सरफरोशाने जन्गे आज़ादी के अजीम जनरल -नवाब अली बहादुर सानी ‘नवाब बांदा

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चौथी किश्त:-
्रनवाब साहब का ऐलान
बांदा और जिला बांदा में चूंकि 12 शव्वाल 1273 हि. मुताबिक 13 जून 1857 ई. से नवाब बांदा की हुकूमत कायम हो चुकी है इसलिए यह एलाने आम जारी किया जाता है कि किसी किस्म का कत्लेआम, लूटमार या रहजनी हर्गिज न की जाए, अगर तुम दूसरे फरीक की हुदूद में दाखिल हो जाओगे या किसी किस्म का गदर मचाओगे तो तुम्हारे मकान और अम्लाक सब जब्त कर ली जाएंगी और तुम्हारे सामान को नजरे आतिश कर दिया जाएगा अगर तुम सरकार नवाब साहब की इमदाद करोगे तो हर किस्म की छूट और इनाम के मुस्तहिक करार दिये जाओगे, यह ऐलान किताब तहरीके जंगे आजादी ‘फ्रीडम स्टे्रटेजी इन यूपीÓ की जिल्द अव्वल के सफह 442 पर दर्ज है। नवाब अली बहादुर सानी के इस ऐलान को सुनकर नम्ती पार के इलाके में दद्दा रंजौर सिंह ने बा$िगयों और अजयगढ़ की फौज की मदद पर अपना राज कायम करने का ऐलान किया लेकिन इससे पहले कि अजयगढ़ की फौज और नवाब साहब के सिपाहियों में लड़ाई हो, नवाब सा. ने निहायत अक्लमंदी और दूरअंदेशी से काम लेते हुए रंजौर सिंह को अपने पास बुलाया और उससे मुलाकात करके उसका समझाया कि इस वक्त इंकेलाबियों का जोर है और हंगामें जोरों पर है। हंगामें के खत्म पर नाना साहब जो फैसला करेंगे वह हम दोनों को मंजूर होगा इस समझौते पर रंजौर सिंह और अजयसिंह की फौज अपने ठिकाने नम्रीपार किले में वापिस चली गयी। और शहर बांदा में अमन और अमान हो गया तो नवाब सा. ने डिप्टी कलेक्टर सरदार मोहम्मद खां को शहर का नाजिम और शहर की अमनोअमान के लिये मुकर्रर किया। 30 जून 1857 को नौगवां छावनी की अंग्रेज फौज के कप्तान मिस्टर स्कॉट और उनके साथियों की एक जमात यानि अंग्रेजी फौजियों को मौजा गोहरा मुगली की जमींदार व दी$गर मुसलमान बाशिंदे गिरफ्तार करके बतौर कैदी नवाब सा. बांदा के पास लाये। नवाब सा. ने इन सबको आजाद कर दिया। नवाब सा. और आपकी वालदा साहिबा ने इनके साथ बहुत ही मेहरबानी का बर्ताव कियसा और अपनी फौज की एक टुकड़ी के हमराह इनको नागौद रवाना किया, जहां यह लोग 12 जुलाई 1857 को बहिफाजत पहुंचा दिये गये (गजेटर सफह 188)। 1 अगस्त 57 को नवाब अली बहादुर सानीने मिस्टर मेन के पास जबकि वह इलाहाबाद में मुकीम थे, एक खत भेजा कि बागियों ने जो गदर यहां मचाया था उसको हमने 20 57 से करीब-करीब खत्म कर दिया है लेकिन यहां कारगुजार इंतेजाम करने वालों की और रूपये की बहुत कमी और जरूरत है आप जल्द इसका बंदोबस्त करें। मिस्टर डी. एल. ड्रेक बू्रकमेन मुसन्निफ बांदा गजेटर सफह 188 पर अपनी राय जाहिर करते हुए लिखते हैं कि यह खत नवाब अली बहादुर सानी के अमल और उनके जज़्बात की तर्जुमानी करता है। अगस्त 57 के दरम्यान में नवाब अली बहादुर सानी और रंजौर सिंह से फिर भूरागढ़ किले के बारे में एक लड़ाई हुई जो 7 रोज तक नम्रीपार होती रही। 2 सितम्बर 57 को नवम्बर 7, 8 के पैदल फौज के सिपाही मय अपने $जख़्मी सिपाहियों के साथ बांदा पहुंचे। 3 सितम्बर को यह सिपाही और बांदा के बागी नागौद के लिये रवाना हुए और वहां से 27 सितम्बर को बांदा वापिस लौटै तो अपने साथ नम्बर 5 फौज के पैदल सिपाहियों और वहां से लूटी हुई बंदूकें और गोला बारूद अपने साथ लाये, 29 सितम्बर 57 को कुंअर सिंह 2000 पैदल फौज को जिसमें नम्बर 4 की पैदल फौज के सिपाही भी शामिल थे, साथ में बहुत सा गोला बारूद असलाह लेकर बांदा आया, और नवाब सा. से मिलकर चाहा कि रंजौर सिंह और नवाब सा. के दरम्यान मसालेहत हो जाए, लेकिन रजौर सिंह के सिर पर खुदी का जुनून सवार था, वह अपनी सरकशी से बा$ज न आया तब उससे फिर लड़ाई हुई जिसमें रंजौर सिंह को शकिस्तेफाश हुई और उसके 800 आदमी मारे गये और तीनों सरदार गिरफ्तार करके नवाब सा. के महल में लाकर कैद कर दिये गये, जो 19 अप्रैल 1858 तक कैद में रहे। नम्रीपार का अजयगढ़ का किला और रंजौर सिंह का महल बिल्कुल मिसमार कर दिया गया। यह वाक्या 8 अक्टूबर 1857 ई. है। 15 अक्टूबर को नं. 3 सवारों का रिसाला जिनमें 500 सवार शामिल थे, भागलपुर से बांदा पहुंचा, 18 अक्टूबर को कुंअर सिंह अपनी फौज को लेकर कालपी के लिये रवाना हो गया, 25 अक्टूबर को नम्बर 7,8 का बा$गी रिसाला भी फतेहपुर की ओर चला गयसा। फिर भी बांदा में 12000 वतन परस्तों की फौज बाकी रह गयी, जिनकी किफायत के लिये रूपया कर्ज लेने की सख्त जरूरत पेश आयी और इसके लिये नवाब सा. ने करवी के नारायण राव की मार्फत सेठ उदय करन से 2 लाख रूपये कर्ज लिया, नम्बर 23 की दो कम्पनियां मय 18 तोपों के करवी से बांदा आयी और 26 दिसम्बर को बांदा से कालपी को रवाना हो गयी। नवाब अली बहादुर सानी 20 जून से अब तक नवाब बांदा की हैसियत से शहर और जिले में अम्रो अमान कायम किये हुए थे। 17 दिसम्बर 1857 को जनरल सर हेवरोज को बम्बई गोर्वमेंट ने शुमाली हिन्द की इंकेलाबी फसाद को ठण्डा करने के लिये रवाना किया जो रास्ते के दरम्यानी राजाओं और जागीरदारों को जैर करता हुआ 16 मार्च 1858 को झांसी पहुंचा और झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के किले पर मोर्चा लगा दिया, रानी झांसी ने नवाब अली बहादुर सानी को राखी पहुंचाई और बहन की हिफाजत करना भाई को याद दिलाया। बहिन की हिफाजत के लिये अपनी फौज के 3000 सिपाही जिनमें 1000 तर्जुबेकार और 300 गोलंदाज थे, रानी की मदद के लिये झांसी रवाना किये। इन्हीें दिनों तात्या टोपे ने राजा चरखारी पर जिसने अंग्रेजों की मदद की थी, हमला किया और नवाब साहब ने अपनी फौज के 1000 सवार तात्या टोपे कर मदद के लिये चरखारी रवाना किये। नवाब साहब को यकायक यह खबर मिले कि अंग्रेजों की एक फौज सागर से छतरपुर होते हुए बांदा आ रही है जिसका कमाण्डर जे. सी. व्हाईटलॉक है। इस फौज 1900 अंग्र्रेजी फौजी और 2 कम्पनियां मद्रासी पल्टन की भी शामिल है। नवाब साहब की फौज की बड़ी तादाद तो रानी झांसी और तात्याटोपे की मदद के लिये चली गई थी, बहरहाल अपनी बची हुई फौज के कुछ लोगों को अंग्रेजी फौज को रोकने के लिये महोबा रवाना किया। लेकिन जासूसों से खबर मिल जाने पर अंग्रेज कमाण्डर व्हाईट लॉक ने महोबा का रास्ता छोड़कर बराह खजुराहों टोटी खड़ी बांदा के सामने पहुंंचकर बरई में पड़ाव डाला, नवाब सा. अपनी बाकी फौज और वतन परस्त इंकेलाबियों की जमात को लेकर मुकाबले के लिये निकले और केन नदी के पार गोइरा मुगली के सामने ग्वाईन नाले के बीहड़ों में मुकाबला हुआ, 7 घंटे लड़ाई हुई, अंग्रेजों के बेहतरीन असलाह और कारतूस व सामने जंग की ज्यादती के सामने नवाब सा. के सिपाही और वतन परस्तों की जमात न ठहर सकी और शिकस्त खाकर वापिस बांदा आ गई। यह मारका 19 अप्रैल 1858 को पेश आया। इस मारके में नवाब सा. की फौज के 800 आदमी हलाक हुए । 20 अप्रैल को अंग्रेजी फौजें शहर बांदा में दाखिल हुई, बावजूद यह कि बांदा में अंग्रेजों के साथ दी$गर मुकामात के इन्सानी हमदर्दी का बेहतरीन सुलूक किया गया था, अंग्रेज फौज ने शहर में लूटमार शुरू कर हर अच्छे और पक्के मकान को गोले मारकर खत्म कर दिया। आग लगा दी और सामान लूट लिया। बेकसूर रियाया को कत्ल कर दिया गया। 20 अप्रैल को बांदा से रवाना होकर अपने कबीले एहलो अयाल को आगरा के लिये रवाना करके खुद नवाब साहब गैर माहरूफ रास्तों से दरियाए केन बेतव, धसान को पार करके और जंगलों में होते हुए वतन परस्तों की एक जमात के साथ कालपी में राव साहब के पास पहुंचे जो नाना साहब बठोर का रिश्तेदार और कालपी के इन्केलाबी जमात का सरदार था, उधर झांसी की रानी लक्ष्मीबाई झांसी की लड़ाई हारने के बाद कालपी पहुंची अब कालपी में 12 हजार फौज, 3 सरदारों, रानी झांसी, राव साहब और नवाब अली बहादुर सानी के जैरे कमान थी। क्रमश: