हजरत की पैदाइश मुल्क सजिस्तान में सन् 537 हि. मुताबिक 1142 ई. में हुई थी। हजरत ख्वाजा के पुरखों का वतन हिरात के करीब शहर चिश्त में था, इसीलिए आप चिश्ती कहलाते हैं।
आपके वालिद का नाम हजरत ख्वाजा गियासुद्दीनहसन चिश्ती रह. था। आप इमाम हुसैन रह. की औलाद में से थे। हजरत ख्वाजा की शुरू की तालीम और तर्बियत आप ही की निगरानी में हुई, लेकिन हजरत ख्वाजा की उम्र मुश्किल से ग्यारह साल थी कि आप के वालिद इराक में वफात पा गये।
हजरत को बाप की मीरास में एक बाग मिला था। आप इसी बाग की आमदनी के पैदावार से अपनी और घर वालों की जरूरतों को पूरा फरमाया करते थे। एक दिन हजरत ख्वाजा गरीब नवाज उस बाग में बैठे थे कि इब्राहिम कलंदर नामी एक मज्जूब को आपकी यह अदा बहुत पसंद आयी। उन्होंने आप के लिए दुआ की, सर पर हाथ फेरा। उसी वक्त आपने महसूस कर लिया, जैसे आप का दिल रोशन हो गया हो, दुनिया और दुनिया वालों से आप का दिल हट गया, चुनांचे हजरत ख्वाजा गरीब नवाज ने बाग और सारा सामान बेच कर उस रकम की रिश्तेदारों और गरीबों में बंाट दिया और वतन छोड की हक पाने के लिए उठ खडे हो गये।
ख्वाजा उस्मान हारूनी रह. से बैअत
आप वतन छोड देने के बाद सब से पहले समरकंद पहुंचे। वहां आपने कुरआन मजीद हिफ्ज किया और दूसरे इल्म हासिल करने में लगे रहे। इसके बाद आप कस्बा हारून में तश्रीफ ले गये। वहां आप हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी रह. की खिदमत में हाजिर हुये। उन्होने आप को खास मुरीदों में शामिल कर लिया। इसी बीच आपने अपने पीर के साथ दमिश्क का सफर भी किया। वहां आप ने दरवेशों की एक ऐसी जमाअत देखी जो खुदा के इश्क में मस्त थी आपने भी फायदा उठाया।
इसके बाद आप मक्का मुअज्जमा और मदीना मुनव्वरा को रवाना हुए। उस वक्त भी आपके साथ हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी थे।
हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी की आप पर बडी मेहरबानी थी। आपकी पूरी तर्बियत उन्होंने की, यहां तक कि पूरा सिखाने-पढाने के बाद उन्होंने हजरत ख्वाजा से फरमाया, ऐ मुईनुद्दीन! यह सब तालीम तुम्हारी मुक्कमल तर्बियत के लिए थी, तुम को इन तालीमात पर पूरी जिंदगी अमल करना है, ताकि कयामत के दिन मुझे शर्मिन्दगी न हो।
हजरत ख्वाजा उस्मान हारूनी की तालीमात से फारिग होकर आप अपने वतन सजिस्तान वापस तश्रीफ ले गये। और वहां से तबलीग के लिए हिन्दुस्तान का रूख किया। हिरात, बल्ख, गजनी होेते हुए आप दिल्ली पहुंचे। दिल्ली में आप कुछ दिन ठहरे रहे। फिर वहां से आप अजमेर चले गये।
अजमेर में
जब 1193 ई. में आप दिल्ली से अजमेर के करीब पहुंचे, उस वक्त आपके साथ, आपके चाहने वाले कुल चालीस आदमी थे। कस्बा समाना में राजा पृथ्वीराज के नौकरों ने आपको रोक लिया, इसलिए के राजा को किसी ने बता दिया था कि इस किस्म का बुजुर्ग तुम्हारे राज्य का दुश्मन साबित होगा, तुम इससे चैकस रहना।
आपको इसी वहम में रोका गया था। लेकिन आप में कोई ऐसी बात न देख नौकरों ने बाद में छोड दिया और आप अजमेर पहुंच गये।
मुकाबला जादूगर से
बयान किया जाता है कि अजमेर शरीफ में एक जमाने में एक जिन्न रहता था, राजा और अजमेर के बाशिंदे इस जिन्न से इतनी अकीदत रखते थे कि वे उसे पूजते थे। राजा ने उस जिन्न के वास्ते कुछ परगने भी वक्फ कर दिए थे।
हजरत जब वहां पहुंचे और आपकी बुजुर्गी आम तौर से लोगों तक पहुंचने लगी, तो यह जिन्न भी आपकी खिदमत में हाजिर हुआ। उस पर आप के अख्लाक का, आपके रहन-सहन का और आप की बातों का इतना असर हुआ कि उसने फौरन ही इस्लाम कुबूल कर लिया और आपके अकीदत मंदों में शािमल हो गया। हजरत ने इस जिन्न का नाम शादी देव रखा और अपनी तालीम व तर्बियत से उसे कमाल दर्जे तक पहुंचा दिया।
इस जिन्न का हजरत के खादिमों में शामिल होना था कि मुखालिफ लोगों ने कहना शुरू कर दिया कि आप बहुत बडे जादूगर हैं और उन्होंने सिर्फ जादू के जोर से उनके माबूद ’’जिन्न‘‘ को काबू में कर लिया है। इसलिये हजरत के मुकाबले के लिए चोटी के जादूगरों की खोज शुरू हो गई।
उस जमाने में जयपाल जादूगर बहुत बडा जादूगर समझा जाता था। जयपाल के बारे में आम ख्याल यह था कि दुनिया का कोई बडे से बडा जादूगर उसके मुकाबले में नहीं ठहर सकता, चुनांचे राजा पृथ्वीराज ने जयपाल को हजरत के मुकाबले के लिए तैयार किया। जयपाल जादूगर जब हजरत के मुकाबले के लिए आया तो उसके साथ डेढ हजार मुरीद जादूगर थे। सात सौ जादू के खौफनाक अजदहे और सांप थे और पन्द्रह सौ तिलस्मी (जादुई) चक्कर थे। इन तिलस्मी चक्करों का कमाल यह था कि यह हवा में जादू के जोर से तैरते-फिरते थे और एक सौ मील तक दुश्मन के लश्कर में जाकर दुश्मनों के सर उडा देते थे। गरज यह कि जयपाल जादूगर पूरे इंतिजाम के साथ हजरत के मुकाबले पर आ डटा।
हजरत को जब इत्तिला मिली की जयपाल जादूगर पूरी ताकत के साथ धावा बोलने वाला है, तो आपने वुजू करके अपने साथियों के चारों तरफ डंडे से एक हल्का खींच दिया और फरमाया कि अगर अल्लाह ने चाहा तो इस हल्के के अन्दर न तो दुश्मन आ सकेगा और उसका जादू ही असर कर सकेगा। चुनांचे जब जयपाल अपने साथियों के साथ इस हल्के के पास पहुंचा और हल्के के अंदर कदम बढाने की कोशिश की, तो सब के सब मुंह के बल गिर पडे।
इस कोशिश में नाकाम होने के बाद जयपाल ने अपने जादू की दूसरी ताकतों से काम लेना चाहा, लेकिन अल्लाह की कुदरत से जयपाल का कोई जादूगर कामयाब न हो सका। बल्कि उल्टा उसकी तबाही की वजह बन गया। हालत यह थी कि जयपाल हजरत पर जो भी जादू करता था, वह पलट कर जयपाल के ही आदमियों को फना कर देता था। उसके फेंके हुए भयानक तिलिस्मी चक्कर पलट-पलट कर उसके आदमियों की गरदनें उडा देते थे और जादू के तमाम सांप और अजदहे हजरत पर हमला करने की बजाए पहाडों में घुस गये थे।
हजरत की सादा जिंदगी
हजरत की जिंंदगी निहायत सादा थी।
आप बहुत कम खाना खाते थे। अक्सर तीन दिन के बाद रोटी के सूखे टुकडे पानी में तर के खा लेते थे और इन सूखे टुकडों की भी मिक्दार मुश्किल से डेढ तोला होती थी।
कपडा बहुत की सादा पहनते थे। जब आपके कपडे फट जाते थे तो खुद ही अपने हाथ से पैबंद लगा लेते थे।
हजरत ख्वाजा कुतुबउद्दीन बख्तियार काकी रह. फरमाते हैं कि मैं बीस बरस हजरत की खिदमत में रहा, लेकिन कभी यह नहीं सुना कि हजरत ने अपनी सेहत के लिए दुआ मांगी हो, बल्कि अक्सर वह यह दुआ मांगा करते थे कि, ऐ अल्लाह! जहां कहीं दर्द और मेहनत हो, वह अपने बंदे मुईनुद्दीन को इनायत फरमा।
मैंने एक बार अर्ज किया, ’’या हजरत! आप अपने लिये यह कैसी दुआ मांगा करते हैं।‘‘
आपने फरमाया, ’’जब कोई मुसलमान दर्द में मुब्तिला होता है, तो उसके गुनाह माफ हो जाते हैं और दर्द में मुब्तला होना मुसलमान के अच्छे ईमान की दलील है।‘‘
हजरत बडे इबादत गुजार, दरवेश और रात भर जाग कर ही इबादत करने वाले बुजुर्ग थे। आप ने पैदल की अनगिनत हज किये हैं। आप लगातार सत्तर साल तक रात को नहीं सोये और पहलू को जमीन से नहीं लगाया। आप दिन में रोजे रखते, रात भर खडे होकर इबादत करते। आप हर वक्त वुजू से रहा करते थे।
आप कभी किसी पर गुस्सा नहीं होते थे, लेकिन एक दिन आप अपने मुरीद शेख अली के साथ कहीं तश्रीफ ले जा रहे थे कि रास्ते में आपके मुरीद शेख अली को एक कर्ज देने वाले ने पकड लिया और कहा कि जब तक मेरा कर्ज अदा न करेगा, मैं तुम्हें नहीं छोडूंगा। आपने कर्ज वाले से अपने मुरीद के लिए मोहलत मांगी, मगर वह और भी सख्ती के साथ पेश आने लगा। आपको गुस्सा आ गया और आपने गुस्से में चादर मुबारक कांधे से उतार कर जमीन पर डाल दी, उसी वक्त चादर सोने-चांदी के सिक्कों से भर गयी। आपने फरमाया जिस कदर तेरा कर्ज है, इसमे से ले ले।
हजरत की वफात
हजरत ख्वाजा गरीब नवाज को अपनी वफात से पहले ही अपने इंतिकाल की खबर मिल गई थी और आपने अपनी वफात के बारे में अपने खलीफाओं को पहले ही से बता दिया था।
ृ हजरत ने अपनी वफात से पहले के कुछ दिन पहले हजरत ख्वाजा कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी रह. को खलीफा मुकरर्र फरमाया, इसके बाद उन्हें दिल्ली के लिए रूख्सत फरमा दिया।
5 रजब सन् 633 हि. की शाम को आप पर एक खास कैफियत पैदा हुई। इशा की नमाज के बाद ख्वाजा गरीब नवाज ने हुज्रे का दरवाजा बंद कर लिया और नौकरों को अंदर आने से मना कर दिया। नौकर तमाम रात दरवाजे पर पहरा देते रहे और कैफ व मस्ती की आवाजें सुनते रहे, लेकिन रात के आखिरी हिस्से में आवाज आनी रूक गई। इस तरह आप दुनिया का सफर पूरा करके अपने हकीकी रब से जा मिले।
इन्ना लिल्लाहि इन्ना इलैहि राजिऊन.
इस तरह आपकी वफात 96 साल की उम्र में इतवार के दिन 6 रजब हि. यानी 1236 ई. में हुई थी।
आप का रौजा-ए-अक्दस अजमेर शरीफ में है। हर वक्त रौजा-ए-अक्दस पर मेला लगा रहता है।
आपकी तालीमात
1. हजरत ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती अजमेरी संजरी रह. ने नमाज के बारे में फरमाया कि मैंने ख्वाजा उस्मान हारूनी रह. की जुबानी सुना है कि कयामत के दिन सबसे पहले नमाज का हिसाब नबियों, वलियों और हर मुसलमान से लिया जायेगा। जो हिसाब में पूरा नहीं उतरेगा, वह दोजख में डाल दिया जाएगा।
2. हंसी और खेल-कूद से परहेज के बारे में फरमाया है कि,एक बार प्यारे नबी सल्ल. ने कुछ आदमियों को देखा जो हंसी और खेलकूद में लगे हुए थे। प्यारे नबी सल्ल. ने ठहर कर सलाम किया तो सब गुलामों की तरह हाथ जोड कर खडे हो गए। आपने उनसे पूछा कि भाईयों! क्या तुम मौत से बेखटके हो? सबने एक साथ कहा, नहीं। पूछा पुल सिरात से गुजर चुके हो? अर्ज किया, नहीं। आपने फरमाया, फिर क्यों हंसी और खेल-कूद में लगे हो। आप की नसीहत ने उन पर ऐेसा असर किया कि इसके बाद किसी ने इनको हंसते हुए नहीं देखा।
3. नमाज के बारे में एक मौके पर और कहा था, नमाज एक अमानत है जो अल्लाह तआला ने बन्दों के सुपुर्द की, पस बंदे पर वाजिब है कि इस अमानत में किसी की खियानत न करें।
4. आपने यह भी फरमाया कि नमाज दीन का स्तून है। जब स्तून कायम होगा तो घर भी कायम होगा, जब स्तून निकल जाएगा तो छत फौरन गिर पडेगी, इसलिए नमाज पर पूरा ध्यान दो।
5. मां-बाप की फरमाबरदारी के बारे में फरमाया कि हदीस में है कि जो लडका मुहब्बत और एहतराम से मां-बाप का चेहरा देखता है, उसके नामा-ए-आमाल में एक हज का सवाब लिखा जाता है।
6. आपने अच्छी और बुरी सोहबत के बारे में इर्शाद फरमाया है कि हदीस शरीफ में आया है कि सोहबत का असर जरूर होता है। अगर कोई बुरा आदमी नेकी की सोहबत अपना ले तो उम्मीद है कि वह नेक हो जायेगा और नेक आदमी बुरों की सोहबत में बैठे तो बुरा हो जाएगा। क्योंकि जिस किसी ने भी जो कुछ हासिल किया है, वह सोहबत से हासिल किया है।
7. आपने फरमाया कि चार चीजें उम्दा मोती हैंः-
(क) एक वह दरवेश (संत) जो अपने आपको दौलतमंद जाहिर करे,
(ख) दूसरे वह भूखा, जो अपने आप का पेट भरा जाहिर करे,
(ग) तीसरे वह दुखी जो अपने को खुश जाहिर करे,
(घ) चैथे वह आदमी जिसे दुश्मन भी दोस्त दिखायी दे।
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