शहरयार का असली नाम कुंवर अखलाक मोहम्मद खां है। इनका जन्म 16 जून 1946 को जिला अटोला बरेली उ.प्र. में हुआ। इनके पिता का नाम अबु मोहम्मद खां है। लिखने-पढऩे का शौक बचपन से ही था। अत: उर्दू भाषा में एम.ए. और पीएच.डी. करने के बाद उर्दू विभाग अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवर्सिटी में पढ़ाने लगे। प्रोफसेर के पद पर कार्य करते हुए वो वहां से सेवानिवृत्त हुए। शायराना मिजाज रखते थे, इसलिए इसी दौरान शेर ओ शायरी भी करते रहे। इनको अब तक कई सम्मानों से नवाजा जा चुका है। ‘सातवां दर’ जो इनका काव्य संग्रह के लिए इनको उत्तरप्रदेश उर्दू आकदमी से पुरस्कार प्राप्त हुआ। इसके अलावा शहरयार के दूसरे अन्य काव्य संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। जिनको शेर और अदब के जानकारों ने बहुत सराहा है।
शहरयार ने बहुत से फिल्मों के गीत भी लिखे हैं। जिनको लोगों ने बहुत पसंद किया। विशेष तौर पर फिल्म ‘उमराव जान’ के गीत लोगों की जबान पर आज भी चढ़े हैं।
शहरयाद ने गजल और नज़्म दोनों लिखी हैं। अनको लोकप्रिय करने में गजलों को बहुत बड़ा योगदान है। मुशायरों के द्वारा वो लोगों के सर्वप्रिय शायर बन कर सामने आये। उन्होंने अपनी गजल में हुस्न-ो-इश्क के विषय को अधिक वरीयता दी है। इनकी नज़्म विशेष रूप से वर्तमान हालात से प्रभावित नजर आती हैं। इसमें शहरयार ने समकालीन समस्याओं को तवज्जोह दी है। यह नज़्में जिंन्दगी की कड़वी सच्चाईयों को प्रस्तुत करती हैं।
शहरयार की शायरी ने सिर्फ पाठक को प्रभावित करती है बल्कि उसके दिलो दिमाग की परतों को खोलती है। यही इनकी सबसे बड़ी कामयाबी है।

– सैफ मलिक
शहरयार की रचनाएं
जिंन्दगी जैसी तमन्न: थी नहीं, कुछ कम है।
हर घड़ी होता है एहसास, कहीं कुछ कम है॥
घर की तामरीर, तसव्वुर ही में हो सकती है।
अपने नक्शे के मुताबिक, ये जमीं कुछ कम है॥
बिछड़े लोगों से मुलाकात कभी फिर होगी।
दिल में उम्मीद तो काफी है, यकीं कुछ कम है॥
अब जिधर देखिए लगता है कि इस दुनिया में।
कहीं कुछ चीज जिंयाद: है, कहीं कुछ कम है॥
आज भी है तिरी दूरी ही उदासी का सबब।
ये अलग बात है कि पहली सी नहीं, कुछ कम है॥
0 0 0
किया इरादा बारहा तुझे भुलाने का।
मिना न उज्र1 ही कोई मगर ठिकाने का॥
ये कैसी अजनबी दस्तक थी, कैसी आहट थी।
तिरे सिवा था किसे हक़ मुझे जगाने का॥
ये आँख है, कि नहीं देखा कुछ सिवा तेरे।
ये दिल अजब है, कि गम है इसे जमाने का॥
वो देख लो, वो समुन्दर खुश्क होने लगा।
जिसे दावा था मिरी प्यास बुझाने का॥
जमीं पे किस लिये जंज़ीर हो गए साये।
मुझे पता है, मगर मैं नहीं बताने का।
0 0 0
किस किस तरह ये मुझको न रुसवा किया गया।
गैरों का नाम मिरे लहू से लिखा गया॥
निेकला था मैं सदा-ए-जरस2 की तलाश में।
भूले से इस सकूत3 के सेहरा में आ गया॥
क्यों आज उसका जिंक्र मुझे खुश न कर सका।
क्यों आज उसका नाम मिरा दिल दुखा गया॥
इस हादसे को सुनके करेगा यकीं कोई?
सूरज को एक झोंका हवा का बुझा गया॥
शब्दार्थ 1-बहाना, 2- घंटियों की आवाज, 3- खामोशी