मिर्जा वाजिद हुसैन पहले यास तखल्लुस करते थे, बाद में यगाना हो गए। उनका जन्म 1884 में पटना में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा वतन में ही हुई। पहले मौलवी सैयद अली खां बेताब से शायरी पर इस्लाह लेते थे। बाद में बेताब ने उन्हें अपने उस्ताद शाद अजीमाबादी के सुपुर्द कर दिया। 1904 में कलकत्ता गये वहां बीमारी के लम्बा खिंचने के कारण लखनऊ इलाज के लिए पहुंचे। यहां आये तो फिर सेहतमंद होकर यहां से जाना गवारा न किया। लखनऊ में ही शादी कर ली और यहीं बस गये। लखनऊ का कयाम निहायत हंगामा पैदा करने वाला था। इसका असर इनकी शायरी पर देखा जा सकता है। कई समकालिकों से इनकी खींचतान रही। अफसोस कि इनकी खींचतान की वजह से यगाना मिर्जा गालिब के विरुद्घ हो गये। ख्ुाद को गालिब शिकन कहते थे और ऐसे-ऐसे शब्द से गालिब को नवाज़ा कि पढऩे और सुनने वालों को तकलीफ होती थी। जिन्दगी के आखिरी दिन अनावश्यक बहसों और कड़वाहटों में बसर हुये। 1956 में देहांत हुआ।
इनके व्यक्तित्व में अहंकार बहुत अधिक था। कलाम में शक्ति और जोर है। बांकपन और आजादरवी उनके मिजाज का हिस्सा थी। विचार की ताजगी ओर अहसास की नवीनता के साथ मिल कर उनकी गजल में कुछ ऐसी कैफियत पैदा हो गई है जो अपनी खूबी रखती है। इनकी शायरी में फिक्री गहराई और तहदारी ज्यादा नहीं, लेकिन व्यक्तित्व के स्वतंत्रता की चमक अवश्य है। बोल-चाल के ऐसे शब्द भी जो अदबी जबान का भाग नही हैं कहीं-कहीं इन का प्रयोग भी अर्थ में तेजी और धार के लिए करते थे। यगाना ने गालिब के अलावा इकबाल और जोश के विरूद्घ भी बहुत कुछ लिखा है। इनकी रूबाईयात भी मशहूर हैं। काव्य का संग्रह आयाते वज्दानी के नाम से प्रकाशित हुआ।
– सैफ मलिक
सब तिरे सिवा काफिर आखिर इसका मतलब क्या।
सर फिरा दे इंसान का ऐसा खब्ते1 मजहब क्या॥
रंग लाती है आखिर एक जुम्बिशे2 लब क्या।
देखिये दिखाता है वायदा-ए-मुजबजुब3 क्या॥
चुल्लू भर में मतवाली दो ही घूंट में खाली।
यह भरी जवानी क्या जज़्बा-ए-लबालब4 क्या॥
शामत आ गई आखिर कह गया खुदा लगती।
रास्ती5 का फल पाता बंदा मुकर्रब6 क्या॥
उलटी सीधी सुनता रह अपनी कह तो उलटी कह।
सादा है तो क्या जाने भांपने का ढब7 क्या॥
सब जिहाद8 में दिल के सब फसाद में दिल के।
बे दिलों का मतलब क्या और तर्के मतलब क्या॥
हो रहेगा सज्दा भी जब किसी की याद आई।
याद जाने कब आये जिन्दा दारिए शब9 क्या॥
आंधियां रुकें क्यों, जलजले10 थमे क्यों कर।
कारगाह फितरत11 में पासबानी12 -ए-रब क्या॥
कारे मर्ग़13 के दिन का, थोड़ी देर का झगड़ा।
देखना है यह नादां जीने का है करतब क्या॥
पढ़ चुके बहुत पाले डस चुके बहुत काले।
मूजियों14 के मूजी को फिक्रे नेशे15 अकरब क्या॥
मिर्जा यगाना वाह जिन्दाबाद जिन्दाबाद।
एक बलाये दरमां16 जब तुम भी क्या थे और अब क्या॥
शब्दार्थ:- 1-जुनून, 2- हिलना,डुलना, 3-डांवाडोल, 4- जोश से भरा दिल, 5- सच्चाई, 6- न$जदीक का, 7- ढंग, 8- सच की लडा़ई, धर्मयुद्घ, 9- रात को बहुत जागने वाला, 10- भूचाल, 11- प्रकृति का नियम, कुदरत का कारखाना, 12- चौकीदारी, पहरेदारी, 13- मरने का काम, 14- घातकों, 15- बिच्छू का डंक, 16- इलाज।