सन्ï 1800 में मोमिन खान का जन्म हुआ। उनका नाम मोमिन खान तथा मोमिन तखल्लुस था। उनके पिता का नाम हकीम खां कश्मीरी था। शाह अब्दुल कादिर से अरबी और फारसी की शिक्षा प्राप्त की और खानदानी पेशा हकीमी अख्तियार किया। वो बहुत बुद्घिमान व्यक्ति थे। उन्हें ज्योतिष शास्त्र में इतनी प्रवीणता प्राप्त थी कि बड़े से बड़े ज्योतिषी उनका लोहा मानते थे। 1852 में 52 वर्ष की आयु में छत से गिर कर इंतकाल हुआ।
मोमिन को शायरी से स्वभाविक लगाव था। शाह नसीर के शिष्य हुए और प्रचलित शायरी विद्या मसलन गजल, कसीदा, रूबाई, वास्वखत, तरकीब बंद, बरजीह बंद, मसनवी आदि में अपनी तेज जेहन के जौहर दिखाए। मगर इनका खास मैदान गजल था। इस विद्या में उन्होंने कुछ ऐसी बारीकियां पैदा कीं जो उन्हीं का हिस्सा थीं। विषय वस्तु के अनुसार उनकी गजल हुस्न और इश्क के दायरे में आती है लेकिन हुस्न की नजा़कतों और इश्क की स्थितियों को मोमिन ने बहुत ही सीधे-सादे ढंग में बयान किया है। मामलाबंदी, माअनी आफरीनी, न$जाकते ख्याल और नुदरत बयान में वो किसी समाकलिक गजल कहने वाले से पीछे नहीं। फारसी तरकीबों और शब्दों की उलट-फेर से कहीं कहीं पेचीदगी और उलझन का अहसास जरूर होता है लेकिन ऐसे अशआर भी खुशगवार तज्जुस और हर्ष मिश्रित विस्मय का अहसास दिलाते हैं। – सैफ मलिक
मोमिन की रचनाएं
वो जो हम में तुम में करार1 था तुम्हें याद हो कि न याद हो।
वही यानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो॥
वो जो लुत्फ2 मुझमें थे पेशतर3 वो करम4 कि था मेरे हाल पर।
मुझे सब है याद जरा-जरा तुम्हें याद हो कि न याद हो॥
वो नये गिले5 वो शिकायतें वो मजे – मजे की हिकायतें 6।
वो हर इक बात पे रूठना तुम्हें याद हो कि न याद हो॥
कोई बात ऐसी अगर हुई कि तुम्हारे जी को बुरी लगी।
तो बयां7 से पहले ही भूलना तुम्हें याद हो कि न याद हो॥
जिसे आप गिनते थे आशना8 जिसे आप कहते थे बावफा10 ।
मैं वहीं हूं मोमिने मुब्तिला तुम्हें याद हो कि न याद हो॥
शब्दार्थ:- 1. अनुबंध, 2. आनंद, मेहरबानी, 3. पहले, 4. कृपा, 5. शिकायतें, शिकवे, 6. कहानियां, 7. वर्णन, कहना,
8. परिचित, 9. वफादार।
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असर उसको जरा नहीं होता।
रंज राहत-फजा1 नहीं होता॥
तुम हमारे किसी तरह न हुए।
वरना दुनिया में क्या नहीं होता॥
नारसाई2 से दम रूके तो रूके।
मैं किसी से खफा नहीं होता॥
तुम मिरे पास होते हो गोया।
जब कोई दूसरा नहीं होता॥
हाले-दिल यार को लिखूं क्यों कर।
हाथ दिल से जुदा नहीं होता॥
क्यों सुने अर्जे़-मुज़्तरिब3 ऐ मोमिन।
सनम आ$िखर खुदा नहीं होता॥
शब्दार्थ :- 1. सुखवर्धक, 2. जो पहुंच न सके, 3. बैचेन अर्ज।