व्यक्तित्व का दर्पण हैं हमारा आचरण

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हमारे व्यक्तित्व का दर्पण हैं हमारा आचरण, जो चिंतन से प्रभावित होता है। जैसा हम सोचेंगे वैसा हम करेïंगे और बनेïंगे। चिंतन से ही चरित्र पोषित होता है, जिसे उत्कृष्टï बनाने के लिए हमेï सद्चरित्रता की दिशा मेंï सतत जागरूक और प्रयत्नशील रहना होगा। व्यक्तित्व निर्माण मेïं चिंतन के साथ चरित्र की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है। मनुष्य की प्रगति का आधार भी उसका आचरण है। अगर हम किसी का भला नहीïं कर सकते तो कम से कम उसे हानि तो नहींï ही पहुँचायेï, इस भावना को यदि हम अपने आचरण मेंï उतारेï तो तमाम लोगोïं का स्नेह और आशीर्वाद हम अर्जित कर सकते हैंï, जो हमारी प्रगति के लिए बहुमूल्य निधि होगी।
आचरण की उत्कृष्टïता के लिए हमेंï अहंकार से रहित होकर विनम्रता, सहनशीलता, सेवाभावी, उदारता के साथ ही यह भावना होनी चाहिए कि जो व्यवहार हम दूसरोंï से चाहते हैïं वही हमेंï भी अपने आचरण मेंï लाना चाहिए। सज्जनता विकसित करने मेïं लाभ ही लाभ है हानि कतई है ही नहीïं,लेकिन फिर भी लोग इस दिशा मेïं उदासीनता बरतते हैंï। इसके लिए कोई बहुत बड़ी क्षमता अर्जित करने की भी आवश्यकता नहींï है, केवल समर्पण भाव चाहिए। लेकिन फिर भी लोग इसे आत्मसात करने के बजाय इसकी उपेक्षा करते हैंï।
मानव जीवन अत्यन्त दुर्लभ है, इसका एक-एक क्षण बहुमूल्य है। हम अपने आचरण की श्रेष्ठïता से समाज मेंï आदर्शों के कीर्तिमान स्थापित कर सकते हंैï। यह शरीर केवल अपने लिए ही नहीïं होता, इससे परिवार और समाज भी जुड़ा होता है। इनके प्रति भी मनुष्य की कुछ महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ होती हैï, जिनके समुचित निर्वहन के बिना हमारा जीवन अधूरा है। साथ ही व्यक्तित्व के विकास मेंï ईमानदारी के साथ जिम्मेदारियोïं का निर्वहन अनिवार्य है, अन्यथा स्वयं को शांति नहीïं प्राप्त होगी और उपेक्षा के पात्र भी होïंगे।
चिंतन का व्यक्तित्व निर्माण से सीधा संबंध है। व्यर्थ और नकारात्मक चिंतन अपने साथ-साथ दूसरोंï को भी हानि पहुँचाता है। प्राय: लोग किसी के कहने पर किसी अन्य के प्रति गलत धारणा बना लेते हैïं जिससे अच्छे खासे सम्बन्धोïं मेंï कटुता आ जाती है। ऐसी स्थिति मेंï अपने विवेक का सहारा लेना चाहिए और हृदय की पुकार सुननी चाहिए। कभी-कभी वास्तविकता जाने बिना लोग किसी के प्रति गलत निर्णय ले लेते हैïं, जिसके परिणामस्वरूप पछताने के सिवा कुछ नहीïं बचता और सुधार का अवसर भी नहींï मिलता, क्योïंकि तब तक बहुत देर हो चुकी होती है।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है-निर्मल मन जन सो मोïहि पावा, मोïहि कपट छल छिद्र न भावा। स्वच्छ मन वाले व्यक्ति परमात्मा को भी प्रिय होते हैïं, क्योïंकि आत्मा परमात्मा का ही अंश है। यदि हम यह बात सर्वथा ध्यान मेïं रखेंï तो हम तमाम अनचाहे, अनजाने आचरण की विकृतियोंï से बच सकते हैïं। चिंतन की श्रेष्ठïता ही व्यक्तित्व निर्माण की दिशा मेïं पहला कदम है। हमारे जीवन की बहुमूल्य निधि है हमारा चरित्र और व्यक्तित्व, इसे हमेïं सर्वथा उत्कृष्टï रखना हैï। – रईसा मलिक