मुस्लिम नौजवानों की जिम्मेदारियां

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तीसरी किश्त
नौजवान युग की दूसरी व्यवहारिक जिम्मेदारियां
तब्लीगः- तबलीग का अर्थ पैगाम (संदेश) को पहुंचा देना है। (अलमुन्जिद) जैसा कि रसूलुल्लाह स.अ.व. को आदेश दिया गया है। ’’ ऐ पैगम्बर! तुम पर तुम्हारे रब ने जो उतारा है उसकी तबलीग करो।‘‘ (माइदा-67) इसी कुरआन में लगातार तबलीग का आदेश दिया गया है। ’’ और तुम में से एक जमाअत ऐसी होनी चाहिए जो लोगों को दीन की ओर बुलाए‘‘- आले इमरान-104
आप स.अ.व. का आदेश है ः लोगों को मेरी ओर से पहुंचा दो यद्यपि (तुम को) को एक आयत मालूम है। (मिश्कात) इसी प्रकार आप स.अ.व. ने फरमाया ः ’’ अल्लाह हरा भरा रखे उस व्यक्ति को जिसने मेरी बात को सुरक्षा के साथ दूसरों तक पहंुचाया‘‘।
तबलीग का तरीकाः कुरआन में है कि अपने रब के रास्ते की ओर हिकमत और अच्छी नसीहत के साथ बुलाओ। (सूरः नहल-125)
हिकमत (उपाय) ः- नौजवान मुबल्लिग (प्रचारक) में तीन गुण होने चाहिए।
1. अवसर को पहचानना।
2. स्वभाव को पहचानना।
3. समय को पहचानना।
प्यारे नबी स.अ.व. की शिक्षाओं के प्रकाश में नौजवानों को चाहिए कि संबोधक के अस्तित्वों को ध्यान रखें। लोगों से उनकी समझ के अनुसार बातीचीत करें। (इब्ने माजा) समय और जमाने की अवस्थाओं को दृष्टिगत रखें।
तबलीग का नियम ः- तबलीग के अंतर्गत निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिएः-
1. जैसे शराब की धर्मनिषेध तीन मरहलों में हुई।
2. सुनने वाले के मनोभावों का ध्यान रखना चाहिए और बुरे परिणाम से नफरत दिलाना और अच्छे परिणाम से प्रलोभन और खुशखबरी देनी चाहिए। यह दृष्टिगत रखना चाहिए कि संबोधक को नफरत न दिलाएं।(बुखारी)
3. अगर किसी विषय पर बहस की जरूरत पड जाए तो बात-चीत में सहनशीलता और शिष्टाचार की परिधि हो। बुद्धि की लडाई न हो संबोधक को हराने का लक्ष्य न हो बल्कि नौजवान प्रचारक (मुबल्लिग) अपनी जिम्मेदारी समझते हुए सहानुभूति के साथ दावत दें।
4. किसी चीज पर मजबूर न करना। दीन (धर्म) में किसी भी प्रकार से कठोरता को उचित नहीं माना गया है। संबोधक को हर प्रकार से दावत दिये जाने की जिम्मेदारी प्रचारक (मुबल्लिग) पर है और हिदायत (निर्देश) अल्लाह पर। जैसा कि कुरआन में है। ऐ नबी-ए-अकरम स.अ.व. जिससे आप प्रेम करते हैं। उसको आप स.अ.व. हिदायत नहीं दे सकते बल्कि अल्लाह तो जिसे चाहता है हिदायत से सम्मानित करता है। (सूरः कसम-56)
5. प्रचारक को चाहिए कि तबलीग के बीच समझदारी से तर्क दे कर संबोधक को लाजवाब करे। कुरआन में आया है कि ’’ निःसंदेह जमीनों-आसमान की पैदाइश और रात-दिन की भिन्नता में बुद्धिमानों के लिए निशानियां हैं। (आले इमरान-190) क्योंकि समझदारी से तर्क देने के बाद बुद्धिमान जल्द समझ जाता है और काम के लिए जल्द तैयार हो जाता है।
6. आसानी पैदा करो सख्ती न करो। (मुस्लिम) यद्यपि दावत देने वालों पर यह आवश्यक है कि दीन को आम प्रचलित अंदाज में आसान बना कर पेश करे ताकि संबोधक उलझन का शिकार हुये बिना कर्तव्य को पूरा करने के लिए तैयार हो जाए। उसकी जात पर भी साबित करने वाला टिप्पणी मुनासिब है क्योंकि इससे भी धार्मिक शिक्षाओं में आसानी होती है।
तबलीग की आवश्यकताएं
हक का ऐलान ः- जिस का आप को आदेश मिला है उसे कर जाइए। (सूरः हजर-94)। आप स.अ.व. ने हक कहने को एक बडा जिहाद (धार्मिक युद्ध) बताया है। (दारमी) इसके अतिरिक्त फरमाया कि ’’ तुम में से जो बुराई के देखे वह हाथ से रोके अगर यह बस में न हो तो जुबान से और यह भी संभव न हो तो दिल से बुरा समझे।‘‘ (बुखारी)
पीडा का निवारणः- इस्लाम का नियम है कि दीन में हानि नहीं। (मसनद अहमद) आप स.अ.व. ने पीडा की किसी चीज को भी दूर करने को ’’सदका‘‘ कहा है। (मोअत्ता) नौजवान प्रचारक की यह जिम्मेदारी है कि हानिकर चीजों से स्वंय और समाज को भी उन से पाक-साफ रखें। इसी प्रकार ’’मुस्लिम‘‘ की शान ही यह है कि उस से लोगों की जान एवं इज्जत सुरक्षित रहे। (मुस्लिम)
कार्य की नित्यता ः- (अर्थात कार्य को निरंतर जारी रखना और सुस्त न पडना)
नौजवानों में सामान्यतः निश्चितंता होती है किन्तु प्यारे नबी स.अ.व. ने हमारी जिम्मेदारियों का नियोजन करते हुए फरमाया कि अल्लाह को सब से प्यारा वह कार्य है जो निरंतर किया जाये। क्योंकि ऐसा कार्य नौजवानों का चरित्र बनाता है तथा उसे जिम्मेदार बनाता है। रसूलुल्लाह स.अ.व. का समय लगा बंधा होता था। वह इंसानी व्यक्तित्व और सौन्दर्य और जीवन का सही मूल्य भी है। (सीरतुन नबी अज शिबली नौमानी)
संतुलनः- ’’अपनी चाल में संतुलन (अर्थात बीच का रास्ता) अपनायें।‘‘ आप स.अ.व. के जीवन का सिद्धांत संतुलित था। (इब्ने हश्शाम) दीन (धर्म) ने संतुलन को नबूवत का चैबीसवां भाग निश्चित किया। (अबु दाउद) अगर आज नौजवान चरमसीमाओं की दोनांे ओर न जाकर संतुलन में रहे तो यह कार्य ही उन्हें ऊंचे दर्जे का जिम्मेदार बना देगा।
जनसाधारण की सेवाः- आप स.अ.व. ने सभी जनसाधारण को अल्लाह का कुनबा (परिवार) बताया है। (जादुल माद) और इस में मुस्लिम और गैर मुस्लिम की कोई कैद नही लगाई। जन साधारण वर्तमान काल के नौजवानों की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है और तबलीग का अच्छा नियम भी है। आप स.अ.व. ने फरमाया कि जिस ने अपने भाई की आवश्यकता पूरी की अल्लाह उस की आवश्यकता पूरी करेगा। (तिर्मिजी)
आप स.अ.व. निर्बल एवं गुलाम, निःसहाय, परिचित एवं अपरिचित प्रत्येक को उस के अवसर पर सेवा करते थे। (जादुल माद)
नौजवान प्रचारक ः- जिन्हें प्यारे नबी स.अ.व. ने जिम्मेदारियों के लिए तैयार करके प्रचाकरीय गुण पैदा किये और उन का अखलाक (सद्व्यवहार) और किरदार (आचरण) संवारा। हजरत अली रजि. को आप स.अ.व. ने यमन भेजा। उन के सही प्रचारकीय व्यवहार के कारण ’’आले हमदान‘‘ ने इस्लाम कबूल किया उस से प्यारे नबी स.अ.व. को बडी खुशी हुई। (बेहिकी)
मुसअब बिन औमैर रजि. को आंहजरत स.अ.व. ने मदीना में अपने आने से पहले भेजा। आप नाजो-नेमत से पले हुए मगर प्रशिक्षित एवं रसूल स.अ.व. की संगति में ढले हुए थे। आप रजि. इब्ने कुलसूम रजि., अबू मूसा असअरी रजि. मुख्य मुसलमान प्रचारक थे। (सीरतुन नबी अज शिबली)
यह रसूले अकरम स.अ.व. के प्रशिक्षित प्रचारक थे। जिन के कारण दीन (धर्म) का फैलाव तेजी से बढने लगा। अतः वर्तमान के नौजवानों की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है कि वह प्यारे रसूल स.अ.व. की शिक्षाओं में ढले हुये उन सहाबा रजि. के व्यवहार एवं गुण की पैरवी करते हुए प्रचार (तबलीग) का काम संभालें। 0 हाफिज मोहम्मद सईद