उषा किरण खान का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं। वह हिन्दी कथा साहित्य की एक ऐसी धरोहर हैं जिनकी लेखनी से अभी तक अनेकों प्रेरणाप्रद कहानियां, विचारोत्तेजक लेख एवं रिर्पोतार्ज, सच्चाई बयान करो नाटक निकल चुके हैं जो सारे देश में उनकी पहचान बन चुके हैं। विगत दिनों भोपालवासियों का यह सौभाग्य था कि ऐसी सशक्त कहानीकार उनके शहर में थीं। उन्होंने इस दौरान भारत भवन में कथा वाचन का एक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किया। उनके सानिध्य का लाभ उठाते हुए श्रीमती रईसा मलिक ने उनसे एक छोटी सी मुलाकात की, प्रस्तुत है श्रीमती उषा किरण खान से रईसा मलिक की बातचीत के कुछ अंश जो उनके जीवन पर कुछ प्रकाश डालते हैं-
प्र. आपका जन्म कहां हुआ?
उ. मेरा जन्म उत्तर बिहार के दरभंगा जिले के लहरिया में हुआ। मेरे पिता श्री जगदीश चौधरी तथा माता श्रीमती शकुंतला देवी थे।
प्र. आपने कहां तक शिक्षा प्राप्त की है?
उ. मैंने एम.ए.पी.एच.डी. की उपाधियां प्राप्त की है।
प्र. साहित्य सृजन में आप सक्रिय हैं?
उ. बचपन से ही साहित्य में रूचि है। स्कूल के समय से ही लिखना शुरू कर दिया था।
प्र. आपके प्रेरणा स्त्रोत कौन हैं?
उ. मेरे पिता स्व्तंत्रता सेनानी थे। हमारे यहां उस समय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, समाज सेवी एवं साहित्यकारों की बैठक हुआ करती थी। उनको देख कर ही मुझे साहित्य सृजन की प्रेरणा मिली। मेरे पिता के मित्रों में नागाजु्र्रन जी भी थे, उनसे मेरा बहुत सानिध्य रहा। उस समय मैं स्कूल-कॉलेज की पत्रिकाओं में ही लिखती थी। नागार्जुन जी ने मुझे प्रेरित किया कि तुम अपनी रचनाएं पत्रिकाओं में प्रकाशन के लिए भेजो।
प्र. आप अभी तक कितनी कहानियां लिख चुकी हैं?
उ. मैंने लगभग 100 कहानियां, 4 उपन्यास एवं कई लघु कथाएं लिखी हैं। हिन्दी भाषा के अतिरिक्त मैथिली भाषा में भी 3 उपन्यास प्रकाशित हो चुके हैं और कई कहानियां भी।
हिन्दी में फागुन के बाद, सीमांत कथा, रतनारे नयन, एवं त्रिज्या नामक उपन्यासों का प्रकाशन हो चुका है। मैथिली में अनुत्तरित प्रश्र, दुर्वाच्क्षय एवं हसीना मंजिल नामक उपन्यास प्रकाशित हुए हैं।
कथा संग्रहों में विवश विक्रमादित्य, दूबदान, गीली पांख, कांस वन एवं जल धार का प्रकाशन हो चुका है। कहां गये मेरे उगना और हीरा डोम नामक नाटक भी मैंने लिखे हैं, जिनका मंचन कई बार हो चुका हेै। कई बाल नाटक भी संचित हो चुके हैं।
प्र. भविष्य में क्या करने का इरादा है?
उ. लेखन ही करने का इरादा है और एक संकलन का प्रकाशन करवाने की तैयारी चल रही है। बहुत सारी कहानियां इकट्ठा हो गई हैं उनका संग्रह करना है। मैथिली भाषा में एक उपन्यास लिख रही हूँ जिसका प्रकाशन शीघ्र ही होगा।
प्र. आपको कौन-कौन से पुरस्कार मिल चुके हैं?
उ. मुझको वैसे तो अनेक पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हो चुके हैं, परंतु जो प्रमुख हैं उनमें बिहार राजभाषा विभाग का महादेवी वर्मा पुरस्कार, हिन्दी सेवी पुरस्कार, दिनकर राष्ट्रीय सम्मान सूरीनामा में आयोजित विश्व हिन्दी सम्मेलन में भी सम्मान किया जा चुका हे।
प्र. कहानी के माध्यम से आप समाज को क्या संदेश देना चाहती हैं?
उ. कहानी लिखने का एक कारण यह भी है कि समाज में जो पचता नहीं हैं तो हम उस ओर समाज का ध्यान आकर्षित करते हैं कि इस ओर ध्यान दो।
प्र. आपने कथा पाठ के कार्यक्रम कहां कहां प्रस्तुत किये हैं?
उ. भोपाल में भारत भवन और स्वराज भवन में मेरा कथा पाठ हो चुका हेै। इसके साथ ही मैंने दिल्ली, बनारस, पटना आदि में ऐसे कार्यक्रम प्रस्तुत किये हैं। इसके अतिरिक्त मेरी कहानियों एवं नाटकों का प्रसारण आकाशवाणी से भी हो चुका है। हमने पटना दूरदर्शन से भी लघु कथा का पाठ प्रारंभ करवा दिया है।
प्र. कोई ऐसा क्षण जब आपको लेखन कार्य के कारण परेशानी हुई हो?
उ. ऐसा कई बार हुआ है कि कुछ लिखा जो कुछ लोगों को पसंद नहीं आया। एक उसे सुनकर कुछ महिलाएं नाराज़ हो गई।
इसी प्रकार लेख और रिर्पोताज भी लिखे हैं जिनमें से कुछ पर लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ा। ऐसी ही एक रिर्पोतार्ज दहेज विषय पर लिखी थी। जिस पर कुछ महिलाएं नाराज़ हो गईं। तब सारिका पत्रिका के सम्पादक ने उस लेख पर लोगों के मत-सम्मत जानने के लिए श्रृंखला चला दी। रिर्पोतार्ज में मैंने लिखा था कि इनके सामने कोई चिंता नहीं है, पिता के कमाए अतिरिक्त धन से खरीदे गये अधिकारी पति की पत्नियां। इस पर बहुत लोगों के समर्थन में भी विचार प्रकाशित हुए थे।
प्र. लिखने के अतिरिक्त अन्य रूचियां?
उ. समाज सेवी माता-पिता की पुत्री हूँ सो समाज सेवा के कार्यों में लगी रहती हूँ। कई समाजसेवी संस्थाओं तथा सांस्कृतिक संस्थाओं की पदाधिकारी भी हूं।
प्र. कहानी की कथा वस्तु आपको कहां से प्राप्त होती है?
उ. कहानी की कथा वस्तु आस-पास से प्राप्त होती है जो सोचने पर मजबूर कर देती हैं। मैं काल्पनिक विषयों पर कहानियां नहीं लिखती। मेरी कहानियां अलग-अलग विषयों पर तथा संवेदनशील होती हैं। किसी न किसी त्रासदी पर कहानी आधारित होती है। संस्कृति के परिवर्तन पर भी कहानी लिखती रही हूं। मेरी कहानी की स्त्री पात्र सदैव सशक्त होती हैं, लुटी-पिटी या बेसहारा नहीं।
मेरी संस्कृति परिवर्तन पर आधारित एक कहानी दूबदान बहुत प्रसिद्ध हेंै जो कि एनसीआरटी की कक्षा 11वीं की हिन्दी पुस्तक में भी पढ़ाई जाती है।
प्र. नये लेखकों के लिए आप क्या संदेश देंगी?
उ. नये लेखकों को बहुत पढऩा चाहिए। उनको प्राचीन, मध्यकालीन ग्रंथों के साथ ही समकालीनों का भी अध्ययन करना चाहिए। क्योंकि जो पढ़ते हैं उनमें गहराई होती है। इसलिए अध्ययन करना बहुत आवश्यक है।
(सातवां फलक पत्रिका के जुलाई 2006 के अंक में प्रकाशित)