ईटीवी उर्दू के मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ के प्रमुख महताब आलम पत्रकारिता के साथ-साथ शायरी भी करते हैं और उन्होंने कई मुशायरों एवं नशिस्तों में अपना $कलाम पढ़ा है। अलीगढ़ विश्वविद्यालय से पब्लिक एडमिस्टे्रशन में डॉक्ट्रेट की डिग्री हासिल करने के बाद वो वहीं अध्यापन कार्य करने लगे। उर्दू साहित्य से उनका लगाव शुरू से ही रहा, और कक्षा बारहवीं से ही उन्होंने शेर कहना शुरू कर दिया था। सन्ï 2003 से उन्होंने बा$कायदा मशायरों और नशिस्तों में शिरकत करना शुरू कर दिया।
उनके घर वालों विशेष कर उनके भाई की यह ख़्वाहिश थी कि परिवार में से कोई उर्दू साहित्य की सेवा करे। लिहा$जा मेहताब आलम को विज्ञान संकाय से साहित्य की ओर मोड़ा गया, और उर्दू फारसी की शिक्षा उनको दिलाई गई। अलीगढ़ यूनिवर्सिटी में अध्ययन के समय असद बदायंूनी और शहरयार जैसे शायरों का सानिध्य मेहताब आलम को मिला। 1995 में हुए एक निबंध लेखन प्रतियोगिता में राष्टï्रीय स्तर तक के पुरस्कार जीते। इसके बाद उनकी दिलचस्पी लेखन की ओर हुई तो उन्होंने सबसे पहले जो लेख लिखा उसका विषय था, औरत तरक्की की राह पर ग़ाम$जन। इनके इस लेख को दिल्ली के समाचार पत्र अवाम ने प्रकाशित किया। मेहताब आलम द्वारा लिखे गये लगभग 513 आलेखों का प्रकाशन 2001 तक उर्दूू हिन्दी एवं अंग्रेजी तमाम भाषाओं में हो चुका है।
सन्ï 2000 में पत्रकारिता प्रारम्भ करने के साथ ही वे शेर भी कहते रहे। सन्ï 2003 में भोपाल आने के बाद इस काम में ते$जी आई। ईटीवी में नौकरी के लिये आयोजित परीक्षा में मेहताब आलम ने टाप किया। और उनका चयन ईटीवी के लिये कर लिया गया। प्रारम्भ में उन्हें आगरा में पोस्टिंग दी गई इसके बाद कुछ माह हैदराबाद में भी रहे। इसके बाद 2003 में वे ईटीवी उर्दू के प्रभारी के रूप में भोपाल आये। अलीगढ़, दिल्ली, बनारस और भोपाल आदि के मुशायरों, नशिस्तों में वे शिरकत कर चुके हैं। वे निरंतर साहित्यिक गतिविधियों में संलग्र रहते हैं। अदब से जुड़ी हर महफिल में उनको देखा जा सकता है।
उनका मानना है कि आज दुनिया को प्यार की सख़्त जरूरत है वो कहते हैं कि नफरत तो चन्द दिनों की है और चंद लोगों की वजह से है। कहीं सियासत का दख़्ाल होता है तो कहीं चन्द भटके हुए लोगों का दखल होता है। जब मोहब्बत का रिश्ता आम हो जायेगा तो लोग खुद ही एक दूसरे से गले मिलेंगे।
मैं जानता हूँ दिल मेरा नादान बहुत है,
मिलने का इसे आपसे अरमान बहुत है।
एक सजदा तो कर आये हैं चौखट पे किसी की,
अय जिन्दगी तेरा यही एहसान बहुत है।
जो चाहे वो इल्ज़ाम लगाये तुझे दुनिया।,
हर हाल में तुझपे मेरा ईमान बहुत है।
मख़्लूक की खिदमत रहा जिन लोगों का शेवा,
क्या कहिये उन्हीं लोगों पे बोहतान बहुत है।
दम निकले तेरे पहलू में खिलवत हो या जलवत,
मेहताब के दिल में यही अरमान बहुत है।
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बातें तस्वीर से और तुझसे मोहब्बत करना,
मश्गला शामो सहर है ये इबादत करना।
जर्रे-जर्रे में जो बिखरा हुआ है तेरा जहूर,
दिल को भाता है परिन्दों का तिलावत करना।
ऐसी तहजीब से बच्चों को बचाओ साहब,
जिनकी फितरत बनी जाती है बगावत करना।
आपके प्यार की खातिर हुई रूसवाई मेरी,
मुझको आता भी नहीं दिल को मलामत करना।
कट ही जाएंगी जुदाई की ये रातें मेहताब,
वो जो आ जाये तो उससे न शिकायत करना।
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मेरी उनसे जो बात हो जाती,
दिल नशीं कायनात हो जाती।
रौशनी है नबी की आमद से,
वरना हर सम्त रात हो जाती।
वो अगर हमसफर नहीं होता,
जिन्दगी बे सबात हो जाती।
तुझसे रौशन है जिन्दगी के चिरा$ग,
वरना मुश्किल हयात हो जाती।
कम सुखन से जो गुफ़़्तगू करते,
बात कुछ ख़ास बात हो जाती।
प्यार से जिसको मैंने जीता था,
कैसे मेहताब मात हो जाती।