वास्तव मेïं सिल्क से ज्यादा वैविध्यपूर्ण व आरामदायक वस्त्र मिलना मुश्किल है। सिल्क एक कुदरती ऊष्मारोधी है। अर्थात यह गर्मियोï मेïं ठंडक और सर्दियोïं मेंï गर्मी का सुखद अहसास कराता है। और भारतीय सिल्क साडिय़ां तो प्राचीन परंपरा व आधुनिकता का एक बेजोड़ संगम हैï।
दक्षिण भारत की सिल्क साडिय़ां
दक्षिण भारत की सिल्क साडिय़ां हर खास मौके पर व हर मूड मेंï आप पर फबेंïगी। उदाहरण के तौर पर आंध्र प्रदेश के सांगारेड्डी व धर्मेश्वरम और मैसूर (कर्नाटक) की कोलेगल व मोल्कलमोरू की सिल्क साडिय़ोïं का पल्लू अपेक्षाकृत बड़ा होता है। इनका किनारा (बॉर्डर) चौड़ा होता है। ये हैवी सिल्क बेस पर तैयार की जाती हैï। तमिलनाडु भी सिल्क साडिय़ोïं के उत्पादन मेï एक अग्रणी राज्य है। इस प्रदेश के कांचीपुरम की सिल्क साडिय़ां अपनी खासियत के लिए देशभर मेंï चर्चित हैï। इनकी सिफत यह है कि इनमेंï पल्लू व किनारा आपस मेïं गुंथा रहता है। इसी तरह तंजौर की सिल्क साडिय़ोïं पर सोने की जऱी का उम्दा काम होता है। इसी कारण तंजौरी साडिय़ां शादी या किसी खास उत्सव के लिए बहुत उपयुक्त हैïं।
बनारसी सिल्क साडिय़ां
उत्तर भारत मेंï वाराणसी सिल्क साडिय़ोïं के उत्पादन का एक प्रमुख केïंद्र है। यहां की साडिय़ां अपनी खासियतोïं के चलते देश-विदेश मेंï लोकप्रिय हैï। यहां की सिल्क साडिय़ों पर विभिन्न डिजायनोïं मेंï जऱी की उम्दा कारीगरी की जाती है।
मुर्शिदाबादी सिल्क
इसी तरह मुर्शिदाबाद (बंगाल) की सिल्क साडिय़ोïं मेंï कुदरती सिल्क टुसाह (टसर) का इस्तेमाल किया जाता है। इन साडिय़ोïं का बार्डर चौड़ा व लाल रंग का होता है। बंगाल की सिल्क साडिय़ोï पर प्राकृतिक प्रतीकों-सूर्य, चंद्रमा व सितारोंï को उम्दा तरीके से चित्रित किया जाता है।
गुजरात की पटोला
पटोला सिल्क साडिय़ोïं की देश मेïं अपनी एक अलग विशिष्टï पहचान है। यहां की सिल्क साडिय़ोïं की एक सिफत यह है कि इनके धागे को बुनाई से पूर्व गांठा व रंगा जाता है।
महाराष्टï्र की पैïठनी
महाराष्ट्र की पैïठनी सिल्क साडिय़ोï की देश-विदेश मेंï एक अलग पहचान है। पैïठनी की सिफत यह है कि इसमेंï पल्लू का किनारा चौकोर होता है और इस पर उम्दा तरीके से विभिन्न आकर्षक चित्रोंï को उभारा जाता है। पैïठनी साडिय़ोïं मेंï जरी व सिल्क के धागे का सुंदर समन्वय किया जाता है।
मध्य प्रदेश की चंदेरी साड़ी
मध्य प्रदेश की चंदेरी साडिय़ोï की भी अपनी एक अलहदा खासियत है। चंदेरी साडिय़ां सिल्क व सूत की उम्दा बुनावट का बेहतरीन नमूना हैं। इन साडिय़ोïं के बार्डर पर सोने के तारोंï की उम्दा कसीदाकारी की जाती है।
सिल्क निर्मित अन्य उत्पाद
देश का सिल्क उद्योग अब काफी प्रयोगवादी हो चुका है। जैकेट, टाइयां, स्कर्ट, स्लैक्स, सूट, दुपट्टïा, रूमाल, सैरांग, खफ्तान, शाल आदि भी अब बाजार मेïं उपलब्ध हंैï। पुरुषोंï के सिल्क निर्मित उत्पादोंï मेंï टोपियां व धोतियां भी शुमार हैï।
इतना ही नहीïं, घर की आंतरिक साज-सज्जा से सम्बंधित अन्य सिल्क निर्मित उत्पाद भी अब बाजार मेंï उपलब्ध हैंï। इनमेïं पर्दे, कुशन कवर, मेजपोश, कृत्रिम पौधे व पुष्प आदि वस्तुएं शुमार हैïं।
असली सिल्क की पहचान
दुनिया के विभिन्न देशोंï के सिल्क की अपनी-अपनी विविधताएं-विशेषताएं हैï। असल मेंï सिल्क का यह वैविध्य उसके वजन, बुनावट (धागे या तंतु की संरचना) व उसकी उत्पादन प्रक्रिया पर निर्भर करता है। चीन की सिल्क काफी चमकदार व अत्यन्त नरम होती है। इसी तरह भारतीय सिल्क की गुणवत्ता भी उच्चस्तरीय होती है। वहीï इटली मेंï सिल्क का प्रयोग महंगे फैशनेबुल परिधानोंï के निर्माण मेïं किया जाता है। यही कारण है कि इतालवियोïं ने सिल्क की अनेक परिष्कृत किस्मेंï विकसित की हैïं।
सिल्क असली है या नकली, लो क्वालिटी का है या हाई क्वालिटी का, इस बात का परीक्षण किया जा सकता है। बतौर परीक्षण सिल्क के कुछ धागोïं को लीजिए। इन्हेंï जलाएं। असल मेïं असली सिल्क जलने पर जम जाता है और यह अवशेष के छोर पर काले रंग का चूर्ण छोड़ जाता है। सिल्क की उत्तमता का परीक्षण उसके भार से भी किया जाता है। सिल्क का भारीपन उसके टिकाऊपन को दर्शाता है। साडिय़ोंï के निर्माण के लिए 60-80 ग्राम का वजन बेहतर माना जाता है।
जिस तरह कॉटन की क्वालिटी उसके रेशे से निर्धारित की जाती है, ठीक उसी तरह सिल्क की पहचान भी उसके रेशे से होती है। बारीक-सूक्ष्म रेशे से उत्तम क्वालिटी की सिल्क तैयार की जाती है। इसी तरह मोटे रेशे से भारी सिल्क तैयार की जाती है।
आंतरिक सज्जा व सिल्क
घर की आंतरिक साज-सज्जा को एक नया लुक देने मेï सिल्क के पर्दों का कोई जवाब नहींï। इन दिनोंï बाजार मेंï सिल्क की अनेक रंगारंग किस्मेï उपलब्ध हैंï। सिल्क की ये विभिन्न किस्मेïं और वैविध्यपूर्ण रंग आपके घर के विभिन्न कक्षोïं के सौïंदर्य मेंï चार-चांद लगा देंïगे। बाजार मेंï सिल्क की जो विभिन्न किस्मेंï उपलब्ध हैï, वे अपनी बुनावट के कारण कांजीपुरम, तन्चोई, जामावार आदि नामोï से जानी जाती हैï। इसके अलावा टसर, मलबेरी सिल्क और वाइल्ड सिल्क की किस्मेï भी बाजार मेंï उपलब्ध हैंï। वस्तुत: सर्दियोïं के इस मौसम मेïं उजले-चमकीले, गहरे, भूरे, मटमैले व खाकी मटमैले आदि किस्म के रंग काफी मुफीद माने जाते हैïं। सिल्क फैब्रिक के ये रंग कमरोंï मेंï गर्माहट का अहसास दिलाते हैïं।
सच तो यह है कि सिल्क के पर्दे अपने ड्रेप व फॉल के कारण इतने चित्ताकर्षक लगते हंैï कि इनकी किसी अन्य फ्रैबिक के साथ तुलना ही नहीïं की जा सकती। इनका रंग आंखोïं को काफी राहत प्रदान करता है। याद रखेंï, लंबे समय तक धूप के सीधे संपर्क मेंï रहने से सिल्क के पर्दे अपनी कुदरती चमक खो सकते हैï, पर ‘ब्लैक आउट लाइनिंगÓ लगाने से ऐसा होने से रोका जा सकता है। इसके अलावा सिल्क के पर्दों को यदि तीन महीने मेंï एक बार ‘वैक्यूम क्लीनरÓ से साफ किया जाये, तो फिर इन्हेïं जल्दी-जल्दी ड्राई-क्लीनिंग मेंï भी देने की जरूरत नहींï पड़ेगी। साथ ही इनकी कुदरती चमक भी बरकरार रहेगी और ये लंबे समय तक काम मेंï आते रहेंïगे। बहरहाल सिल्क के उत्पादोïं को बहुत सहेज कर रखा जाना चाहिए। इनका ‘रफलीÓ इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इस कारण इनकी खासतौर पर हिफाजत करना लाजिमी है। पते की बात यह है कि यदि आप अपने ड्राइंग रूम, बेडरूम या लिविंग रूम मेंï सिल्क निर्मित कोई उत्पाद को अहमियत देती हैï, तो यह तय मानेï कि आपके घर की साज-सज्जा मेंï लाजवाब रौनक आ जायेगी।
ये सावधानियां बरतेïं
* जहां तक हो सके सिल्क के परिधानोïं को पानी से न धोएं। इनकी ड्राई-क्लीनिंग कराना बेहतर रहेगा।
* यदि घर मेंï ही धुलाई करनी है, तो इसके लिए कुनकुने पानी का ही प्रयोग करेïं। साबुन को परिधानोंï पर धीरे-धीरे मलेïं।
* धुलाई के बाद सिल्क के परिधानोïं को निचोड़ें नहींï।
* धूप में परिधानोïं को न सुखाएं।
* सिल्क वस्त्रोंï को डाई न करवायेïं।
* धुलाई से पूïर्व वस्त्रोïं को पानी मेï न भिगोएं।
* दाग-धब्बे छुड़ाने के लिए रासायनिक पदार्थों का प्रयोग न करेï। स्टेन-रिमूवर से ही धब्बे छुड़ाएं।
* इन परिधानोïं को सीधे परफ्यूम व हेयर स्प्रे से भी बचाएं।
* इन्हेïं उमस भरे वातावरण से बचाएं। सिल्क के परिधानोंï को ठंडे व अंधेरे स्थानोïं मेïं रखना चाहिए। वैसे इन वस्त्रोïं को सुरक्षित रखने का आदर्श तापमान 12 से 18 सेन्टिग्रेड है। – अनीता