शकीला बानो भोपाली का जन्म 9 मई 1942 को भोपाल में हुआ। उनके पिता अब्दुल रशीद खान और ताया अब्दुल कदीर खान भोपाल के मशहूर शायर थे। शकीला बानों ने जब अपनी आंखें खोलीं तो अपने चारों ओर शायरी और साहित्य के माहौल को पाया। शकीला बानो भोपाली अपने बहन-भाईयों में सबसे बड़ी थीं इस कारण उनको परिवार के सभी सदस्य बहुत प्यार करते थे। विशेषकर उनके पिता उनसे बहुत प्यार करते थे। और हर वक़्त, हर जगह उनको अपने साथ रखते थे।
शकीला कहती थीं कि शायरी मैंने होश संभालते ही शुरू कर दी थी। इससे पहले की मैं शेर को गुनगुनाती शेर ने मुझे गुनगुनाना शुरू कर दिया था। कोई अधूरी सी बात, कोई खूबसूरत ख्याल, कोई धुंध में लिपटी हुई सूरत, कोई बेनाम सी याद, कोई अन्जाना सा एहसास बस कुछ था जो मेरी $जबान से अदा हो जाना चाहता था।
शकीला थोड़ी बड़ी हुईं तो अपने पिता अब्दुल रशीद खान सा. के साथ मुशायरों में जाने लगीं। वहां शायर तरह-तरह के शेर पढ़ते और शकीला उनको सुनतीं। जब शकीला कुछ बड़ी हुईं। तो शेर उनके होठों से निकलने लगे और वो भी अशआर कहने लगीं। शकीला अपने कहे हुए शेर अकेले ही में गुनगुनातीं। शकीला कहती थीं कि उन दिनों मुझे बजती हुई आवा$जें बहुत भली लगती थीं। अगर कहीं से गाने की कोई आवा$ज आ जाती तो मेरी आवा$ज उसका पीछा करने लगती। वो कहती थीं जब खूबसूरत आवा$जों की लहरें मेरे रूह के तारों को छूने लगीं। तो मैंने फैसला कर लिया कि मैं गाना $जरूर सीखूंगी। इसके बाद सहेलियों के झुरमुट में शकीला झूम-झूम कर अपने शेर गातीं और उनका गाना सुनकर सब सहेलियां खुश होकर खूब तालियां बजातीं।
सन्ï 1956 में शकीला बानों भोपाली अपने कार्यक्रमों और कुछ फिल्मी काम के सिलसिले में बम्बई गईं। वहां उनका कार्यक्रम सुनने के बाद लोगों ने उनको इतना पसंद किया कि वो बम्बई की होकर रह गईं। इसके बाद भी साल दो साल में एक आध महीने के लिये भोपाल $जरूर आतीं। शकीला दिनों दिन प्रसिद्घी की सीढिय़ां चढ़ती गईं। रात भर $कव्वाली के कार्यक्रम, मीटिंग, रिकार्डिंग, शूटिंग, सैटिंग, रिहर्सल और फिर एक के बाद एक सफर, वो इतनी व्यस्त हो गईं कि उन्हें अशआर की कहने की फुरसत ही नहीं मिलती थी।
हां कभी-कभी सफर के दौरान कार, हवाई जहाज़, या टे्रन में या मेकअप करवाते-करवाते एक दो शेर कह लिया करती थीं। शकीला ने अपने $कव्वाली के कार्यक्रम अफ्रीका, अमरीका, केनेडा, इंग्लैण्ड, स्वीटजरलैण्ड, जर्मनी, काहिरा, रोम, मिस्र, अदन, कुवैत, दुबई, शारजाह, अम्मान और भारत के लगभग सभी शहरों में और $कस्बों में पेश किया। हैदराबाद, दिल्ली, लखनऊ में उनको बहुत पसंद किया जाता था और इन शहरों में उनके अनेकों कार्यक्रम हुये।
शकीला कहती थीं कि एक लड़की है बस यूँ लगता है कि जैसे वो मेरे अपने वजूद का ही एक हिस्सा है। उसे मेरी अच्छी बुरी सारी बातें, सारी आदतें पसंद हैं। वो बहुत पढ़ लिख चुकी है और मेरा हर हुक्म बजा लाती है और वो है मेरी छोटी बहन $जरीना बानो समन। वो मुझे जीने पर उकसाती रहती है। और मैं जिये जा रही हूँ। वो कहती हैं कि भला हो उसका कि उसे जहां किसी का$ग$ज पर मेरा शेर लिखा हुआ न$जर आता हिफा$जत से रख लेती। उसने मेरे उन बिखरे हुये शेरों को एक डायरी में लिखकर महफू$ज कर लिया।
शकीला बानो भोपाली के बारे में भोपाल के मशहूर शायर अख्तर सईद खां ने कहा था शकीला एक लकीर की तरह भोपाल की सरज़्ामीन से उभरी और देखते ही देखते शोहरत के आसमान तक पहुंच गई। लेकिन उसे देखने के लिए सर को इतना ऊंचा नहीं उठाना पड़ता कि टोपी $कदमों में आ गिरे।
डॉ. मलिक $जादा मंजूऱ अहमद कहते हैं कि शकीला बानो मह$ज एक व्यक्ति का नाम नहीं, बल्कि एक रिवायत, एक तह$जीब और एक अन्जुमन का नाम भी है।
कृष्ण चन्द कहते हैं कि शकीला बानो खुद भी एक कामयाब शायरा हैं और उनकी $ग$जलों का रिवायती सरापा, क्लासिकी मिजा$ज उस हुस्न का मजहर है जिसने उर्दू $ग$जल को सदियों से $िजन्दा रखा है।
इस्मत चुगताई कहती हैं कि उसकी शायरी में न$जाकत है, सादगी है, धीमा सा तरन्नुम है। मशहूर फिल्मकार ख्वाजा अहमद अब्बास कहते हैं कि शकीला बानो भोपाली एक शायराना दिल की मालिक भी हैं। मैंने इनका कलाम पढ़ा है और मुझे उनके कई अशआर बहुत अच्छे लगते हैं। शायर शम्स कंवल कहते हैं कि बानो का अंदाज़े बयां हसीन है, ये मालूम नहीं वो इश्क करती हैं या नहीं मगर शायरी वो इश्क करने वालों की सी करती हैं। उनके सीने में शायरी की आग रौशन है लिहाजा इनका कलाम गर्मीये तासीर से मालामाल है। – सैफ मलिक
शकीला बानो की $ग$जल
वो एक शख्स जो दिल को भला-भला सा लगे
उसी से मुक्द्दर मेरा $खफा-$खफा सा लगे।
ये आंधियों की नवा$िजश ये जुल्मतों का करम
के हर चरा$गे तमन्ना बुझा-बुझा सा लगे।
वो कौन लोग थे, किस दौर की ये बातें हैं
वफ़ा का नाम भी अब तो सुना-सुना सा लगे।
तुम्हारे $खत में हर एक बात साफ लिखी है
बस एक लफ्$जे मोहब्बत मिटा मिटा सा लगे।
न अजनबी की तरह न आशना की तरह
वो कौन है के जो सब से जुदा जुदा सा लगे।
तेरे लबों पे तबस्सुम तो है मगर बानो
है क्या सबब के तेरा दिल दुखा दुखा सा लगे।
ये आज कौन शकीला इधर से गुजऱा है
कि तू बहार लगे घर सजा सजा सा लगे
शकीला बानो की $ग$जल
खुल गई सब पे ये बात फूलों की
मुख्तसर है हयात फूलों की
आप जायें तो दोपहर की धूप
आप आयें तो रात फूलों की
आप सैरे चमन को क्या निकले
आ गई कायनात फूलों की
आओ कांटों से दिल को बहलायें
बे मुरव्वत है रात फूलों की
सहन गुलशन हो या हो वीराना
हर जगह कीजे बात फूलों की
आपका रा$ज, रा$ज कलियों का
आप की बात, बात फूलों की
रन्गी नोक-ए- ख़ार है बानो
फिर भी करते हैं बात फूलों की।