सैय्यद फजलुल हसन 1875 में कस्बा मोहान जिला उन्नाव में पैदा हुए अरबी और फारसी घर में पढ़ी और अंग्रेजी की शिक्षा स्कूल में प्राप्त की। अलीगढ़ से बीए की परीक्षा पास करने के बाद उर्दूए मुआली नामक एक मासिक शुरू किया। जो लम्बे समय तक उर्दू भाषा व साहित्य की सेवा करता रहा। हसरत यद्यपि मजहबी इन्सान थे लेकिन इनका जहन हर प्रकार के द्वेष से पवित्र था इनकी नैतिक एवं व्यावहारिक धृष्टïता कमाल की थी। जो बात दिल में होती वही जबान पर लाते। दोहरापन और बनावटी जिन्दगी से उनका दूर का वास्ता न था। खुद्दारी, निर्भीकता, आदर्शप्रियता और खुलूस उनके प्रत्यक्ष गुण थे।
हसरत को विद्यार्थी जीवन से ही शेरो-शायरी का शौक था। स्वाधीनता आन्दोलन में व्यावहारिक रूप से सम्मिलित रहे। उनकी पत्रिका उर्दू-ए-मोअल्ला की जमानत जब्त कर ली गयी। कई बार उन्हें कैद और बन्द की यातनाओं से भी गुजरना पड़ा लेकिन पूर्ण आजादी के सिलसिले में किसी समझौते को स्वीकार नहीं किया।
उर्दू गजल को नये सिरे से स्वीकार्य बनाने में हसरत मोहानी का बड़ा हाथ है। गजल को तहजीबे आशीक़ी की साफ-सुथरी जबान से परिचित किया और दर्द व असर के साथ शीरनी वा दिल को भाने वाली और वर्णन शैली में खिलावट एवं नर्मी पैदा की। इश्कीया जज़्बात और एहसासात का चित्रांकन, दिल की घटना का अक्स उतारना, तसव्वुफ की चाशनी, सियासत का प्रतिनिधित्व, आज़ादी की तड़प और बकौले खुद$जबाने लखनऊ में रंगे देहली की नमूद हसरत के कलाम की विशेषताएं हैं। 13 मई 1951 में उनका इन्तकाल हुआ।
– सैफ मलिक
हसरत मोहानी की गजलेंं
अपना सा शौक़ औरों में लायें कहां से हम,
घबरा गये हैं बेदिली हमराह से हम।
कुछ ऐसी दूर भी तो नहीं मंजिले मुराद1,
लेकिन ये जबके छूट चलें कारवां से हम।
ऐ यादे यार देखके बा वस्फ रंजे हिज्र4,
मसरूर5 हैं तेरी ख़लीशे नातवां6 से हम।
माालूम है सब है पूछते हो फिर भी मुद्ïदआ7,
अब तुमसे दिल की बात कहें क्या ज़बां से हम।
ए ज़हदे $खुश्क8 तेरी हिदायत9 के वास्ते,
सौगाते इश्के लाये हैं हुए बुतां10 से हम।
बेताबियों11 से छुप न सका हाले आरजूं,
आखिर बने न इस निगहे बदगुमां12 से हम।
पीराना सर13 भी शौक की हिम्मत बुलंद है,
ख़्वाहां14 कामेजांमे जो उस नौजवां से हम।
मायूस भी तो करते नहीं तुम जर्राए नाज,
तंग आ गये हैं कशमकशे15 इम्तेहां16 से हम।
खिलवत17 बनेगी तेरे $गमें जां नवा$ज18 की,
लेंगे ये काम अपने दिले शादमां19 से हम।
है इन्तिहाये यास20 भी इक इब्तिदाये शौक21,
फिर आ गये वहीं पे चले थे जहां से हम।
हसरत फिर और जाग करें किसी की बन्दगी22,
अच्छा जो सर उठाये भी इस आस्तां23 से हम।
शब्दार्थ :– 1-गन्तव्य, 2- भीड़, 3-विशेषता के साथ, 4-जुदाई का दुख, 5-खुश, 6- कमजोरी की खटक, 7- मतलब, 8-परहेजगार, 9-चेतावनी, 10- प्रिय की गली, 11- बेताबी की बहुवचन, 12-भ्रम पैदा करने वाली, 13- बूढ़ा, 14- इच्छुक, 15- खींचातानी, 16- परीक्षा,17-तन्हाई, 18- जान बचाने वाला, 19- खुश, 20-निराशा, 21- शौक का आरंभ, 22- गुलामी, 23- दरगाह, चौखट।
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कैसे छुपाऊं राज़े- गम, दीद:-ए-तर को क्या करूं
दिल की तपिश को क्या करूं, सोजे-जिगर1 को क्या करूं
शोरिशे-आशिकी2 कहां और मिरी सादगी कहां
हुस्न को तिरे क्या कहूँ अपनी नजर को क्या करूं
गम का न दिल में हो गुजर, वस्ल की शब हो यूं बसर
सब ये कुबूल है मगर, ख़्ाौफे-सहर को क्या करूँ
हाल मिरा था जब बुतर3, तब न हुई तुम्हें खबर
बाद मिरे हुआ असर, अब मैं असर को क्या करूं
शब्दार्थ :- 1-जिगर की जलन, 2- आशिकी का कोलाहल, 3- बदतर