स्तन कैïसर स्त्रियोïं मेïं बहुतायत है। 40 वर्ष की उम्र बाद, स्तन कैïसर की आशंका बढ़ जाती है। यदि माँ या बहन को स्तन-कैंïसर हो तो खतरा और बढ़ जाता है, अत: हर महिला को स्वयं समय-समय पर अपने स्तन की जाँच करनी चाहिए तथा गाँठ महसूस होने पर उसकी चिकित्सकीय जाँच करायेï। आरंभ मेंï अक्सर दर्द नहीïं होता, इस कारण स्त्रियाँ अक्सर इसके इलाज मेंï लापरवाही कर बैठती हैï। गाँठ शीघ्र बड़ी होने लगती है और बढ़ी हुई अवस्था मेंï फूटकर बहने लगती है। इतना ही नहींï, कैïंसर कोशिकाएँ शरीर के विभिन्न अंगोïं मेंï फैलकर उन्हेïं खराब कर देती हैï, यह अवस्था अत्यंत कष्टïदायी होती हैï। स्तन की गाँठ मेï कैïसर की जाँच के लिए मैमोग्राफी, सुई द्वारा जाँच अथवा बायोप्सी द्वारा ऊतक की जाँच करायी जाती है। विभिन्न परीक्षणोंï द्वारा कैïंसर की बीमारी तथा उसकी अवस्था ज्ञात होने पर इसका अतिशीघ्र उचित इलाज आवश्यक है। कैïंसर मेंï सबसे महत्वपूर्ण बात है कि इलाज विशेषज्ञ द्वारा ही करवाना चाहिए। स्तन कैïंसर यदि आरंभिक अवस्था मेïं हो तो उचित इलाज द्वारा अधिकतर मरीज पूर्णत: ठीक हो जाते हंैï। स्तन कैïंसर की चिकित्सा मेंï ऑपरेशन, विकिरण चिकित्सा, कीमोथिरैपी तथा हॉर्मोनथिरैपी का सम्मिलित प्रयोग होता है। कैïंसर यदि आरंभिक अवस्था मेंï हो तो स्तन को भी बचाया जा सकता है, गाँठ को निकालकर विकिरण चिकित्सा दी जाती है। विकिरण के लिए इंप्लांट या लीनिअर एक्सेलरेटर द्वारा चिकित्सा जरूरी है वर्ना आशानुरूप परिणाम प्राप्त न होïं।
लीनिअर एक्सेलरेटर से कोबाल्ट की तुलना मेंï फेफड़े और हृदय भी अधिक सुरक्षित रहते हैïं। यदि कैïंसर बढ़ा हुआ हो तो संपूर्ण स्तन को निकालना ही उचित है। कीमोथिरैपी का उपयोग शरीर मेïं फैली कैïंसर कोशिकाओïं को मारने के लिए होता है। इसके लिए पैक्लीटैक्सेल व एपिरूबिसिन श्रेष्ठï दवाएँ हैï। कीमोथिरैपी से मितली, बालोंï का गिरना तथा खून सूखने जैसे दुष्प्रभाव हो सकते हैïं किन्तु इन पर दवाओंï द्वारा नियंत्रण किया जा सकता है। ऑपरेशन द्वारा निकाले गए कैïंसर मेïं एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रॉन रिसेप्टर का परीक्षण हो और रिसेप्टर के पॉजिटिव होने पर हॉर्मोन थिरैपी कैïंसर के नियंत्रण मेंï बाधक होती है। कभी-कभी खास तकलीफ स्तन की गाँठ न होकर शरीर के किसी भाग मेï दर्द होना अथवा दौरा पडऩा आदि भी हो सकती है। ये लक्षण हैï बीमारी की बहुत बढ़ी हुई अवस्था के, इसके इलाज के लिए मुख्यत: औषध तथा विकिरण चिकित्सा का प्रयोग होता है। यहाँ रेडियोथिरैपी का मुख्य उद्देश्य मरीज की तकलीफ को कम करना होता है। इलाज के दुष्प्रभाव कम करने के लिए हरी पत्तेदार सब्जी, फल तथा अधिक मात्रा मेïं तरल पदार्थ लाभदायक रहते हैं।
– डॉ. पी. एन. शुक्ल