तीसरी किश्त:-
महर्षि विश्वामित्र जी का ध्येय था कि यज्ञ द्वारा विश्व का कल्याण होगा पर्यावरण शुद्ध होगा विचारधारा में बदलाव आयेगा मगर वे यज्ञ नहीं कर पाते थे। रावण के अनुचर बाधा पहुंचाते थे। यद्यपि वे बड़़े शक्तिशाली थे। उनके पास दिव्य स्वचालित शस्त्र थे मगर वे यज्ञ के जिस अनुष्ठान में थे उसमें किसी के अहित की बात नहीं सोच सकते थे। वे आतंकवादी निशाचरों से पीडि़त थे वे योगी भी थे उन्होंने मन में विचार किया वे अयोध्या आवें व महाराज दशरथ से आने का कारण बताते हुये यज्ञ रक्षार्थ श्री राम लक्ष्मण की मांग की। यद्यपि राजा ने कहा कि हमसे सेना ले लो, धन ले लो पर दोनों बेटे मत मांगो। पर महर्षि अपने सत्याग्रह पर अडिग रहे। दशरथ जी ने स्पष्ट किया कि महर्षि मैं स्वयं अति रथी हूँ मेरे पास चतुरंगिनी सेना होते हुये भी रावण तो क्या उसके अनुचर से लडऩे में समर्थ नहीं हूँ। इतना जानने पर भी जब विश्वामित्र ने हठ नहीं छोड़ी पर महर्षि वशिष्ठ के कहने पर अवध नरेश दशरथ ने श्रीराम लक्ष्मण दोनों को दे दिया। अब प्रसन्नतापूर्वक ऋषि आश्रम की ओर चल पड़े साथ में श्रीराम लक्ष्मण चल रहे थे कि जैसे ही ताड़क वन में प्रवेश किया कि ताड़का राक्षसी कौंधकर आ गई। गुरू ने ताड़का को मारने को कहा तब श्री राम ने कहा कि स्त्री अवध्य है उसे नहीं मारना चाहिये इस पर विश्वामित्र जी ने कहा कि ‘आत्ताई वधाहजाÓ अर्थात् अत्ताई में लिंग भेद नहीं होता कोई भी हो वध ही करना उचित है तब श्री राम ने ताड़का वध कर दिया, इस पर महर्षि ने दिव्य स्वचालित अस्त्र श्रीराम को समर्पित कर दिये व यज्ञ रक्षा करते हुए श्रीराम, लक्ष्मण ने आतंकवादी रावण के अनुचर मारीच को सतयोजन दूर फेंक दिया तथा शेष निशाचरों को मार दिया। यज्ञ पूर्ण हो गया पूर्वी भारत आतंकवाद से मुक्त हो गया तथा बाबा विश्वामित्र ने जाकर श्रीराम व सीता का विवाह कराकर जनक त्रिहुत (नेपाल) नरेश व दशरथ को रिश्ते में जोड़ दिया। पूर्वी भारत में आतंकवादियों के आने जाने रास्ते बंद हो गये। अब भारत में आतंक व आतंकवादी कैसे समाप्त हो इस पर रणनीति बनी। एक दिन महर्षि वशिष्ठ और श्रीराम में इस मुद्दे पर बात हुई व नीति निर्धारित की गयी। और यह तय किया गया कि गोपनीयता की किसी को जानकारी न हो। आध्यात्म रामायण व अन्य रामायणों में वर्णन है। महर्षि विश्वामित्र के सत्याग्रह के बाद भारत में क्रांति की लहर आ गई। महाराज दशरथ ने अपनी वर्तमान वस्तु स्थिति का अध्ययन कर श्रीराम को युवराज बनाने का विचार किया तथा मंत्रीमण्डल ने अनुमोदन भी कर दिया। श्रीराम राजा बनेंगे इसकी सब में चर्चा होने लगी। उसी दिन आकाश मार्ग से महर्षि नारद आये तथा वे सीधे श्रीराम से मिले और उन्होंने श्रीराम से कहा कि आप अब राज्य में अशक्त हो जायेंगे तो आपने पृथ्वी का भार उतारने के लिये जो घोषणा की थी जो वचन दिया है उसका क्या होगा। इसके उत्तर में श्रीराम ने स्पष्ट कहा कि महर्षि आप चिन्ता न करें, मेरा तिलक नहीं होगा मैं वन जाऊंगा। महर्षि नारद वापिस चले गये यह अध्यात्म रामायण में कहा है। अयोध्या में राम राज्य की तैयारियां हो रही थी इसी बीच महारानी कैकेई ने क्रान्ति कर दी उसने श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास और अपने बेटे भरत को अयोध्या का राज्य मांग लिया कैकेई को राम सबसे प्यारे थे वह श्रीराम को व उनके बल व तेज को जानती थीं। गोस्वामी जी ने उपमायें दी हैं जब श्रीराम के साथ रक्षामंत्री सुमंत्र चले तब गोस्वामी जी ने लिखा है-
‘रघुकुल दीपहिं चले लवाईÓ रक्षा मंत्री की दृष्टि में श्रीराम दीपक के समान तथा जब श्रीराम महाराज दशरथ के सामने पहुंचे तो लिखा कि ‘जाई दीखि रघुवंश मनिÓ अर्थात् मणि के समान थे। मणि का प्रकाश सीमित होता है। महाराज दशरथ श्रीराम को सीमित राज्य का राजा बनाना चाहते थे। मणि की उपमा देकर मानस कार ने महाराज दशरथ के भाव को प्रकट किया। जब श्री अम्बा कैकेई के सामने पहुंचे तो लिखा ‘मनमुस्काई भानुकुल भानू। राम सहज आनन्द निधान्।।Ó
कैकेयी की दृष्टि में राम सूर्य हैं जो कौशल्या रूपी प्राची दिशा से प्रकट होकर बाल पतंग के रूप में जनकपुर में प्रकाशित हुआ था आज वही राम मध्यान्ह के सूर्य के रूप में कैकेयी अम्बा के सामने मुस्करा रहा है। माँ की मांग है कि इस सूर्य को अयोध्या के महलों अथवा अवध राज्य की सीमा में सीमित न करें। बल्कि इस सूर्य को विश्व कल्याण के लिये स्वछन्द आकाश में विचरने दो। इस क्रान्ति में स्वयं श्रीराम का हाथ था वशिष्ठ मुनि की जानकारी में था। इसका पता चित्रकूट में चला। श्रीराम के साथ सीता जी, लक्ष्मण जी भी वन को चल दिये। गंगा किनारे तक तीनों रथ पर सवार होकर गये वही से गंगा पार श्रंृगवेर पहुंचे, निषाद से मिले। श्रीराम के वन जाने का राजनीति प्रश्र था। उन्होंने अपने चरित्र से शिक्षा देते हुये आदिवासी जनजातियों कोल, भीलों आदि को समाज की मुख्यधारा में जोड़ दिया। आप जानते हैं समाज, संसार व बालक नकल करते हैं वे जैसा देखते हैं वैसा बनते हैं। केवल सुन्दर सुन्दर प्रवचनों व लेक्चरों से सुधार नहीं होता है। आज प्रवचन होते हैं भाषण भी होते हैं परन्तु दिव्यता, विन्मयतापूर्णत: का जीवन दर्शन देखने को नहीं मिलता सतसंग नहीं मिलता जो आवश्यक है। श्रीराम, लक्ष्मण व सीता का दर्शन व संग पाकर वे सभी जनजातियों समाज विरोधी कृत्यों को त्याग कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ती गयीं। जब चित्रकूट में अयोध्यावासी व जनकपुर वासी पहुंचे व कोल भीलों ने स्वागत करते हुये कहा कि –
‘यह हमारि अति बडि़ सेवाकाई।
लेहि न वासन वसन चौराई।।Ó
सब प्रकार के भेदभाव अर्थात् दलीय, ऊंच,नीच अमीर, गरीब आदि भेद भाव को भुलाकर प्रीति की एकता होने पर ही स्वस्थ्य व सुन्दर समाज कहलाना जिसकी स्थापना हो गई जनता में जागरूकता आ गई। यहां महिला राज्य सम्मेलन में राजमाता कौशल्या ने श्रीराम, लक्ष्मण, सीता का वन जाना उचित बताया कहा-
‘लखन राम सिय जाहिं वन,
भल परिणाम न पोचÓ
अध्यात्म रामायण में कहा गया है कि श्रीराम को लौटाने के लिये भरत ने आमरण अनशन की घोषणा करते हुये कहा कि जब तक श्रीराम अयोध्या नहीं लौटेंगे तब तक हम एक करवट यहीं लेटे रहेंगे। किन्तु श्रीराम के संकेत पर महर्षि वशिष्ठ ने केवल भरत को गोपनीयता बताई। तब भरत अयोध्यावासियों सहित वापिस चले गये। क्रमश: – नर्बदा प्रसाद वर्मा, रामायणी, ललितपुर