मैं गीता, बाइबल, कुरआन रखता हूं।
सभी धर्मों का मैं सम्मान रखता हूं॥
यह मेरे पुरखों की जागीर है लोगों।
मैं अपने दिल में हिन्दुस्तान रखता हूं॥
उपरोक्त देशभ्ािक्त पूर्ण विचारों से ओत-प्रोत अशआर कहने वाले युवा शायर चाँद शेरी का जन्म 8 जुलाई 1966 को हुआ। उन्होंने बहुत कम उम्र से ही शायरी शुरू कर दी थी। उनका पहला काव्य संकलन (गजल संग्रह) ‘जर्द पत्ते हरे हो गयेÓ 25 दिसम्बर 1999 को प्रकाशित हुआ। दूरदर्शन, आकाशवाणी पर उनका काव्यपाठ होता रहता है। इसके साथ ही अ.भा. कवि सम्मेलन एवं मुशायरों में भी उनकी उपस्थिति रहती है। उनकी रचनाएं हंस, आजकल, नवनीत, मधुमति, मनोरमा, सरिता, वनिता, समरलोक, नई दुनिया, साहित्य भारती, हरिगंधा, सहारा, ट्रिब्यून, अमर उजाला, भास्कर, वागर्थ आदि अनेक साहित्य पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं।
चाँद शेरी ने संवाद, अभिव्यक्ति, चितम्बरा आदि में सम्पादन सहयोग भी दिया है। उनको राजस्थान साहित्य अकादमी का वर्ष 2002-03 में ‘सुमनेश जोशीÓ पुरस्कार, डॉ. भीमराव अम्बेडकर समिति द्वारा ‘फैलोशिप सम्मानÓ, जेमिनी अकादमी हरियाणा द्वारा ‘गजल सम्मानÓ, नगर निगम कोटा से कौमी एकता अवार्ड आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। चाँद शेरी की विकल्प, श्री भारतेंदु समिति, सारंग साहित्य, काव्य-मधुबन, ज्ञान भारती, चम्बल साहित्य संगम, बज़्मे-अदब आदि हिन्दी, उर्दू व हाड़ौती की साहित्यिक, संस्कृतियों संस्थाओं में महत्वपूर्ण भूमिका रही । वह वर्तमान में राजस्थान के कोटा में निवासरत हैं। उनकी गज़लों एवं कविताओं में देशप्रेम, श्रृंगार रस व समसामयिक हालातों का रंग देखने को मिलता है। – सैफ मलिक
चाँद शेरी की रचनाएं
वो वफा का सिला दे गया।
जाते-जाते दगा दे गया॥
मिटता-मिटता वो नक्शे कदम।
मंजिलों का पता दे गया॥
एक चिंगारी शोला बनी।
कौन इसको हवा दे गया॥
शहर के लोग खामोश हैं।
बद-खबर कौन क्या दे गया॥
देवता आज का वो हमें।
इक नया हादसा दे गया॥
बेकफन लाश पर सरफिरा।
आंसुओं की रिदा दे गया॥
’शेरी‘ जीने की देकर दुआ।
वो हमें बद्ïदुआ दे गया॥
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आतंक देश से जो मिटाया ना जाएगा।
बरबादियों से इसको बचाया ना जाएगा॥
जज़्बात अहले मुल्क के भड़के हुए हैं आज।
बातों से सिर्फ इनको दबाया ना जाएगा॥
बिगड़े हो चाहे कितने ही हालात दोस्तों।
उम्मीद का चिराग बुझाया ना जाएगा॥
खु़दगर्ज रहबरों से कभी अपने देश में।
मंहगाई का ये दौर हटाया ना जाएगा॥
जब तक वतन में फिरकापरस्ती का दौर है।
’शेरी‘ सुकूं से वक्त बिताया ना जाएगा॥