श्री रामचरित मानस में राजनीति दर्शन

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(चौथी किश्त)- नर्मदाप्रसाद वर्मा
् मेरे आत्म स्वरूप प्रिय महानुभाव,
रामचरित मानस केवल वर्तमान धारणाकूल त्रेता युग का इतिहास नहीं है बल्कि वर्तमान का शश्वत्ï सत्य है। एक दृष्टिï से देखें तो रामचरित मानस चित्र है और दूसरी दृष्टिï से देखें तो दर्पण है। अगर शाश्वत्ï सत्य के रूप में श्री राम कथा से स्वयं को संबंधित कर देखें तो यह मात्र चित्र नहीं है अपितु एक ऐसा दर्पण है कि जिसके सामने खड़े कोई भी व्यक्ति न केवल अपने ईश्वर को अपितु स्वयं अपने आपको देख सकता है।
रामचरित मानस के रूप में वह साक्षात राम की मूर्ति है ऐसा संतों ने कहा है। इसमें जो निरुपण है वह अनोखा है। यह हमारे हृदय का चित्रण है। जितने पात्र रामचरित मानस के हैं वे हमारे एक-एक मनोवृत्ति के प्रतीक हैं। उनके चरित्र का जो वर्णन है वो हमारे मन का, हमारे हृदय को प्रकाशित करने वाले का, उसे शक्ति देने वाले का और उसको कर्म में लगाने का वर्णन है।
यह भी बात आप जान लें कि जितने भी वेदशास्त्र, पुराध दर्शन, रामायण और गीता आादि हैं वे मनुष्य के इसी जीवन के लिए हैं।
आभ्लायस्य क्रियान्वात्ï आनर्र्थक्यम्ï अतदर्थालाम।
यह जेमिली दर्शन का सूत्र है और शास्त्रों की व्याख्या का मूल आधार है। हम जितना भी वेद शास्त्र आदि का वर्णन करते हैं वह मनुष्य जीवन में अच्छे-अच्छे कर्म में प्रवृत्ति होने के लिए करते हैं। यदि मनुष्य शरीर पाकर मनुष्य के इसी जीवन को हम शुभ कार्यों में न लगा सकें तो जितना भी स्वर्ग, बैकुण्ठ, नरक का वर्णन होगा वह सर्व व्यर्थ हो जायेगा। ‘आनर्शक्य अतदर्थातमÓ तो प्रत्येक बात मनुष्य के जीवन को प्रेरणा देने के लिए होती है। ‘दुष्कर्म सेÓ बचने के लिए और सत्कर्म में लगने के लिए यही सभी शास्त्रों का ध्येय है। रामचरित मानस केवल भक्ति ज्ञान का, वैराग का ग्रन्थ नहीं है। वह तो नीति शास्त्र, समाजशास्त्र व राजनीति शास्त्र भी है। वह तो सार्वभौम ग्रन्थ है। वेदों में नौ प्रकार के शासन की व्यवस्था की गई है। यथ:
ऊं स्वस्ति साम्राज्य भोज्यं, स्वराज्यं वैराज्यं पारेमेष्ठïयं, राज्यं,
महाराज्य माधिपत्थयं, मसन्तपर्यार्या स्यात्ï सार्वभौम:
इस प्रकार नौ प्रकार के राज्य शासनों का उल्लेख है। यज्ञादि के अन्त में पुष्पांजलि अर्पित करते समय इस सूत्र का वर्णन किया जाता है।
1. साम्राज्य- अनेक राष्टï्र मिल कर एक विधान के अंतर्गत एक-दूसरे के हित व जनकल्याण को ध्यान में रख कर राष्ट्रमंडल की स्थापना करते हैं। जैसे राष्टïसंघ
2. भोज्यंराज्य :- इसके दो अर्थ होते हैं-
(1) भुजप्रधान – अर्थात जिसकी प्राकृतिक भुजायें सीमति हों, उतने ही भूभाग का राज्य, जैसे इंग्लैण्ड व आस्ट्रेलिया इनके चारों ओर समुद्र है।
(2) भोज्यंप्रधान :- जहां सरकार को राज्य के अंतर्गत निवास करने वाली सरकार जनता के लिए भोजनादि का प्रबंध करना पड़े। जैसे रेगिस्तान अािद के शासन।
3. स्वराज्यं :- इसका वर्णन बाद में किया गया है।
4. बैराज्यं :- इसका अर्थ होता है विगत राज्य वैराज्यं, जिसमें कोई राजा न हो। यह
शसन बड़े भूभाग पर नहीं चल सकता, जैसे श्रृंगवेरपुर का शासन (मुखिया) निषादराज थे।
5. पारमेराज्यं :- यह राज्य पहिले राजस्थान तरफ था। शासक परमेष्ठïी कहलाता था, अब नहीं है।
6. महाराज्य :- जैसे रावण का शासन।
भुजवल विश्ववक्ष्य की राखेसिकोठ न स्वतंत्र।
मंडलीक मनि रावन राज्य करऊ निज भुंत्र। (मानस 1/182)
7. अधिपत्यं :- जैसे किष्कंधा का शासन बालि अधिपति कहा गया है।
8. सामन्तपयोथी :- राजाओं द्वारा सामन्त नियुक्त किये जाने थे जिनके द्वारा शासन तंत्र चलता था। अकबर के काल में मन्सबदार कहे गये हैं।
9. सार्वभौम :- सारी पृथ्वी का एक शासक जैसे –
सकल अवनि मंडल तहिकाला
एक प्रताप भानू महिपाला (मानस 1/153/8)