राजकपूर और श्याम बेनेगल का जन्मदिन 14 दिसंबर को और कवि शैलेंद्र का निर्वाण दिवस। राजकपूर और श्याम बेनेगल अलग – अलग शैली के फिल्मकार हैं – व्यावसायिक सिनेमा और समानांतर सिनेमा के दो महान स्तंभ एक ही दिन जन्मे हैं और शैलेंद्र दोनों ही शैलियों के लिए गीत लेखन की प्रतिभा रखते थे।
स्वयं शैलेंद्र द्वारा निर्मित ‘तीसरी-कसमÓ से समानांतर सिनेमा का दौर शुरू हुआ। कुछ लोग मृणाल सेन की भुवन शोम से दौर का प्रारंभ मानते हैं, जिसमें अमिताभ बच्चन की कामेंट्री थी। गोया कि अमिताभ परदे पर आने के पहले सिनेमाघर में सुने गए।
दिसंबर में ही दिलीपकुमार और राजेश खन्ना भी जन्मे हैं और 28 दिसंबर 1895 को सिनेमा का जन्म भी हुआ था, गोया कि दिसंबर सिनेमा की कुंडली में अत्यंत महत्वपूर्ण है। श्रीमती कृष्णा राजकपूर अपने पुत्रों के साथ बेंगलूर के निकट एक मंदिर में पूजा – पाठ करने गई हैं और 14 दिसंबर को एक लंबी पूजा का समापन है, जो कुछ माह पूर्व उन्होंने प्रारंभ की थी।
कहते हैं कि एक खास पूजा के विधि – विधान के बाद प्रतिवर्ष श्राद्ध करना आवश्यक नहीं रह जाता। भारतीय धर्म के लचीलेपन का कोई जवाब नहीं। हर काम किश्तों में भी हो सकता है और फुल एंड फायनल भी। श्रीमती कृष्णा कपूर ने तेजी से बदलते हुए समाज के तेवर पढ़ लिए हैं और वे अपने जीवनकाल में ही अपने दायित्व से मुक्त होना चाहती हैं।
वे जानती हैं कि उनके बच्चे नेक हैं, परंतु नेकी सृजन का पर्याय नहीं है। ऋषि कपूर का बेटा रनबीर संजय लीला भंसाली का सहायक निर्देशक है और अमिताभ तथा रानी मुखर्जी अभिनीत ‘ब्लैकÓ की निर्माण पूर्व तैयारियों में जुटे हैं। अभी उसे परदे पर आने में दो-तीन वर्ष लगेंगे।
राजकपूर की मृत्यु के बाद भी उनके प्रभाव के कुछ फिल्मकार जैसे सूरज बडज़ात्या, आदित्य चोपड़ा और करण जौहर सक्रिय हैं। राजकपूर की प्रेरणा से राजकपूर के लिए लिखी ऋषिकेश मुखर्जी की ‘आनंदÓ की झलक करण जौहर और निखिल अड़वानी की ‘कल हो न होÓ में देखी जा सकती है।
मुखर्जी ने ‘आनंदÓ बंबई को समर्पित की थी और ‘कल हो न होÓ न्यूयार्क को समर्पित लगती है। इन शहरों का अंतर प्रतीकात्मक तौर पर भारतीय सिनेमा के कल और आज के अंतर को प्रस्तुत करता है। आज अप्रवासी भारतीय दर्शक अपनी डालर शक्ति के कारण अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया है।
उसकी रुचियों के अनुसार फिल्में डिजाइन की जा रही हैं। इस दृष्टिकोण को अनुचित नहीं कहा जा सकता। युद्ध क्षेत्र का चुनाव रणनीति का हिस्सा है। श्याम बेनेगल अपने जीवन की सबसे महंगी फिल्म सुभाषचंद्र बोस के जीवन पर बना रहे हैं और यह सहारा कंपनी का सार्थक प्रयास है।
इसके पहले श्याम महात्मा गांधी और नेहरू की ‘डिस्कवरी आफ इंडियाÓ को परदे पर प्रस्तुत कर चुके हैं। श्याम बेनेगल आम आदमी के शोषण पर फिल्में बना चुके हैं। शास्त्रीय गायिका के जीवन पर ‘सरदारी बेगमÓ बना चुके हैं। पत्रकार खालिद मोहम्मद की मां के जीवन पर जुबेदा बना चुके हैं।
उनके विषयों की विविधता और दो लाख से 22 करोड़ तक के बजट की फिल्में आश्चर्यचकित करती हैं। शैलेंद्र की ‘तीसरी कसमÓ के अवैध डीवीडी भी विदेशों में बिक रहे हैं। सृजनधर्मी लोग कभी मरते नहीं, वे याद करने वालों के आंसुओं में मुस्कराते हैं।