सुकर्म जहाँ हमारे जीवन मेï विचारोï की प्रखरता मानव जीवन की सार्थकता तथा अपने साथ-साथ जगत कल्याण का बोध कराते हंैï वहीï दुष्कर्म हमारे जीवन मेïं भौतिक मानसिक तथा आध्यात्मिक कष्टïोंï को जन्म देते हैïं। परिणामस्वरूप हम जीवन के मूल उद्देश्य से भटक जाते हैï, हमारे विचारोंï मेंï संकीर्णता का अधिपत्य हो जाता है। ऐसी स्थिति मेंï हमारा विवेक भले-बुरे मेंï फर्क करने मेंï अक्षम होता है और हम दुष्कर्मों के दलदल मेïं फँसते चले जाते हैï। यह सत्य है कि सुकर्म हमारे उत्थान के द्योतक होते हैंï और दुष्कर्म पतन के वाहक अत: हमें जीवन के सुकर्म का पथ चुनना चाहिए, दुष्कर्मों से डरना चाहिए।
अगर हमारी इंद्रियां दुष्कर्मों मेï संलिप्त रहेïगी तो अशांति से भरे हमारे नेत्रोï को सुकर्मों की सत्यता दिखाई ही नहीïं देगी। मोहमाया से वशीभूत हमारा मन अत्यन्त सुख-सुविधाओंï की खोज मेï भागता-दौड़ता रहेगा। दुष्कर्मी व्यक्ति आंतरिक रूप से दुर्बल होता है। जीवन में आने वाली विपत्तियोंï तथा संकटोïं का सामना करने की उसमेï क्षमता नहींï होती। दुष्कर्मी की अंतरात्मा कलुषित और पाप कर्म से लिप्त होती है। उसका चित्त कभी शांत नहीïं रहता। अनाचारी व्यक्ति कभी निश्चिन्त नहीïं होते, उन्हेंï हमेशा अपने कलुषित कर्मों की प्रताडऩा झकझोरती रहती है। वह जब भी जीवन के एकान्त क्षणोïं मेंï अपने बारे मेï चिंतन करते हैïं उन्हेïं कहीï न कहीï ईश्वरीय दंड का आभास हो ही जाता है। सुकर्म करने पर ईश्वर हमेशा हमारे साथ होता है। जिस व्यक्ति पर ईश्वर की अनुकंपा हो भला उसके विचारोंï की समानता कौन कर सकता है। वह तो हमेशा उद्देश्य पूर्ण जीवन जिएगा। हमारी विडंबना यह है कि वास्तव मेंï हम सुकर्मों मेंï अपने को समर्पित ही नहीïं करना चाहते, क्योïंकि सुकर्मों का फल हमेंï उतनी सहजता और प्रत्यक्षता से दिखाई नहींï देता, जितनी सरलता से हमेïं दुष्कर्मों के परिणाम दिखाई देते हैïं। जबकि स्वार्थों के वशीभूत होकर इन नश्वर परिणामोंï को अंगीकार करते हुए दुष्कर्म करते चले जाते हैïं। हमेंï मन मेंï दृढ़तापूर्वक यह धारणा बना लेनी चाहिए कि सुकर्मों से ही ईश्वर की प्राप्ति संभव है, सुकर्म मेंï ही मोक्ष है सुकर्म ही हमेंï ईश्वर के निकट ले जाएंगे। दुष्कर्म हमारे पतन का कारण हैं।
यद्यपि ईश्वर हमेï दुष्कर्मों से समय-समय पर संकेत देकर बचाता है किन्तु हम स्वार्थ और अज्ञानतावश उसे समझ नहींï पाते जिसके फलस्वरूप दु:खद और विपरीत परिस्थितियां हमारे सामने आ खड़ी होती हैïं। सुकर्म हमारे जीवन की वह संचित पूँजी है जिससे हमारे आत्मबल मेंï वृद्धि के साथ ही हमेïं आत्मिक शांति भी मिलती है। सुकर्म हमेंï सदाचार, मानवता और आध्यात्मिकता की ओर ले जाते हैïं। जो हमारी सुख- शांति और समृद्धि के आधार हैïं।
– डॉ.जे.पी.शुक्ला