भोपाल का ताजमहल

0
889

(दूसरी किश्त)
बेगम शाहजहां के समय में राज परिवार की भीतरी कलह ने कुछ इस तरह तूल पकडा कि बेगम अपनी एकमात्र पुत्री एवं रियासत की उत्तराधिकारी नवाब सुल्तान जहां बेगम से नाराज होकर अपने महल को छोडने के लिये विवश हो गई थीं, इस कलह का मुख्य कारण यह था कि बेगम ने मई 1871 ई. में प्रथम पति की मृत्यु के बाद दूसरा विवाह रियासत के शिक्षा सचिव के पद पर आसीन प्रसिद्ध दार्शनिक सिद्दीक हसन खां से अपने प्रेम -संबंधों के कारण रचाया था। यद्यपि इस विवाह के प्रति शासकीय स्तर पर यही कहा गया की दूसरा विवाह करना पडा है। सुल्तान जहां बेगम ने अपनी माताश्री के दूसरा विवाह का घोर विरोध किया तो शाहजहां बेगम इस बात पर उतारू थीं कि सिद्दीक हसन खां के प्रति वही सम्मान प्रदर्शित करना चाहिए जो एक पुत्री का फर्ज होता है। किन्तु चहेती पुत्री ने यह स्वीकार नहीं किया तत्पश्चात् जवाब शाहजहां बेगम ने ब्रिटिश सरकार को लिखा कि मेरे पूर्व पति को जो सम्मान एवं पदवी दी गई थी वह सब सिद्दीक हसन को दी जाये। शाहजहां बेगम ने अपने पति को सम्मानित करने में कोई कसर नहीं छोडी फिर वह समय आता है जब उन्होंने नवाब सिद्दीक हसन खां को रियासत का सर्वभौम प्रशासक बना दिया यद्यपि सिद्दीक हसन खां नाममात्र के नवाब थे। अपनी पुत्री सुल्तान जहां बेगम से अलग रहने का निर्णय कर लिया और 1874 ई. में पुराने शहर भोपाल के बाहर 30 लाख रूपये की लागत से एक विशाल राजमहल बनवाया, जिसका नाम उन्हांेने ’’ताजमहल‘‘ रखा। संवत् 1884 ई. में बेगम ने ताजमहल के निर्माण कार्य के पूरा होने की खुशी में ’’जश्ने ताजमहल‘‘ के नाम से भव्य आयोजन किया जिसमें होलकर एवं सिंधिया राजे-महाराजाओं के अतिरिक्त तत्कालीन भारतीय वाइसराय लार्ड बे्रसफोर्ड तथा अनेक गणमान्य ब्रिटिश अधिकारियों को आमंत्रित किया गया था, विशेष बात यह थी कि जश्ने ताजमहल का ये भव्य आयोजन तीन वर्ष तक पूरी शानो शौकत से आयोजित किया गया था, ताजमहल के भव्य कमरों को उसके विभिन्न रंगों के अनुरूप फर्नीचर, कीमती कालीन तथा झाडफानूस से सजाया गया था, महल के भीतर विशाल क्षेत्र में सावन-भादों नामक बहुत ही आकर्षक सुन्दर बगीचा लगाया गया और ताजमहल के बाहरी झीलों का निर्माण कराया। लन्दन, बेल्जियम, पैरिस एवं जापान आदि से जश्ने ताजमहल के अवसर पर चीनी के बर्तन एवं कीमती साज-सज्जा की सामग्री आर्डर देकर बनवाई गई थी। विशेष बात यह थी कि जश्ने-ताजमहल में सम्मिलित अतिथियों में उपरोक्त बहुमूल्य बर्तन उपहार स्वरूप वितरित कर दिये गये। बेगम शाहजहां ने ताजमहल के पास अपने वफादार जागीरदारों और परिवारजनों को रहने के लिये शानदार भवन बनवायें और देखते ही देखती इस पूरे क्षेत्र ने जब एक मोहल्ले का रूप लिया तो इसका नाम ’’शाहजहांबाद‘‘ रखा गया।
जश्ने ताजमहल के इस रोमांचक समारोह में अक्सर शाहजहां बेगम उदास भी दिखाई देती थीं, इसका मुख्य कारण यह था कि उनकी एकमात्र प्रिय पुत्री सुल्तानजहां बेगम पूरे जश्न में एक भी अवसर पर सम्मिलित नहीं हुईं और न ही शाहजहां बेगम ने उन्हें आमंत्रित किया।
राष्ट्रीय आपात की घोषणा
’जब शाहजहां बेगम ताजमहल में रहने पहंंुची तो उनके साथ में नाती बिल्कीस जहां बेगम की ताज-महल में अपने साथ ही ले आई थीं। जिस कारण बिल्कीस जहां अपने माता-पिता से भी बिछड गईं थीं। एक दिन महल के बिचैलियों ने खबर उडाई कि बिल्कीस जहां गम्भीर रूप से बीमार हैं, तब सुल्तान जहां बेगम अपनी बेटी की बीमारी का हाल सुनकर बेकरार हो गईं। ब्रिटिश पोलिटिकल एजेंट के माध्यम से प्रयास शुरू किये गये कि बिल्कीस जहां कुछ दिन के लिये अपने माता-पिता के पास शौकत महल भेज दी जायें, शाहजहां बेगम ने सर्वप्रथम ब्रिटिश अधिकारियों को मश्वरा दिया कि वे राजघराने के निजी मामलों में न पडा करें, किन्तु सुल्तानजहां बेगम ने मध्यस्थता के लिये जब बार-बार ब्रिटिश सरकार को ही लिखा।
जब मजबूर होकर अंग्रेज अधिकारियों ने शाहजहां बेगम पर दबाव डाला और बिल्कीस जहां एक दिन के लिये ताजमहल से अपने माता-पिता से मिलने शौकत महल भेज दी गईं। सुल्तान जहां बेगम ने इस अवसर को हाथ से नहीं जाने दिया और बिल्कीस जहां को रोक लिया, जब आकह सूचना सरकार शाहजहां बेगम को दी गई तो उन्होंने राष्ट्रीय अपात की घोषणा कर दी। तत्काल मंत्रिपरिषद की बैठक बुलाई गई जो देर रात तक चलती रही। शाहजहां बेगम ने अपने रक्षामंत्री एवं सेनाध्यक्ष को हुक्म दिया कि जिस तरह से भी संभव हो सके बिल्कीसजहां को ताजमहल में मेरे पास ले आओ, यदि इसके लिये आवश्यक हो तो सेना का भी उपयोग करो।‘‘
इस घटना से ब्रिटिश पोलिटिकल एजेंट कर्नल एच. सी वार्ड को बडी दुविधा में डाल दिया था। इस पूरी घटनाक्रम की रपट कलकत्ता स्थित भारत के वाइसराय को भेजी गई। वाइसराय ने ब्रिटिश पालिटिकल एजेंट को निर्देश दिया कि वह इस संबंध में बेगम शाहजहां को सूचित करें कि वह अपनी इस जिद को त्याग दें, अन्यथा रियासत में गृहशुद्ध भडक सकता है और ब्रिटिश सेना को हस्तक्षेप करना पड सकता है जिसके परिणाम और भी अधिक गंभीर हो सकते हैं। यद्यपि ब्रिटिश शासन के निरन्तर दबाव को अनुभव करते हुए शाहजहां बेगम बाद में खामोश हो गईं थीं, किन्तु इस घटना ने मां-बेटी के संबंधों को सदैव के लिये बिगाड दिया था साथ ही ब्रिटिश सरकार से भी बेगम शाहजहां के संबंधों में कटुता बढी। कुछ दिन बाद रियासत के वकील ने शाहजहां को सूचित किया कि बिलकीसजहां बेगम बुरी तरह अस्वस्थ हैं, खबर मिलते ही बेगम ने अपने निजी चिकित्सकों को बिलकीसजहां को देखने भेजा, किन्तु दिन-प्रतिदिन बिलकीस जहां का स्वास्थ्य गिरता चला गया एक दिन जब उनकी माता सुल्तानजहां बेगम को डाक्टरों ने सूचित किया कि बिलकीसजहां किसी भी क्षण मृत्यु हो सकती है तो वे अपनी माताश्री शाहजहां बेगम को लिवाने ताजमहल पहुंची, उस समय शाहजहां बेगम अपने कक्ष में बिलकीसजहां के स्वास्थ्य लाभ के लिये दुआ कर रही थीं। सुल्तान जहां बेगम को अपने निकट देखकर बेगम शाहजहां कुछ न बोलीं सब कुछ मौन सुनती रही और कुछ कहे बगैर वहां से उठकर दूसरे कमरे में चली गईं। इस घटना के दो दिन बाद शाहजहां बेगम को जब अपनी प्रिय नाती बिलकीस जहां की मृत्यु का समाचार दिया गया तो वे बुरी तरह रो पडीं और आदेश लिखवाया कि बिलकीसजहां का अन्तिम संस्कार पूर्ण शासकीय सम्मान के साथ किया जाये, तीन दिन के अवकाश की घोषणा की गई। क्रमशः