हजऱत ख़्वाजा नसीर उद्दीन महमूद चिराग़ देहली रह. अवध के रहने वाले थे। आप देहली में हजऱत ख़्वाजा निज़ाम उद्दीन औलिया रह. से बेत होने की गऱज़ से आए थे। हजऱत ख्वाजा निज़ाम उद्दीन औलिया रह. ने आपको अपने पास रखकर इल्म-ओ-मारफ़त की वो आला तालीम दी के आपका ज़ोहद-ओ-तक़वा दर्जा-ए-कमाल को पहुंच गया। आप पाबंदे शरीअत सूफ़ी बुज़ुर्ग थे मेहफिले समां नहीं सुनते थे। एक बुजुर्ग़ ने हरम शरीफ़ में किसी बुज़ुर्ग से बेत करने की दरख़्वास्त की उन्होंने फऱमाया बेत होना है तो देहली में ख्वाजा नसीर उद्दीन से बेत हो जाओ वो देहली का चिराग़ हैं।
उसके बाद देहली में सबकी ज़ुबान पर यही अलक़ाब था चिराग़े देहली। हजऱत निज़ाम उद्दीन औलिया रह. ने आपको खि़लाफ़त से नवाज़ा और अपना जांनशीन मुकर्रर किया। जो मुक़ाम हजऱत निज़ाम उद्दीन औलिया को हासिल था वही मुक़ाम ख़्वाजा नसीर उद्दीन चिराग़े देहली को हासिल था।
आपके मुरीद और ख़लीफ़ाओं की तादाद काफ़ी वसी है। बड़े-बड़े सूफी बुजुर्ग़ आपके ख़लीफ़ा हैं जो पूरे हिन्दोस्तान में फै़ले हुए हैंं। हजऱत बन्दा नवाज़ गेसू दराज़, मख़दमू जहानिया, मौलाना मोज वगेरह आप ही की सोहबते बबरकत से फैज़य़ाब हुए।