शादी से पहले काउंसिलिंग समय की मांग

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आज समाज मेंï सहनशीलता का स्तर दिनोंïदिन घटता जा रहा है। इस पृष्ठïभूमि मेïं वैवाहिक जीवन का बाखूबी निर्वाह करने के लिए किसी भी शख्स को अब विविध स्तरोंï पर पूर्व तैयारी करने की जरूरत है। इस पृष्ठïभूमि मेï पूर्व वैवाहिक परामर्श (प्रीमैरिटल काउंसिलिंग) या मैरिज वर्कशाप का महत्व काफी बढ़ जाता है। ï
मैरिज वर्कशाप मेंï सुखद वैवाहिक जीवन से संबंधित सभी आवश्यक पहलुओंï की जानकारी दी जाती है। उन आवश्यक बुनियादी आदतोïं व प्रवृत्तियोïं को विकसित करने के व्यावहारिक सुझाव दिये जाते हैïं, जिन पर अमल कर पति-पत्नी के बीच आपसी समझदारी व अंतरंगता के रिश्ते सुुनिश्चित होते हंैï। इस तरह की काउंसिलिंग के तहत नियमित सत्रोïं के दौरान इस बात पर खास जोर दिया जाता है कि किस तरह से किसी वैवाहिक समस्या को समय रहते बेकाबू होने से रोका जाये, समस्या के संकट बनने से पूर्व उसे किस तरह से सीखने व सबक लेने के प्रायोगिक अनुभवोंï मेंï तब्दील किया जा सके ताकि आपसी रिश्ते और मजबूत व विकसित किये जा सकेï।
इस प्रक्रिया से जो बात सामने आती है वह यह है कि जो युगल एक दूसरे के समक्ष खुलकर आपसी संवाद करते हंैï, अपनी हर तरह की भावनाओïं का इजहार करते हैïं, वे ही एक दूसरे का विश्वास हासिल करते हैï। इस क्रम मेंï युगलोïं को यौन संबंधोंï के महत्व, आपसी सम्मान और उनके निजी अधिकारोïं से संबंधित पहलुओंï पर भी जोर दिया जाता है।
वस्तुत: सदियोंï से महिलाओïं की जरूरतोंï और उनकी आकांक्षाओïं मेïं बुनियादी तौर पर कोई खास बदलाव घटित नहींï हुआ है पर हाँ इनकी अभिव्यक्ति मेंï खासा बदलाव आया है। मसलन, अतीत मेंï महिलाएं अपनी जरूरतोंï व इच्छाओïं को परिवार के हितोïं के नाम पर कुर्बान कर दिया करती थीं। परंतु आधुनिक महिलाएं अपने परिवार का हित तो जरूर चाहती हैïं, पर इन हितोïं के साथ-साथ वे अपनी जरूरतोïं व आकांक्षाओïं को भी खुलकर प्रकट करना चाहती हैï। होता क्या है कि प्राय: पुरुषोंï के रोल मॉडल उनके पिता ही हुआ करते हैï। ऐसे पिता, जिन्होïंने कभी भी किसी मुद्दे पर पत्नी की निजी राय को तरजीह नहीïं दी। आजकल के पतियोïं को अपनी जरूरतोंï व आकांक्षाओंï को प्रकट करने वाली या अपनी निजी राय रखने वाली पत्नी को ‘टेकलÓ करना सुहाता नहींï है क्योïंकि उनके लिए यह एक नई स्थिति उभर कर सामने आई है।
विवाह रूपी इमारत प्रेम, विश्वास, सम्मान व अंतरंगता रूपी इन चार खंबोïं पर टिकी होती है। विवाह के इन चारोंï स्तंभोंï के संदर्भ मेंï आड़े आने वाली समस्याओंï के समाधान मेंï मैरिज वर्कशाप के ये सत्र काफी सहायक सिद्ध हो सकते हैं।
सफलता का अचूक मंत्र
सबसे पहले तो यह समझ लेंï कि शादी का भव्य आयोजन ही उसकी सफलता की गारंटी नहींï है। इस मुगालते मेïं रह अधिकतर लोग सिर्फ इसके आयोजन, कपड़ोंï, तैयारियोïं पर ही सारा ध्यान केंïद्रित करते हंैï और शादी के बाद सामने आने वाली स्थितियोïं और बातोïं पर विचार तक नहींï करते। ऐसे मेंï शादी से पूर्व काउंसिलिंग उन बातोंï और स्थितियोंï पर विचार करने को मदद करती है। इसके बलबूते भावी दंपति पति-पत्नी के संबंधोंï का मूल समझ उसे सफल बनाने के लिए मन-मस्तिष्क से तैयार हो जाते हैï। उन्हेंï मालूम हो जाता है कि शादी के बाद किस तरह की स्थिति आ सकती है और उससे कैसे निपटा जाए।
समझदारी की आवश्यकता
एक और अहम बात जो याद रखनी चाहिए वह है कि परिवर्तन संसार का शाश्वत नियम है। इस परिवर्तन से इंसान भी अछूता नहीं है। शादी के बाद मियां बीबी दोनोï की ही जिंदगी मेंï बदलाव आता है। बच्चे, कैरियर और अन्य पहलू जिंदगी का हिस्सा बनते जाते हंैï। ऐसे मेंï उनके बीच प्रेम तो पहले ही जैसा रहता है, लेकिन उसके प्रदर्शन का अंदाज बदल जाता है। ऐसे मेंï शादी पूर्व काउंसिलिंग बताती है कि बदलाव की अनिवार्यता को समझते हुए एक दूसरे के प्रति गहरी समझ होना जरूरी है। यह समझ तभी विकसित होती है जब दंपति अलग-अलग के बजाय एक साथ विकसित होï। यानी उन्हेïं एक दूसरे की अपेक्षाओïं और इच्छाओंï को समय के साथ-साथ समझना होगा। साथ ही उन्हेंï एक दूसरे की निजता का ख्याल रखते हुए समग्र रूप से परिपक्व होना होगा। विशेषज्ञोंï का भी मानना है कि सफल शादी का दारोमदार खुली बातचीत और समझ मेंï निहित है। यानी पति-पत्नी को एक ऐसा माहौल रचना पड़ेगा जहाँ वे चेहरा देख एक दूसरे की मन:स्थिति समझ जाएं। शादी की सफलता के लिए आपसी समझ बहुत जरूरी है।
शादी और काउंसिलिंग की जरूरत
आज के परिवेश मेंï लड़कियोंï का लालन-पालन भी किसी लड़के से कमतर नहीïं किया जाता है। इस बात को समझना बहुत आवश्यक है, क्योïंकि शादी के बाद यही सोच न हो तो समस्याएं खड़ी हो जाती हैं। वैसे भी भारत मेंï शादी दो परिवारोंï का मिलन मानी जाती है। साथ ही इसके अपने सामाजिक-सांस्कृतिक निहितार्थ भी होते हंैï। ऐसे मेंï आधुनिक दौर मेंï इस मिलन को बरकरार रखने के लिए पति और उसके परवार की जिम्मेदारी बन जाती है कि वह पत्नी या घर की बहू को एक व्यक्ति के तौर पर देखेïं, जिसकी अपनी इच्छा, सपने और महत्वाकांक्षाएं हैï। यह चीज समझाने मेंï मदद करती है काउंसिलिंग, क्योïंकि देखने मेंï आता है कि लड़कियोïं को अपने पैरोंï पर खड़ा करने के लिए माँ-बाप हर तरह के जतन करते हैïं, लेकिन शादी के बाद उनसे आशा की जाती है कि वह एक पत्नी या बहू की भूमिकाएं ही निभाएं। यह अपेक्षा जब पूरी नहीï होती तो समस्याएं सिर उठाने लगती हैïं। अलग-अलग मूल्य, पृष्ठïभूमि, रुपये पैसे, भावनात्मक और यौन संतुष्टिï पति पत्नी के बीच विवाद का कारण बनती है। इसे समझते हुए शादी पूर्व काउसिलिंग मेंï भावी दंपति को इस बाबत लचीला रवैया अपनाना सिखाया जाता है। उन्हेïं बताया जाता है कि वे एक दूसरे की निजता और स्वतंत्रता का सम्मान करते हुए एक दूसरे की भावनाओïं की कद्र करेंï। सम्मान के इस भाव मात्र से ही तमाम समस्याएं खुद ब खुद दूर हो जाती हैïं।
यही वजह है कि शादी पूर्व काउंसिलिंग आज के दौर मेंï तो और भी आवश्यक है। कारण बदलते दौर मेंï महिलाएं अनुत्पादक और तनावपूर्ण शादी के फंदे से बाहर निकलने से हिचकती नहींï हैं। उनकी पूर्ववर्ती महिलाएं हर हाल मेंï शादी को सफल बनाने की कोशिश करती थीं। भले ही उन्हेïं इसके लिए एकतरफा प्रयास ही क्योïं न करने पड़ें। इसे समझते हुए शादी के बाद एक नई जिंदगी की शुरुआत करने से पहले उसके टेढ़े-मेढ़े रास्तोïं को समझ लेना आज के समय की आवश्यकता बन चुका है और इसके लिए शादी पूर्व काउंसिलिंग सबसे बेहतर माध्यम बन कर उभर रही है। – अनीता