इंदौर का महान क्रांतिकारी सआदत खां

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हिन्दोस्तान की आजादी के लिए हंसते-हंसते फांसी पर झूलने वाले या तोपों के आगे अपना सीना कर देने वालों को इतिहास कभी नहीं भूल सकता। हिन्दोस्तान के बहादुर मुसलमानों ने जहां-तहां अंग्रेजों से मोर्चा लिया और अपनी जानें कुर्बान कर दीं।
मध्यप्रदेश के इंदौर शहर के रेसीडेंसी परिसर में विशाल बरगद का पेड आज भी इस बात की मूक गवाही दे रहा है कि उसकी शाखाओं पर अंग्रेजों द्वारा भारत के क्रांतिकारी पुत्रों को फांसी पर लटकाया गया।
शहीद सेनानियों की याद में पेड के नीचे बस एक चबूतरा बना हुआ हैं। जहां यदा-कदा रेसीडेंसी कोठी में ठहरने वाले नेता याद दिलाने पर नमन कर लेते हैं। चबूतरे पर साफ-साफ लिखा हुआ है कि वहां पर एक महान क्रांतिवीर सआदत खां को फांसी दी गई थी।
बुधवार एक जुलाई 1857 को रेसीडेंसी में सआदत खां यह कह रहा था कि महाराजा होल्कर का हुक्म है अंग्रेजों को मारने के लिए तैयार हो जाओ। तभी सदर बाजार मोहल्लों में जबरदस्त हडकम्प मच उठा, पूरे शहर में शोरगुल फैल गया। और जब डयूरंड ने रेसीडेंसी कोठी के दरवाजे पर आकर शोर गुल का कारण जानना चाहा तो जवाब में होल्कर तोपखाने ने गोले बरसाने शुरू कर दिये। इस अचानक हुए हमले से डयूरेंट अपने परिवार सहित रेसीडेंसी छोडकर भाग गया। क्रांतिकारियों ने रेसीडेंसी पर अधिकार कर खजाना लूट लिया और अंंग्रेजों के बंगले जला दिये।
इस घटना से उत्साहित होकर सआदत खां अपने तीन हजार क्रांतिकारियों सहित और 6 तोपों को लेकर ग्वालियर पहुंच गया। चूंकि उस समय सिंधिया अंग्रेजों के पक्ष में थे इसलिए तात्या टोपे की सहायता से यहां भी सिंधिया के विरूद्ध प्रशासन कायम करना पडा। ग्वालियर में ही सआदत खां ने अपने जांबाज साथियों के साथ मिल कर एक शिविर भी लगाया। गिरफ्तारी की आशंका से सआदत खां अपने वेश बदल कर रहने लगा। उधर सआदत खां की खोज में अंग्रेज परेशान हो गये और उन्होंने इंदौर में इस पर इनाम तक घोषित कर दिया और उसके मकान पर पहरेदारी लगवा दी।
क्रांतिकारी सआदत खां को भी भूमिगत हुए 17 वर्ष बीत गये, परंतु अंग्रेज उसके खौफ से उभर नहीं पाए थे और सआदत खां को अपनी गिरफ्तारी की आशंका बनी हुई थी। सन 1874 में उसके खिलाफ मुखबिरी कर दी गयी। जिससे सआदत खां को तुरंत गिरफ्तार कर इंदौर लाया गया।
इतने वर्ष बाद सआदत खां को पहचानना बडा मुश्किल काम था। परंतु 1857में कोठी पर लगे तलवार के घाव के निशान के आधार पर उसे पहचान लिया गया। अंग्रेजों ने सआदत खां पर देशद्रोह और हत्या का मुकदमा चलाया और अंततः इस क्रांतिवीर को सात सितम्बर 1874 को फांसी दे दी गयी। 0 रईसा मलिक