय व गर्भाशय का अल्ट्रा-साउण्ड अवश्य होना चाहिए। 45 वर्ष की उम्र के बाद डाएबिटीज भी बहुत आम है। हृदय की टू डी इको डॉप्लर स्टडी भी अवश्य होनी चाहिए। एक्स-रे जांॅच के जरिये फेफड़ोंï की क्रियाविधि का परीक्षण होना चाहिए क्योïंकि दमा भी इसी उम्र के बाद ज्यादा होता है। यदि सीने मेंï दर्द हो या सांस फूले तो इसे एक खास उम्र की सामान्य प्रक्रिया नहीïं समझना चाहिए। ये सब किसी गंभीर अन्दरूनी बीमारी के सूचक हैï।
नारी को अपने तन-मन की सेवा मेïं भी समय देना चाहिए, मसलन नित्य व्यायाम, टहलना, जिम जाना योगाभ्यास, मसाज आदि व सत्संग के लिए भी हक से समय मांगना चाहिए।
अधिक संतान हैï जंजाल
औरतोïं के स्वस्थ रहने के लिए ये भी जरूरी है कि वे एक ही संतान की माँ बनेï ताकि आबादी भी कम हो सके। साथ ही वे प्रसवकालीन रोगोंï का शिकार न हो पाएं।
जितने ज्यादा बच्चे होते हैïं, प्रसव मेïं खतरा उतना ही अधिक होता है। इसके साथ ही, दो से अधिक बच्चे होने पर पेरीपार्टम कार्डियो-मायोपैथी नामक जानलेवा हृदय रोग भी हो सकता है। बढ़ती उम्र मेंï यदि बच्चे होते रहें तो हर प्रसव के साथ खतरा बढ़ता है। यदि हम स्वस्थ समाज चाहते हैंï तो औरतोïं को स्वस्थ बनाना ही होगा। – आरती