सृष्टिकर्ता के अस्तित्व का वैज्ञानिक प्रमाण

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गतांक से आगेः-
विश्व के प्रत्येक वस्तु का अस्तित्व खुदा के अस्तित्व का प्रमाण है
विश्व समूह में मानव जाति सब से उत्तम सृष्टि माना जाता है और हम व आप इसी मानव जाति के सदस्य हैं। मानव पृथ्वी के विभिन्न स्थानों में बस रहे हैं। हर स्थान के लोग रंग, शक्ल व सूरत या आकार में किसी प्रकार विभिन्न होने के बावजूद, सामूहिक बनावट की ओर से विश्व के तमाम लोगों में एकरूपता पाई जाती है। ऐसा नहीं देखा गया और न सुना गया है कि एशिया के लोगों के विपरीत अमेरिका के लोगोंे की तीन-तीन टांगें हुआ करती हैं। ऐसा भी नहीं सुना गया कि यूरोप व आस्ट्रेलिया के लोगों की नाक सर के पीछे होती है। तात्पर्य यह है कि मानव शरीर का हर अंश अपनी स्थान पर होने से पृथ्वी के तमाम लोगों के अन्दर एकरूपता और एकसानियत पाई जाती है। और पैदाईशी वृद्धि क्रम बराबर जारी रहने के बावजूद इस एकसानियत के नियम में कोई परिवर्तन नहीं आती और न मानव अपने से इस नियम में कोई परिवर्तन ला सकता है।
पृथ्वी के प्रत्येक क्षेत्र में मानव वीर्य से मानव ही पैदा होता है। कहीं मानव वीर्य से शेर पैदा नहीं हुआ और न शेर के वीर्य से मानव। वैज्ञानिकों ने वीर्य पदार्थ का परीक्षण करके बताया है कि वीर्य पदार्थ चाहे पुरूष का हो या स्त्री का, ऐसे छोटे-छोटे अनुवांशिक कोशिकाओं (खल्यां) से युक्त होकर बना है जो खुर्दबीन या माईक्रोस्कोप यंत्र द्वारा ही देखा जा सकता है। जिसे बीतवउवेवउमे कहा जाता है। इस वीर्य ’’क्रोमोसोम्स‘‘ की संख्या विश्व-प्राणी की प्रत्येक जाति के लिये विशेष तथा सीमित होती है और सीमित संख्या के कारण विश्व-प्राणी को प्रत्येक जाति अन्य जाति से विभिन्न पैदा होती है।
अगर मानव के इस वीर्य-पदार्थ ’’क्रोमोसोम्स‘‘ की सीमित संख्या में कमी या ज्यादती हो जाये तो फिर वहां पारी मानव को जनने के बजाये भेड-बकरी या कुत्ता-बिल्ली जनने लगेगी। परंतु वास्तविक तौर पर ऐसा नहीं सुना गया। जिस का मतलब स्पष्ट है कि पृथ्वी के तमाम क्षेत्रों में मानव-वीर्य के ’’क्रोमोसोम्स‘‘ की सीमित संख्या में एकसानियत है और इसी कारण प्रत्येक क्षेत्र में मानव-वीर्य से मानव ही पैदा होता है।
इसी प्रकार पृथ्वी के समस्त क्षेत्रों के पशुओं में भी एकसानियत है और वनस्पतियों के वृद्धि-नियम में भी एकरूपता है। यह नहीं सुना गया कि किसी स्थान में सेब या अंगूर या आम या केला मिट्टी के नीचे वृक्षों की जडों में फलने लगे हैं और आलू या गाजर बडे-बडे वृक्षों की शाखाओं और टेहनियों पर फलना आरम्भ कर दिया है।
यह भी सुना गया है कि एशिया के उदय अस्त के विपरीत अमेरिका या यूरोप में चांद-सूरज पश्चित या उत्तर या दक्षिण से उदय होने लगे हैं।
अब जरा खुले मस्तिष्क से चिन्ता कीजिए के आखिर विश्व की इन वस्तुओं में इस प्रकार ठोस, एक दूसरे के साथ सहयोग व संयुक्त नियम कैसे आया और इस नियम में एकसानियत क्यों कर आई और किस तरह अविरलता के साथ यह एकसानियत जारी है? क्या यह स्वयं अकस्मात पैदा हो गई औ उसे स्वयं अविरलता प्राप्त हो गया है?
कुरआन करीम (इस्लाम की धर्म पुस्तक) ने एक स्थान पर यही प्रश्न छेड कर समझदार लोगों को इस विश्वव्यापी प्राकृतिक विधान पर चिन्तन करने का प्रेरणा देते हुए कहा है कि ’’क्या वह लोग बिना सृृष्टिकर्ता के स्वयं पैदा हो गये या उन्होंने अपनी इच्छा अनुसार अपने आप को खुदा बना लिया? (कुर्आन 52@35) इसी प्रकार विभिन्न प्रश्न कुर्आन करीम ने किये हैं, ताकि मानव जाति इस विश्व कोे देख कर अपने सृष्टिकर्ता को पहचान सके।
किसी छोटे से स्थान पर कोई एक नियम लागू करने के बाद भी उसकी देख-रेख करना पडती है, ताकि कोई उसका उल्लंघन न करे। उदाहरण स्वरूप स्कूल के यूनिफार्म को लीजिये- किसी भी स्कूल के विद्यार्थियों के एक प्रकार के विशेष परिधान को भी यूनीफार्म कहा जाता है- जिस के रंग व डिजायन में एकरूपता होती है और विद्यार्थी सर्वदा उस यूनिफार्म में स्कूल जाते-आते हैं?
इस यूनिफार्म के चालू होने के बारे में अगर कहा जाये कि किसी छुट्टी की एक रात स्कूल के एक विद्यार्थी के दिल में सहसा या अकस्मात यह इच्छा पैदा हो गई कि एक विशेष रंग व विशेष डिजायन के परिधान में स्कूल जाया-आया करेगा, जो दूसरे तमाम स्कूलों के परिधान से बिलकुल अलग रूप का हो। सहसा उसे एक -ग्रीन रंग और एक विशेष डिजायन पसन्द आ गया और अकस्मात उसी रात अन्य सभी विद्यार्थियों के दिल में भी उस रंग और उसी डिजायन के परिधान में स्कूल जाने-आने की इच्छा पैदा हो गई।
इन सभी विद्यार्थियों ने सुबह अपने माता-पिता से कह कर अपने मनोनुकूल परिधान सिलवा लिये और सोमवार सुबह को सारे विद्यार्थी अपनी-अपनी पसंद के विशेष परिधानों में स्कूल पहुंचे तो सब एक दूसरे का परिधान देख कर आश्चर्यचकित हो गये, क्योंकि सब के परिधान अकस्मात तौर पर एक ही रंग और एक ही डिजायन के थे। फिर ये विद्यार्थी सर्वदा उसी परिधान में स्कूल जाते-आते रहे और इस प्रकार उस स्कूल के विद्यार्थियों में एक यूनिफार्म प्रचलित हो गया। अब आप ही बताएं कि उपरोक्त तरीकों से क्या किसी एक भी स्कूल में अकस्मात तौर पर कोई यूनिफार्म का चालू होना सम्भव है?
एक नास्तिक (खुदा का मुन्किर) शायद- इस डर से के ’’ना‘‘ कहने पर, इस विश्व का एक महाशक्तिमान, सुपर पावर प्रबंधक के अस्तित्व का स्वीकार करना अनिवार्य हो जाएगा- अपनी हठधर्मी पर आ कर झट से यह कह दे कि ’’हाँ‘‘, अकस्मात तौर पर इस तरह से कोई यूनिफार्म का चालू हो जाना सम्भव है, क्योंकि जब स्वयं यह विश्व ही सम्भव वस्तुओं में से एक है तो इस विश्व की कोई चीज या इसकी कोई घटना सम्भव से बाहर नहीं।
हम यह मानते हैं कि इस विश्व में कोई भी वस्तु या कोई भी घटना सम्भव है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि हर चीज और हर घटना को अकस्मातों के हवाला कर दें और अपनी बुद्धि व विवेक और सोच व विचार को ताक पर रख कर अपने आप को हर प्रकार के दायित्वों से मुक्त समझने लगें।
यह विश्व सम्भव (मुमकेनात) वस्तुओं में से होने का अर्थ यह भी नहीं कि इसकी हर चीज को अकस्मातों की दया- कृपा पर छोड कर हाथ पर हाथ धरे बैठे रहें, बल्कि यह विश्व केवल इस अर्थ में (मुमकिनात) व सम्भव मे ंसे एक है कि इसे चिरस्थाई या अनादित्य प्राप्त नहीं। अतीत में कोई ऐसा समय बीता होगा जब यह विश्व मौजूद नहीं था फिर अस्तित्व में आया औा भ्ािवष्य में कोई ऐसा समय आयेगा जब यह नष्ट या फना हो जायेगा।
अगर इस विश्व को भी अकस्मातों की देन समझ लें तो इसका अर्थ यह होगा कि इस विश्व की आयु अब तक जितनी मानी गई है, उससे कई खरब गुना अधिक वर्ष में भी इसका अकस्मात तौर पर अस्तित्व में आना आवश्यक नहीं होता, जिस का अर्थ यह होता कि अब तक न यह विश्व पाया जाता और न स्कूल का उपरोक्त यूनिफार्म पाया जाता।
लेकिन जब हम प्राकृतिक व वास्तविक दृष्टिकोण से देखते हैं तो यह विश्व भी मौजूद पाते हैं और स्कूल यूनिफार्म भी। जिस का अर्थ यह हुआ कि विश्व और इसमें पाई जाने चीजेें किसी अकस्मात की देन नहीं, बल्कि वह किसी सर्वशक्तिमान सुपर पावर प्रबंधक और बहुत ही माहिर पाॅलिसी साज या निपुण विधायक के कारनामें हैं।
जब स्कूल यूनिफार्म देखते ही, अकस्मातों के भ्रम या धोखे में न पड कर, यह मान लेना बिलकुल सरल व वास्तविक बात है कि इस छोटे से स्कूल में एक ही प्रकार के यूनिफार्म बनाने, इस के लागू करने और चालू रखने में, स्कूल के सुपर पावर अर्थात स्कूल कमेटी का हाथ है जिसके बगैर इस यूनिफार्म के अस्तित्व में आना सम्भव नहीं था, ठीक इसी तरह इस आकाश व पृथ्वी की विश्व-व्यापी वस्तुओं में यूनिफार्म व एकसानियत पैदा करने, उन्हें एक दूसरे से संयुक्त रखने और एक अटल नीति व विधान के साथ चालू व बरकरार रखने में भी किसी एक महान शक्ति या सुपर पावर के हाथ होने का विश्वास करना बिलकुल विवेकसंगत, सरल और वास्तविक बात है, जिसे हम सर्वशक्तिमान, (कादरे मुत्लक) अल्लाह, या खुदा के नाम से याद करते हैं, कोई उसे गाॅड कहता है तो कोई उसे ईश्वर के नाम से याद करता है।
0 मो. अताउररहमान