भारत में वैसे तो अनेक कव्वाल हैं जिनके नाम का डंका पूरी दुनिया में बजता है। इन्हीं में से एक नाम है हाजी असलम साबरी का जो सूफियाना कलाम पढऩे के लिए विश्व विख्यात हैं और उनको अनेक देशों में भारत का प्रतिनिधित्व करने मौका मिला। विगत दिनों मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में आप भोपाल आए, इस अवसर पर रईसा मलिक की उनसे हुई बातचीत के अंश प्रस्तुत हैं-
प्र. कव्वाली पढऩा आपने कब से शुरू किया?
उ. मैंने सात वर्ष की आयु में अपना पहला सार्वजनिक प्रदर्शन दिया। मेरी अंतर्राष्ट्रीय शुरुआत, इंग्लैंड में लंदन में महारानी एलिजाबेथ हॉल से हुई थी, जब मैं केवल 19 साल का था।
प्र. आपक किस परिवार से ताल्लुक रखते हैं?
उ. मैं एक प्रसिद्ध संगीत विरासत और सम्मानित उस्ताद सूफी अब्दुल सुभान साबरी और उस्ताद गफूर शकूर साबरी के परिवार से ताल्लुक रखता हूं।
प्र. अभी तक आप कहां-कहां कार्यक्रम प्रस्तुत कर चुके हैं?
उ. हिन्दुस्तान में कोई जगह ऐसी नहीं है जहां मैं नहीं गया हूँ और हिन्दुस्तान के बाहर भी जाना होता है। 21 साल की उम्र में मैंने लंदन में आयोजित सबसे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय संगीत समारोहों में से एक में सबसे कम उम्र के एकल कलाकार बनने का इतिहास बनाया, जिसे प्रम्स में इंडियन ऑल नाईट सूफी कॉन्सर्ट के नाम से जाना जाता है। तब से आज तक मैंने 40 से अधिक देशों में कार्यक्रम प्रस्तुत किये हैं जिसमें पूरे भारत, यूरोप, मध्य पूर्व, रूस और दूर पूर्व और उत्तरी अमेरिका में विभिन्न संगीत समारोहों और सम्मेलनों में प्रदर्शन शामिल हैं।
प्र. आपका पहला ग्रामोफोन रिकार्ड कब आया?
उ. मेरा पहला ग्रामोफोन रिकॉर्ड 1966 में एच.एम.वी. ने तैयार किया।
प्र. आप किन-किन भाषाओं में कलाम पढ़ते हैं?
उ. मुझे फारसी, उर्दू, ब्रज और पंजाबी जैसी कई भाषाओं में सूफी कव्वाली का पूर्ण ज्ञान है।
प्र. आप $कव्वाली के दौरान जो फारसी के अशआर पढ़ते हैं उसके लिए आपको अध्ययन करना पड़ता होगा?
उ. इसमें सूफी ह$जरात का बहुत बड़ा हाथ रहा है। हमारे जो सुनने वाले हैं उन्होंने भी हमारी इसमें बहुत मदद की। $कव्वाली में सबसे पहले तो शीन-$काफ दुरूस्त होना चाहिए। सही अल्फा$जों की अदायगी यह सबसे बड़ी बात है।
प्र. आप रेडियो पर कबसे कलाम पढ़ रहे हैं?
उ. मैं 1980 से ऑल इंडिया रेडियो, नई दिल्ली में एक शीर्ष वर्गीकृत कलाकार हूं। इसके अलावा मैं एक संगीतकार और सूफिय़ाना कलाम के शायर भी हूं।
प्र. सूफियाना कलाम पढ़ते वक्त आप कैसा महसूस करते हैं?
उ. इश्क अल्लाह से होता है, इश्क रसूल से होता है। इश्क मुर्शिद से भी होता है। मैं इस वक्त अपने होश में आपसे बात कर रहा हूं यह बड़ी बात है। अभी मैं इस मुकाम पर हूं कि इश्क के सिवा मुझे कुछ होश नहीं है। जब मैं गाने बैठता हूं तो मैं खुद नहीं गाता कोई मुझसे गवा लेता है।
कव्वाली में आप अपने परिवार में से किसे ला रहे हैं?
उ. इसमें किसी को लाया नहीं जाता। खुद ब खुद हो जाता है। अभी कोई ऐसा नहीं है। यह अल्लाह का निजा़म है। अल्लाह जिसको चाहता है उसको इससे नवाज़ देता है। मैं तो चाहता हूं कि मेरे परिवार से कोई आए, लेकिन यह बहुत तेज जमाना है, लोग चंद दिनों में कामयाबी चाहते हैं। इसमें कई बरस लग जाते हैं। यह बात मैंने अपनी किताबों में भी लिखी है।
प्र. आजकल रीमिक्स का दौर है, उससे $कव्वाली पर क्या असर पड़ेगा?
उ. कोई भी दौर आता है उसका $गलबा थोड़ी देर के लिए ही होता है। मगर ख़ानकाही $कव्वाली दब तो सकती है खत्म नहीं हो सकती। ये वो ची$ज है कि जिस काम की बुनियाद ख्वाजा मुईनउद्दीन चिश्ती ने रखी थी तो फिर उसको $जवाल है ही नहीं। जितना भी पढ़ा-लिखा तबका है वो इसको पसंद करता है।
प्र. आपके सबसे ज्यादा मशहूर कलाम कौन से हैं?
उ. वैसे तो मैंने जो भी कलाम पढ़े हैं ज्यादातर को जनता ने सराहा है और पसंद किया है, लेकिन इनमें ‘मुहम्मद के शहर मेंÓ, ‘ऐ मेरी जाने गज़़लÓ और ‘ये तो ख्वाजा का करम हैÓ आदि बड़ी मशहूर हुई है। फिल्म परम्परा में भी मैंने अपनी आवाज में एक कव्वाली प्रस्तुत की।
प्र. आपको कौन-कौन से सम्मान और पुरस्कार मिले हैं?
उ. मुझे संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (यू.पी. सरकार), भारत-पाक शांति पुरस्कार (पाकिस्तान सरकार), संगीत रतन पुरस्कार (मुंबई सरकार), खुसरो रागी पुरस्कार (राजस्थान सरकार), कलंदर कव्वाली पुरस्कार (कला दर्पण सोसाइटी, पंजाब) तथा भारत मील का पत्थर पुरस्कार (यू.एस.एस.आर.) से सम्मानित किया जा चुका है।
प्र. नये $कव्वाली पढऩे वालों के लिए आप क्या सन्देश देना चाहेंगे?
उ. मैं उनसे यही कहूँगा कि आने वाली नस्लें अच्छे तरीक़े से इस काम को करें, सीखें और इस तरफ इनकी तवज्जो हो और मेरी तो यही दुआ है कि अल्लाह तआला उनको कामयाबी अता करे। $कव्वाली में ठेके का भी बहुत महत्व है। धुनें भी रागों में बनाई जाती हैं। आजकल बच्चों का रूझान उर्दू की तरफ नहीं है। आजकल के नये गाने वाले यह सोचते हैं कि आसमान से तारे तोड़ लाऊं जबकि कामयाबी और बुलंदी का एक रास्ता खानक़ाहों की तरफ से भी होकर जाता है बुलंदी इधर ही है। कामयाबी में किस्मत का भी बहुत बड़ा हाथ होता है।