विगत कुछ दिनों पूर्व मध्यप्रदेश के कुछ अंचलों एवं राजस्थान में घटित सती प्रथा की घटनाओं ने समाज को चिंता में डाल दिया है। यह कुप्रथा आज के दौर में लगभग समाप्त प्राय: हो गई थी, परंतु इस प्रकार की घटनाओं के पुन: सामने आने से समाज में चिंता होना ला$िजमी है। आज के इस दौर में इस प्रकार की पुरातनपंथी प्रथाओं का पालन करना और इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए सरकार के प्रयासों में कमी से बुद्घिजीवी वर्ग के मन में व्याकुलता बढ़ी है कि इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए ऐसे ठोस प्रयास किये जायें ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाएं न हो पाएं।
इसी विचार को लेकर हमने समाज की प्रबुद्घ एवं बुद्घिजीवी वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाली कुछ महिलाओं से चर्चा कर यह जानने का प्रयास किया कि सती प्रथा की घटनाओं के पुन: सामने आने का क्या कारण हैं एवं इसकी रोकथाम के लिए उनके क्या सुझाव हैं? तथा उनके व्यक्तिगत विचार इस प्रथा के विषय में क्या हैं? इन्हीं तीन प्रश्नों को लेकर उनसे बातचीत की गई जिसमें यह बात सामने आई कि समाज के लगभग सभी वर्गों की महिलाएं सती प्रथा को एक कुप्रथा मानती हैं और इसके पीछे मूल कारण अंधविश्वास तथा अशिक्षा है। जिसे दूर करने का प्रयास शासन द्वारा करते हुए ग्रामीण क्षेत्रों विशेष कर बुंदेलखंड क्षेत्र में जहां इस प्रकार की घटनाएं सामने आई हैं में जागृति लाने के लिए प्रयास करना होंगे तथा इस प्रकार की घटनाओं को बढ़ावा देने वालों के विरूद्घ कड़ी कानूनी कार्यवाही की जाना चाहिए ताकि भविष्य में फिर इस प्रकार की घटनाएं घटित न हो सकें। प्रस्तुत हैं इस विषय पर प्रबुद्घ एवं बुद्घिजीवी वर्ग की महिलाओं के विचार: –
कुसुम महदेले
महिला एवं बाल विकास मंत्री
सती प्रथा का कारण जागरूकता की कमी और अशिक्षा है। सती प्रथा की घटनाएं चूंकि बुंदेलखण्ड में ही सुनने में आ रही हैं जहंां शिक्षा की बहुत कमी है। खासतौर पर महिलाओं में पर्दा प्रथा है और कुरीतियां और अंधविश्वास भी इसका एक प्रमुख कारण है।
इसकी रोकथाम के लिए मैं महिला एवं बाल विकास मंत्री होने के नाते मैं चाहूंगी कि बालिकाओं की शिक्षा पर ध्यान दिया जाये और प्रौढ़ शिक्षा के माध्यम से महिलाओं को भी शिक्षित करना अत्यंत आवश्यक है। उनकी आर्थिक स्थिति भी म$जबूत करने की आवश्यकता है जिसके लिये सरकार प्रयास करेगी। चेतना शिविर लगाकर महिलाओं को यह बताने का प्रयास किया जायेगा कि पति के साथ मर जाना ही सती होना नहीं होता, बल्कि सत्य का आचरण करना और अच्छे काम करना ही सत और सती कहलाता है। सती के साथ आत्महत्या करने को सती होना कहना गलत है। और कानून में भी संशोधन होना चाहिए। जो सती अधिनियम है उसमें से सती शब्द को हटाकर पति के साथ आत्महत्या करने वाला ऐसा नियम होना चाहिए।
सती प्रथा को मैं बिल्कुल गलत मानती हूँ। मेरी न$जर में तो यह कू्ररता और बर्बरतापूर्ण कार्य है। किसी महिला को उसके पति के साथ $िजन्दा जला देना कोई धार्मिक अनुष्ठïान नहीं है और न ही धार्मिक कृत्य है। इसकी जितनी निन्दा की जाये कम है। मैं तो समझती हूँ कि जितने लोग भी उस कार्य में जिस किसी रूप में भी सम्मिलित होते हैं उन सब को दण्डित किया जाना चाहिये और जितने अधिकारी, कर्मचारी, पटवारी, पंच-सरपंच, यहां तक कि पूरा गांव यदि इस घटना को रोकने नहीं जाते हैं उन सब को दण्डित किया जाना चाहिए।
मैं बनियानी गांव गई थी मा. मुख्यमंत्री जी ने मुझे भेजा था। मैंने वहां निर्देश दिये हैं कि जिन्होंने फूल माला, प्रसाद बेचा है, नारियल बेचा, पानी पिलाया है, जिन्होंने लकड़ी दी है, चक्कर लगाया है और जो वहां पर तमाशबीन बनकर देख रहे थे उन सब के विरूद्घ कड़ी से कड़ी कार्यवाही कजी जाए।
रेलम चौहान
अध्यक्ष, म.प्र. महिला आयोग
सती प्रथा की घटनाएं सामने आने का मूल कारण जागरूकता की कमी है। देखने में आया है कि वृद्घ महिलायें ही सती हो रही हैं। अभी छतरपुर में सती प्रथा से संबंधित जो दुर्घटना घटी उसमें 90 वर्ष की महिला सती हुई और इससे पहले भी वृद्घ महिलायें ही सती हुई हैं। उनके मन में जो सती होने की जो भावना है वह ऐसी महिलाओं में आत्मविश्वास की कमी, असुरक्षा की भावना, अशिक्षा, अज्ञानता के कारण ही है।
महिलाओं में जागरूकता लाने का प्रयास करना चाहिये। सरकार की योजनाओं का प्रचार-प्रसार कर उनका लाभ दिलाना चाहिए। समाज के लोगों के साथ बैठकर बातचीत करनी चाहिए। रूढि़वादिता को दूर करने के प्रयास करना चाहिए। समाज सुधार एवं समाज के कल्याण के कार्य कर रही संस्थाओं को आगे आकर सती प्रथा जैसी कुप्रथाओं को दूर करने और समाज में उससे फैलने वाले दुष्प्रभाव को बताना चाहिए।
सती प्रथा के विरूद्घ कानून बनाये गये हैं, लेकिन उनका पालन शक्ति के साथ नहीं किया जाता है। इसका पालन किया जाना चाहिए। जिससे लोगों के मन में डर की भावना आये और सती प्रथा जैसी कुप्रथाओं से दूर रहें। सती प्रथा के दुष्परिणामों को नुक्कड़ नाटक के माध्यम से भी जनता को बताया जाना चाहिए।
जिस प्रकार बालविवाह, भू्रण हत्या, दहेज प्रताडऩा आदि अपराधों के लिए कानून बनाये गये हैं और उनका पालन कड़ाई से किया जाता है उसी प्रकार सती प्रथा के लिए भी कानून तो बनें हैं लेकिन उनका शक्ति के साथ पालन कराने की आवश्यकता है। पिछड़े क्षेत्रों में जागरूकता लाने और अंधविश्वास को दूर करने के लिए प्रयास किये जाने चाहिए। मेरे विचार भी यही कहते हैं कि महिलाओं को सशक्त बनाना जरूरी हैं। उन्हें शिक्षित करना और उनके मन में बैठे हुए अंधविश्वास को दूर करने के प्रयास किये जाने चाहिए।
राज्य महिला आयोग तो अपना काम कर रहा है, जिस क्षेत्र में हम जाते हैं उस क्षेत्र में ऐसे बहुत सारे महिलाओं से संबंधित केस आते हैं और हम राज्य महिला आयोग के माध्यम से उन केसों को सुलझाते हैं और महिलाओं को जागरूक करने के प्रयास भी करते हैं।
सविता वाजपेयी
पूर्व मंत्री
सती प्रथा वैसे तो पहले से ही समाज में हैं किन्तु इस पर पाबंदी लगी हुई थी, इसको रोकने के लिए कानून बनाये गये थे। लेकिन मुख्य रूप से इस प्रथा का कारण हमारे समाज में गरुढ़ पुराण नाम की एक पुस्तक है, जो दाह संस्कार वाले दिन से लेकर दसवें दिन तक रोज पढ़ी जाती है। गरुढ़ पुराण में यह लिखा हुआ है कि जो महिला सती होती है उसका पति कितना ही कुकर्मी क्यों न हो, पत्नी के सती हो जाने पर पति के लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं, न की पत्नी के लिए। ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी गरुढ़ पुराण पढ़ा जाता है। मैं इस पर प्रतिबंध लगाने की पक्षधर हूं।
दूसरा कारण, आज के युग में बच्चे अपने माँ-बाप को बोझ समझते हैं और उन्हें यह लगता है कि ये मर जायें तो उन्हें उस भार से मुक्ति मिले। ग्रामीण समाज में सती प्रथा को बहुत अच्छा मानकर सती प्रथा को प्रोत्साहन भी दिया जाता है।
सती प्रथा को रोकने के लिए परिवार के वो लोग जो साथ में जाते हैं उन सब के खिलाफ अपराध कायम किया जाना चाहिये। यहां तक कि जो लोग सती होती महिला को देखने मात्र को भी वहां जाते हैं तो उनके खिलाफ भी मुकदमा कायम होना चाहिए। सती प्रथा के विरुद्घ बने कानून का पालन करते हुए वहां पर मौजूद लोंगों और परिवार के सदस्यों को कड़ी से कड़ी सजा दी जानी चाहिये।
सती प्रथा मेरी न$जर में कुप्रथा ही है, कानून तो बना हुआ है किन्तु कानून का उल्लंघन होता है । मेरा तो मानना है कि जो महिलायें इस प्रथा को महिमा मण्डित कर किसी न किसी रूप में उसको प्रोत्साहन देती हंै, ऐसी महिलाओं को चाहे वे उस परिवार से संबंधित हों, चाहे समाज, गांव से उन सब को दण्डित किया जाना चाहिए।
शोभा ओझा
प्रदेश अध्यक्ष महिला कांग्रेस
मैं समझती हूँ कि सती प्रथा के लिए पिछड़ापन अशिक्षा और बेराजगारी यही तीन कारण है जो कि इसको जन्म देते हैं। अभी-अभी म.प्र. में काफी घटनायें देखने में आई हैं। सागर में जब महिला सती हुई थी तो वहां मैं खुद भी गई थी। मैंने देखा कि जिस पिछड़े गांव की वह महिला थी वो गांव तो पिछड़ेपन की सीमा को भी पार कर गया था अर्थात्ï वह गांव इतना पिछड़ा हुआ था कि वहां पहुंचना ही मुश्किल था। मैंने देखा कि सरकार की जो बहुत लम्बी चौड़ी बातें होती हैं कि आदिवासियों को नई-नई योजनाएं दीं, रो$जगार से जोड़ा आदि सारी बातें खोखली होती हैं। जब वहां जाकर देखा तो बहुत गरीब गांव था। जिस तरह से उसका पति बीमारी से जूझ रहा था और उस बीमारी के इलाज के लिए शासन से भी बीमारी के दौरान किसी प्रकार की कोई मदद नहीं मिली थी। जिससे उस महिला के मन में कहीं न कहीं असुरक्षा की भावना जरूर रही होगी और इसी कारण से उस महिला ने सती होना ही मंजूर किया।
महिला के सती होने के बाद सरकार सती से संबंधित लोगों को स$जा देने और कानून का कड़ाई से पालन करने के बजाय सरकार अपनी पूरी ताकत इस बात को साबित करने में लगा देती है कि वह महिला सती हुई ही नहीं है। उनका मानना है कि जब तक महिला सजधज कर चिता पर नहीं बैठे उसे सती नहीं माना जा सकता है। जबकि सती अधिनियम जो 1982 में बनाया गया था उसमें साफ तौर पर लिखा गया है अगर कोई महिला पति की मृत्यु के फौरन बाद चाहे वह चिता में बैठ कर जले या और किसी जगह पर मरे उसे सती माना जाएगा।
किन्तु प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री जी ने इस बात को नकारा और अपनी पूरी ताकत इसे हादसा, आत्महत्या साबित करने पर ही झोंक दी। हमारे देखने में आता है कि सती सिर्फ वृद्घ महिलायें ही होती हैं।
सती प्रथा को दूर करने के लिए सबसे पहले हमें समाज के दृष्टिïकोण में बदलाव लाने की जरूरत है। सती होने के बाद सती प्रथा को महिमा मण्डित किया जाता है उस पर सख्ती से रोक लगानी चाहिए। समाज की यह सोच कि अगर महिला सती हो जाती है तो वह अमर हो जाती है और वो देवी का रूप पा जाती है तो उसमें रोक लगाने की जरूरत है। जब वो सती होने जाती है तो आसपास के लोग समाज के लोग और घर-परिवार के लोगों को पता होता है कि वो सती होने गई है। समाज में जब तक जागरूकता नहीं आयेगी हम रोक नहीं लगा सकते हैं। दूसरी बात सरकार की जिम्मेदारी ये है कि बुंदेलखण्ड के क्षेत्र में हमें प्रचार प्रसार के साधन उपलब्ध कराये जाना चाहिये जिससे महिलाओं की सोच में बदलाव आये, समाज की सोच में बदलाव आये। महिलाओं को रोजगार से जोडऩे के प्रयास होने चाहिये। जिससे उनमें असुरक्षा की भावना न हो कि पति के बाद हमारा कौन है, हम पति के बाद कैसे जियेंगे आदि भावनायें महिलाओं में नहीं आनी चाहिए।
सती प्रथा एक ऐसी प्रथा है जिसकी जितनी निन्दा की जाये कम है। क्योंकि एक महिला द्वारा अपने आपको वियोग स्थिति में स्वयं $िजन्दा जला देना इससे ज्यादा दर्दनाक और निन्दनीय तो कुछ और हो नहीं सकता। इसे महिमा मण्डित न करते हुए इससे घटना के होने से पूरा समाज शर्मसार होता है और सरकार को भी शर्म आनी चाहिए अपनी जिम्मेदारियों के प्रति जागरूक होना चाहिए। इस कुप्रथा को हर हालत में रोकना चाहिए।
अनुराधा शंकर
डीआईजी भोपाल संभाग
मैं नहीं मानती हूं की कोई महिला समझते बूझते अपनी अक़्ल से सती होने को जा रही होगी। किसी न किसी रूप में उसे सती होने के लिए बाध्य किया गया होगा। एक रूप में यह अपराध की श्रेणी में ही आता है और मुझे लगता है कि जब कहीं पर एक ऐसी घटना होती है और उस घटना पर बहुत अधिक चर्चा हो जाती है और इस चर्चा से दूसरे लोग भी प्रेरित होते हैं।
हमारे यहां जो परिस्थिति बदली है अर्थात्ï समाज के अन्दर जो गिरावट आई है उस कारण से बूढ़ी माँ की देखभाल कोई करना नहीं चाहता। मुझे तो बहुत शंका होती है इस बात की परिवार के लोग जैसे बहू बेटा आदि ये सोचते हैं कि दादा तो गये अब इसकी देखभाल कौन करेगा? यह सोचकर उस वृद्घ महिला को बातों के जाल में लेकर इस तरह से मजबूर कर दिया जाता है अर्थात्ï परिस्थिति ऐसी उत्पन्न कर दी जाती है यानी इतनी अधिक चर्चा होती है। चर्चा भी दो प्रकार से होती है- एक तो उन लोगों की चर्चा जो पुरातनपंथी विचार वाले होते हैं और उस घटना को महिमा मण्डित करने लगते हैं और कुछ लोग समझदार पढ़े-लिखे होते हैं। लेकिन चाहे समझदार लोग बातचीत करें या पुरातनपंथी बात करें इन्हीं चर्चाओं के कारण लोगों के मन में विचार आते हैं कि चलो हम भी इसको कर डालते हैं। मेरा मानना है कि एक जगह की घटना की बहुत अधिक चर्चा करने से दूसरी जगह के लोग प्रेरित होते हैं।
सती प्रथा न हो इसके लिए सबसे पहले तो सख्त कार्यवाही होनी चाहिए। मीडिया के द्वारा पुलिस -प्रशासन के द्वारा की जा रही सख्त कार्यवाही का खूब प्रचार-प्रसार होना चाहिए। इससे सती प्रथा की घटना में कमी और लोगों के मन में डर पैदा होगा। मान लीजिए की 90 वर्ष की महिला अगर अपनी इच्छा से भी सती होने जा रही है तो 90 वर्ष की महिला को रोकने में क्या दिक्कत है। आप उसे बल पूर्वक भी तो रोक सकते हैं कि नहीं अम्मा आप सती नहीं होंगी।
दूसरा सुझाव यह है कि गांव की महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ाना चाहिए क्योंकि पति के मर जाने के बाद महिला आत्मविश्वास की कमी के कारण अपने भविष्य के प्रति चिन्तित हो जाती है और उसके मन में अनेक प्रकार के प्रश्र उठते हैं जैसे- अब हम क्या करेंगे? कैसे करेंगे? बेटे बहू तो पति के $िजन्दा होते हुए भी ध्यान नहीं देते थे तो वो अब मेरा ध्यान कैसे करेंगे आदि वह महिला तो रोटी के लिए भी मोहताज रहती है। ऐसी महिलाओं के लिए समाज को आगे आकर व्यवस्था करनी चाहिए। सामाजिक संस्थाओं को यह देखना चाहिए कि सरकार के द्वारा चलाई जा रही योजनाओं जैसे वृद्घा पेंशन आदि का लाभ जरूरतमंद सभी महिलाओं को मिल रहा है या नहीं। अकेली विधवा, बूढ़ी मां कहीं परेशान तो नहीं है, यदि इस तरह से उन पर ध्यान दिया जायेगा तो जीवन के प्रति उनको एक लगाव होगा और इतनी आसानी से वो मौत को गले नहीं लगायेंगी।
मैं तो व्यक्तिगत रूप से मानती हूँ कि जब आप स्वयं को पैदा नहीं कर सकते तो आपको स्वयं को मारने का भी कोई हक नहीं है। जिसने हम सब को पैदा किया है यह काम तो उसी का है। इसलिए यह काम बहुत ही अनैतिक है। किसी $जमाने में इस प्रथा ने इसलिए जन्म लिया क्योंकि उस समय में महिलाएं अपने आप को असुरक्षित मानती थीं और अपने आत्म सम्मान, इज्जत , अपनी प्रतिष्ठïा और अपनी सुरक्षा की दृष्टिï से वो अपने प्राण देते थीं न कि इसलिए की उन्हें पति के साथ मर जाना चाहिए। यह गलत है और यह गैऱ जिम्मेदाराना काम है क्योंकि अपने पति के जाने के बाद आप उस परिवार की जिम्मेदार, संरक्षक, मार्गदर्शक हैं। आप अपनी इन जिम्मेदारियों से मुक्त कैसे हो सकती हैं। आप ऐसा क्यों मानती हैं कि जो कुछ है सिर्फ आपका पति ही है आपका परिवार बेकार है। परिवार की जिम्मेदारी से इस तरह से मुक्त होना तो मैं अधर्म मानती हूँ।
वंदना राग
साहित्यकार
मुझे तो लगता है कि समाज में असुरक्षा की भावना बढ़ गई है भले ही हम लोग कहते हैं कि हम लोग तरक्की कर रहे हैं। तकनीकि दृष्टिï से व्यवसायिक दृष्टिï से महिलायें बहुत आगे बढ़ गई हैं,पर कहीं न कहीं अंदर एक तरह की छटपटाहट महिलाओं के बीच में है। और जो तरक्की है वो उन महिलाओं तक नहीं पहुंच पाती जिन महिलाओं में यह छटपटाहट रहती है। किसी न किसी प्रकार का असंतोष है जिससे बढ़ती हुई सती प्रथा की घटनायें-दुर्घटनायें हो रही हैं।
सती प्रथा को रोकने का सबसे अच्छा उपाय है जनजागरण और जनजागरण सिर्फ तभी संभव नहीं है कि कुछ लोग समाजसुधारक हैं या अपने समाज में अपनी बात कहने का वर्चस्व रखते हैं वो लोग तो इस के प्रति लोगों को जागरूक करें ही लेकिन साथ ही साथ मीडिया का रोल भी सकारात्मक होना चाहिए। मीडिया इन खबरों को सनसनी खेज खबर बनाकर न दिखाये, बल्कि लोगों को इसके दुष्परिणामों को ध्यान में रखते हुए इस का प्रचार-प्रसार करे समझाने की कोशिश करें। खासतौर से इलेक्ट्रानिक मीडिया इसको लोगों के सामने लाये। जिससे उन महिलाओं को जागरूक करने में वो सफल हो जो महिलायें अज्ञानी हैं, अशिक्षित हैं और कुछ महिलायें तो अंधविश्वास और रूढि़वादिता से घिरी हुई हैं। कभी-कभी तो परिवार एवं समाज का दबाव और यहां तक कि पूरा का पूरा गांव ही इसमें शामिल हो जाता है और वो किसी हद तक तो यह चाहता है कि उनका गांव मीडिया के माध्यम से सामने आ जाये।
ये हमारे अन्दर के अंर्तविरोध जो समाज में चलते रहते हैं कि एक तरफ तो हम चाहते हैं कि हमारा नाम हो जाए चाहे वो नाम गलत बातों का सहारा लेकर ही हो जाए तो हम इससे भी नहीं चूकते हैं। अर्थात्ï मीडिया को चाहिए की सनीसनी खेज खबर के रूप में ऐसी दुर्घटनाओं को न पेश करे। बल्कि दूषित मानसिकता, उसकी बुराईयों को आगे लाये और इसकी रोकथाम में अपना पूरा-पूरा सहयोग दे।
यह प्रथा बिल्कुल जहालत से भरी प्रथा है और हो सकता है कि कुछ लोग मेरी इस बात का विरोध भी करें, लेकिन मेरा मानना है कि समाज पुराने समय से ही स्त्री को प्रताडि़त करता ही रहा लेकिन फिर राजाराम मोहनराय और उनके जैसे कुछ समाज सुधारक आये और उन्होंने इस प्रथा के उन्मूलन के लिए बंगाल से इसकी शुरूआत की जिसके कारण स्त्री को कम से कम जीने का अधिकार तो प्राप्त हो सका। एक जमाना था कि जब महिला की वस्तु से भी खराब स्थिति थी। जैसा कि उस समय में एक कम उम्र स्त्री का पति जो कि 70-90 साल की उम्र का होता था और जब वो मर जाता था तो उस कम उम्र लड़की को भी उसके साथ मर जाना होता था। बेवजह हम समाज से इस तरह स्त्री का उन्मूलन खात्मा ही कर रहे थे। उसकी तरफ हम बिल्कुल ध्यान ही नहीं देते थे। महिला के होने के कोई मायने ही नहीं था। आज दोबारा से इन दुर्घटनाओं का सामने आने चिंता का विषय है कि कहीं हमारा समाज आगे जाने की बजाय कहीं फिर वापस पीछे की तरफ तो नहीं लौट रहा है। इस बात को लेकर गहन चिंतन हमें अपने मन से और वृहत्तर समाज से करना चाहिए कि कहीं हम वापस तो नहीं जा रहे हैं। मेरा ये मानना है कि स्त्री को अदना सा दर्जा देकर हम उसे कहीं फिर से नेस्त नाबूद करने की डगर पर तो नहीं चल पड़े हैं।
विजया दुबे
शासकीय कर्मचारी
सती होने का कोई कारण नहीं होता जिस प्रकार मीडिया इसको प्रचातिर कर रहे हैं। मेरा मानना है कि अब महिलायें वास्तव में सती नहीं होती हैं जैसे पहले हुआ करती थीं। सती प्रथा की घटनाएं इतनी भी नहीं बढ़ी हैं जितनी मीडिया इनको दिखा रहा है। सागर और छतरपुर की सती की घटनाओं को देखकर पता चलता है कि अधिक उम्र वाली महिला अर्थात्ï 90 वर्ष की महिला ही सती हुईं। ये विचारणीय है कि इतनी वृद्घ महिलाएं अपनी इच्छा से सती होने पति की चिता के पास तक कैसे जा सकती हैं। यह जो दावा किया जा रहा है कि महिला सती हुई है यह अपने आप में ही बहुत आश्चर्यजनक लगता है कि इस घटना के पीछे कोई और घटना छुपी लगती है। सती की घटनाएं ऐसे स्थानों पर ही सुनने में आ रही हैं जहां महिला एवं पुरूष ही नहीं बल्कि पूरा-पूरा समाज ही जागरूक नहीं है।
महिलाएं पहले से जागरूक हो गईं हैं। आज महिला पुरूष पर आश्रित न रहकर वह स्वयं अपनी और अपने परिवार की जीविका चलाने के लिए घर से बाहर निकलती है और वह अपने आपको उतना असुरक्षित महसूस नहीं करती। महिला बाल विकास विभाग की तरफ से, सरकार की तरफ से और अन्य विभागों के माध्यम से सरकार की योजनाएं भी चल रही हैं। मेरा मानना है कि सती प्रथा न हो इसके लिए एक-एक महिला को जागरूक बनाने की भी जरूरत नहीं है बल्कि सभी महिलाओं को, समाज को जागरूक करने के लिए माहौल बनाना होगा।
यदि ऐसी कोई घटना घटती है तो यह उसकी अपनी भावनाओं से सोच से होता है। उसे सरकार या लोग किस प्रकार से रोक पायेंगे, क्योंकि यदि यह घटना घट रही है तो यह उसके अपने विचारों के कारण हो रही है, उसकी सोच के कारण हो रही है और कोई किसी की सोच पर पाबंदी तो लगा नहीं सकता।
राजाराम मोहन राय ने जब से सती प्रथा के विरूद्घ लड़ाई लड़ी तभी से महिलाओं की सोच में काफी परिवर्तन आया है। उसी प्रकार आज समाज में महिलाओं की स्थिति भी सुधरी है। जब कोई कम उम्र महिला विधवा हो जाती है तो उसका पुर्नविवाह भी कराया जाता है। सती प्रथा अपने आप में एक कुरीति है और इसे बिल्कुल जड़ से ही खत्म होना चाहिए। मरने वाले के साथ कोई नहीं मरना चाहता और न ही मरना चाहिए। यह बात आज सभी महिलाओं को समझना होगी। प्रस्तुति-रईसा मलिक