शकीला बानों की परछाईं थीं जरीना बानो समन

0
569

शकीला बानो भोपाली की छोटी बहन जरीना बानो समन ने उनके साथ एक लम्बा अरसा बिताया है और उनसे जुड़ी अनेक खट्टïी-मीठी यादें उनके खजाने में हैं। विगत भोपाल प्रवास पर आई जरीना बानो समन से रईसा मलिक की बातचीत के अंश-
प्र. शकीला बानो जी से आपका क्या रिश्ता है?
उ. मैं उनकी छोटी बहन हूँ। हम दोनों बहनें कम और दोस्त ज्य़ादा थे। हम दोनों में बहुत दोस्ती थी। कुछ भी बात है, कुछ भी सुनाना है, कुछ ज़ेवर पसंद करना है, कपड़े पसंद करना वो मुझे ही पसंद करना पड़ते थे। कोई वाकया हो मुझे ही सुनाया करती थीं।
प्र. शकीला बानो का व्यक्तित्व कैसा था?
उ. शकीला जी बड़ी साफ दिल, बड़ी मजहबी और अदबी महिला थीं। घर में बहुत ही साधारण महिला की तरह ही रहती थीं। गहने भी नहीं पहनती थीं और इबादत में ज्य़ादा समय बिताती थीं।
प्र. शकीला जी को गायकी का शौक कैसे लगा?
उ. उनको बचपन से ही गाने का बड़ा शौक था और इस वजह से उनको कई बार मार भी पड़ी लेकिन इससे उनका शौक कम नहीं हुआ। परिवार वालों के द्वारा बहुत विरोध किया गया। लेकिन वो बराबर गाती रहीं। और आगे चलकर कव्वाली की दुनिया में उनको मलकये कव्वाली का खिताब भी दिया गया।
प्र. गाने के अलावा और उनके क्या शौक थे?
उ. वो शेरो शायरी भी करती थीं और उन्होंने कई फिल्मों में गाने भी लिखे हैं। उनका ‘एक गजल औरÓ के नाम से गजल संग्रह भी प्रकाशित हुआ है। उन्होंने अपने गजल संग्रह में एक शेर मेरे लिये लिखा है जो मेरे लिये किसी जागीर से कम नहीं है-
तेरे होने से मुकम्मल हुआ मेरा होना।
तू न होती तो मेरी जात अधूरी होती॥
प्र. उनसे जुड़ा हुआ कोई रोचक संस्मरण अगर आपको याद हो तो बताइये?
उ. हम लोग पूरे परिवार से एक साथ घूमने-फिरने और फिल्म देखने जाया करते थे। एक बार हम सभी लोग फिल्म देखने गए। शकीला जी बुर्का ओढ़कर हम लोगों के साथ जाया करती थीं ताकि कोई पहचान न ले। हम लोग फिल्म देखने पहुंचे और जब फिल्म का इण्टरवेल हुआ तो मैंने उनसे पूछा कि आप कुछ खाएंगी, कुछ पीयेंगी तो उन्होंने इशारे से मना कर दिया कि मुझे कुछ नहीं चाहिए। फिर मैंने कहा कि मैं चाय पीकर आती हूँ।
जब मैं चाय पीकर वापस आई तो टॉकीज में अंधेरा हो चुका था। तभी मैंने देखा की आपा जान अपनी सीट से ग़ायब थीं। ये देखकर मुझकों बहुत फिक्र हुई और मैं उनको ढूंढऩे बाहर निकल गई। बाहर जाकर मैंने चारों तरफ और बाथरूम आदि जगहों में देखा तो वो मुझे कहीं दिखाई नहीं दे रही थीं क्योंकि कुछ अंधेरा भी था। जब मैंने बहुत ध्यान से देखा तो चाय के काउन्टर से एक काला सा साया दीवार पे टिका खड़ा हुआ दिखा। तो मैं समझ गई की ये आपा जान ही हैं। मुझे लगा की कहीं उन्हें चक्कर तो नहीं आ गया। यह सोच कर मैं दौड़कर उनके पास जब पहुंची और पूछा की क्या हो गया चक्कर आ गये, क्या पानी लाऊं। तो उन्होंने कहा कुछ नहीं हुआ। फिर भी मैंने पूछा क्या बात है तो बोलीं की जरीना मैंने चाय पी ली। तो मैंने कहा कि चाय पी ली तो अच्छा किया अब तो चलिये। तब वो कहने लगीं कि आठ आने देना है चाय वाले को। तो मैंने कहा कि आपको तो सारे लोग, टॉकीज वाले जानते हैं। फिर आपने बताया क्यों नहीं कि मैं शकीला बानो भोपाली हूँ। इस पर उन्होंने कहा कि अच्छा नहीं लगता ऐसा कहना। फिर मैंने उस चाय वाले के पैसे दिये और मजाक में उनसे कहा आपा जान आप यहां खड़ी क्यों रहीं, आप तो जरा सा अपना नकाब ही उठा देतीं तो सब काम बन जाता। तो वो कहने लगीं की आठ आने के पीछे अपना नकाब उठाती।
प्र. जरीना जी आप की क्या गतिविधियां रहीं?
उ. मैंने उर्दू साहित्य में एम.ए. किया और मैं अमीन सयानी के साथ ऑल इण्डिया रेडियो से जुड़ गई। ऑल इण्डिया रेडियों की उर्दू सर्विस पर मैंने कई कार्यक्रमों का संचालन किया, ड्रामों में भी हिस्सा लिया। इसके अलावा मैंने रेडियो के लिए स्क्रिप्ट और कहानियां भी लिखी हैं। मेरी ज्य़ादातर रचनायें हास्य व्यंग्य पर आधारित होती थीं, क्योंकि रेडियो पर इसी प्रकार के कार्यक्रम को पसंद किया जाता था। मैं सन्ï 1975 से बतौर रेडियो आर्टिस्ट के काम कर रही हूँ। बम्बई से तन्जीम नामक अखबार प्रकाशित होता था जिसमें मैं महिलाओं के कॉलम में लिखा करती थी। उसके अलावा मैं फिल्मों में डबिंग भी करती हूँ। मैं डबिंग में पांच साल की बच्ची से लेकर 70 साल की बूढ़ी औरत तक को अपनी आवाज देती हूँ। मैंने अभी तक 35-40 फिल्मों में डबिंग की है इसके अलावा कार्टून्स की भी डबिंग की है।
प्र. इसके अलावा आपने और क्या-क्या काम किये?
उ. मैंने अपना एक प्रशिक्षण केंद्र खोला था जिसमें नये आने वाले लड़के-लड़कियों को शब्दों का सही ढंग से उच्चारण करना, मॉडलिंग करना सिखाया जाता है। अभिनय का पूरा दारोमदार संवाद की अदायगी पर निर्भर करता है। डायलॉग किस तरह से बोले जायें और बोलते समय आंखों से किस प्रकार अपनी भावनाओं को व्यक्त किया जाये उस पर अभिनय निर्भर करता है। इसके अलावा मैंने छोटी-छोटी कहानियां भी लिखीं हैं। मेरे अफसाने इंकलाब, शीबा और दूसरे कई रिसालों में छप चुके हैं। मैंने बतौर स्टेज एनाउंसर भी काम किया है। शकीला आपा की कव्वाली पार्टी के स्टेज अनाउंसर का काम मैं ही संभाला करती थी। मैं बतौर पर्सनल सेके्रट्री शकीला जी के सारे काम संभालती थी। इसमें सभी तरह के टैक्सों के मामलात, कार्यक्रम आयोजन के संबंध में बातचीत, मुकद्दमें, बैंकों आदि सभी काम मैं ही संभाला करती थी।