अविस्मरणीय अमरनाथ यात्रा

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स्वर्ग को करीब से देखना और अमरनाथ यात्रा करना मानो एक जैसा ही है।
कई वर्षों से इच्छा थी कि अमरनाथ यात्रा करूं किन्तु हो ही नहीं पा रही थी। अन्दर ही अन्दर मनाती रहती थी कि हे भगवान एक बार जीवन का यह सपना पूरा कर दे। और भगवान ने सुन ली और उनका बुलावा आ गया। पेपर उठा कर देखा ‘रजिस्टे्रशन फॉर अमरनाथ यात्राÓ बस फिर क्या था मैंने बेटे को तुरन्त भेजा और अपना रजिस्ट्रेशन करवा लिया फिर मेडिकल भी हुआ और साथ ही टिकिट भी बुक करवा लिये। 24 जुलाई हमें यात्रा की तारीख भी मिल गई। मेरे सपनों को मानों पंख लग गये हों। यात्रा की तैयारियां शुरू कर दीं। 17 अगस्त को भोपाल से यात्रा के लिये पहला जत्था रवाना होना था। हम भी उनके साथ ही निकल गये।
न भूलने वाली बात यह हुई कि हमारा आगे के लिये कोई बन्दोबस्त नहीं था। हमें रास्ते में एक टूर मैंनेजर मिला जो कि 15 लोगों को अमरनाथ यात्रा के लिये ले जा रहा था उसे तीन लोगों की आवश्यकता थी क्योंकि उसकी आगे की व्यवस्था 18 लोगों की थी और किस्मत से हम भी तीन ही थे मैं मेरे पति और बेटा बस! हमें भी उन्हीं के साथ-साथ सुविधायें मिलती चली गर्इं और हम लोग बहुत आराम से ‘बालटालÓ पहुंच गये। जम्मू से कश्मीर का रास्ता भी बहुत अच्छे से भजन कीर्तन गाते निकल गया। मेरा बेटा सभी वरिष्ठï नागरिकों का श्रवण कुमार बना हुआ था। किसी को सहारा देना, किसी को पानी देना सभी उसे बुलाते थे।
इस यात्रा के दौरान जो सबसे अविस्मरणीय बात थी वह यह कि हम जिन लोगों के साथ थे वह सभी हेलीकाप्टर से जाने वाले थे और हम इस व्यवस्था से गये भी नहीं थे लेकिन वहां का मौसम और वहां की दो घटनायें ऐसी हुईं कि उसे सुन कर मेरी पैदल जाने की हिम्मत लगभग टूट सी गई पति को ब्लडप्रेशर था अब क्या करें?
मेरे बेटे ने कहा कि मम्मी आप दोनों हेलीकाप्टर से चलो मैं फिर कभी यात्रा कर लूंगा। बालटाल में एटीएम भी नहीं था पूरे 20,000 की $जरूरत थी अन्यथा राम भरोसे। हमारी यह सारी बातें पास में बैठे एक एक मिस्टर मलिक सुन रहे थे, जिनकी की हनी ने रास्ते भर बहुत सेवा की थी, एकदम से बोले हनी नहीं जायेगा तो हम लोग भी नहीं जायेंगे। सुन कर सभी साथी भी बोल उठे कि नहीं ऐसा नहीं होगा हम इस बच्चे को छोड़ कर नहीं जायेंगे।
उन्होंने हनी से पूछा बेटा क्या समस्या है, वो कुछ बोल नहीं पाया तो मैं ही बोली मलिक साहब हम लोग इतने पैसे कैश लेकर नहीं आये हैं और यहां एटीएम भी नहीं है। वो अचानक ही उठे और हनी को बाहर बुलाया बोले बेटे यह लो 20,000 और करवाले टिकिट बुक। भोले नाथ की कृपा देखिये कि हमारी उनसे न जान न पहचान केवल दो दिन का साथ और इतना विश्वास, है न न भुलाने वाली बात।
बस अब तो मानो पंख लग गये हों मेरा बेटा टूर मैनेजर के साथ रात 2 बजे से लाइन में लग गया और सुबह तक हमें टिकिट मिल गई। और मैं उड़ चली बर्फानी बाबा के पास। बहुत ही पास उतारा था हमें हेलीकाप्टर ने। इतना भव्य न$जारा विशाल गुफा टिपटिप करता पानी, अद्ïभुत था वह दृश्य जिसे मैंने अपने आंखों में, दिल में, दिमा$ग में, हमेशा के लिये कै़द कर लिया। और भगवान शंकर भोले नाथ के दर्शनों के बाद अब हमारी वापसी यात्रा शुरू हुई।
गुफा के बाहर ही खाने-पीने की नि:शुल्क व्यवस्था थी। लेकिन हमें वापसी का हेलीकाप्टर टिकिट नहीं मिला क्योंकि मौसम खराब हो गया था और फ्लाईट स्थगित हो गई थी। हार कर हमने भोजन के पश्चात्ï पैदल ही जाने का निश्चय किया। किन्तु वह कोई आसान रास्ता नहीं था। चार किमी की बर्फानी पैदल यात्रा थी जो कि मैं तो एक किलोमीटर भी नहीं चल सकी। बार-बार फिसल रही थी और गिर रही थी। मेरी यह हालत देख कर बेटे ने पोनी (टट्ïटू) की व्यवस्था की और हम तीनों ने घोड़े कर लिये। बर्फानी रास्ता समाप्त हुआ तो बारिश शुरू हो गई और रास्ता भी इतना संकरा कि डर के मारे हाल खराब था उसी रास्ते से पालकी, पैदल, घोड़े सभी का आना और जाना वहीं से था। बहुत ही कठिन डगर थी।
मैं रास्ते भर ईश्वर से मनाती रही कि भगवान एक बार ठीकठाक नीचे पहुंचा दे। रास्ते भर घोड़े को प्यार करती रही। एक तरफ ह$जारों फिट गहरी खाई दूसरे तरफ ऊंचे-ऊंचे पहाड़। जैसे तैसे वो रास्ता पार किया और रात 9 बजे हम लोग वापस नीचे आ गये। भगवन का लाख-लाख शुक्र अदा किया। ऐसे लगा जैसे दूसरा जन्म पाया हो। हम लोगों की तबियत भी खराब हो गई थी। हमारा वापसी में सोनमर्ग काश्मीर में रूकने का कार्यक्रम था। लेकिन वह सब स्थगित किया और उसी टूर वालों के साथ वापसी भी कर ली। अब उन सब का तो रि$जर्वेशन था और हमने टिकिट कैंसिल करवा कर तत्काल में व्यवस्था करवाई। इन सब बातों की व्यवस्था भी हनी ने की, जो कि बहुत मुश्किल काम था लेकिन ईश्वर की कृपा से सभी कुछ ठीक होता चला गया और हम लोग आराम से भोपाल पहुंच गये। ईश्वर को लाख-लाख धन्यवाद दिया जिनकी कृपा से और हनी के सहयोग से हम लोग यह यात्रा कर पाये। – सुनीता तनेजा