जंगे आजादी के यह मुस्लिम योद्धा

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(५किश्त)
सैयद हसन इमाम
31 अगस्त 1871 को पटना जिले के नोवड़ा गांव में सैयद हसन इमाम पैदा हुए। आप आला तालीम के लिये विलायत गये। इंडियन सोसाईटरी जिसके सदर दादा भाई नौरोजी थे, सैयद हसन इमाम उसके सेक्रटरी थे।
1892 में आप बैरिस्टरी पास करके हिन्दुस्तान वापस लौटे। 1910 में कलकत्ता हाई कोटज़् के जज मुकरज़्र हुए। 1917 में आपने बिहार स्टेट होमरूल कांफ्रेंस की सदारत की। 1918 में बम्बई कांग्रेस के खुसूसी इजलास (विशेष अधिवेशन) के सदर चुने गये। आप अंग्रेजों से मुल्क को आज़ाद कराना चाहते थे। एक मौके पर आपने तकऱीर करते हुए आपने कहा कि ÓÓजहां हमें एक तरफ सियासी गुलामी से निजात पाने की कोशिश करनी चाहिए, वहीं दूसरी जानिब समाजी गुलामी के खिलाफ लड़ाई लडऩा है।” 1920 में सत्याग्रह के हल्फनामें पर सबसे पहले आपने दस्तख़त किया। 1933 में आपका इंतक़ाल हुआ।
हकीम अज़मल खां
1921 में जबकि हिन्दुस्तान के तैंतीस करोड़ हिन्दू और मुसलमान कांधे से कांधा मिलाकर गांधी जी की कय़ादत में कांग्रेस के परचम तले आज़ादी की शानदार लड़ाई लड़ रहे थे। उस वक्त दिसम्बर 1921 में अहमदाबाद के तारीखी कांग्रेस इजलास की सदारत करने का एजाज़ हकीम अजमल खां को मिला। आप 1865 में एक ऐसे मशहूर यूनानी हकीम के घर में पैदा हुए जिसकी शोहरत हिन्दुस्तान ही नहीं बल्कि शाम और मि ितक थी।
हकीम अज़मल खां ने युनानी तिब्ब के अलावा फारसी, अरबी, कुरआन, हदीस इस्लामी फलसफा, फिजिक्स, कैमिस्ट्री, इस्लामी कानून, इल्मे नुजूम और अंग्रेजी में महारत हासिल की। आपने मुख्तलिफ मुल्को की लाइब्रेरियों में जाकर इल्में तिब्ब का मुतालेआ। किया। आपके मतब में सैकड़ों मदज़् औरतें मरीज दिखाई देते थे। जलियांवाला बाग के अलमनाक वाकये ने आपको मुल्क की आज़ादी की लड़ाई में शामिल होने को मजबूर कर दिया। आप कांग्रेस के सदर भी बनाये गये। 1922 गांधी जी की गिरफ्तारी पर आपने एक बयान में कहा था हिन्दुस्तान के रहने वाले मुसलमान, ईसाई, पारसी, सिख और दूसरे मज़हबों के लोग जब तक फिऱकेवाराना हमाहंगी और यकज़हती के रंग में मुल्क के सभी बाशिन्दे रंग न जायेंगे जब तक मादरे वतन और हिन्दुस्तान के बाशिन्दों की मोहब्बत का सैलाब लोगों के दिलों को न भर देेगा और जब तक हम अपने दिलों और दिमाग़ो को फिरकापरस्ती, नफरत, जलन, हसद और मौक़ापरस्ती से पाक न कर लेंगे। तब तक आज़ादी हम से दूर भागती रहेगी। आपने अपनी अक्ल व दानिश और हिकमत से कई बार हिन्दू-मुस्लिम फसाद होने से रोका। 8 दिसम्बर 1928 को आपका इन्तेकाल हो गया।
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
1920 में गांधी जी ने मुल्क को नाफरमानी तहरीक अदम तशद्दुद और सत्याग्रह का रास्ता दिखाया तो जिन लोगों ने आगे बढ़कर गांधी जी का साथ देकर मुल्क की आज़ादी का बीड़ा उठाया। उनमें मौलाना मोहम्मद अली जौहर और उनके बड़े भाई मौलाना शौकत अली का आला मुकाम है। 1921 में जब गांधी जी पूरे मुल्क का दौरा कर रहे थे तब दोनों भाई गांधी जी के दाये बायें बाजू की तरह साथ चलते थे। दोनों भाई अली बिरादरान के नाम से मशहूर थे।0 रामपुर रियासत के एक दौलतमंद खानदान से 1878 को मौलाना मोहम्मद अली जौहर का जन्म हुआ। आपने आक्सफोडज़् से 1902 में ग्रेजुएशन किया। हिन्दुस्तान वापसी पर रियासत रामपुर के मोहकमा तालीम के आला ओहदे पर तकरूज़्र हुआ। 1911 में कलकत्ता से अंग्रेजी ज़बान में कामरेड नाम का अखबारा निकाला। यह अखबार अपनी हुब्बुल वतनी इस्लाम दोस्ती और गैर जानिबदारी के लिये पूरे हिन्दुस्तान में मशहूर हो गया। 1913 में उन्होंने दिल्ली से उदूज़् रोजऩामा हमददज़् की इशाअत शुरू की। आप चार साल तक जेल में बन्द रहे। आपने खिलाफत तहरीक में सरगमज़् हिस्सा लिया। खिलाफत कांफ्रेंस में जगत गुरू शंकराचायज़् भी शामिल हुए।
1923 में कोकोनाडा कांग्रेस की सदारत के लिये आपको चुना गया। पहली गोल मेज कान्फ्रेंस से लौटते हुए आपका गैर मुल्क में ही इन्तेकाल हो गया। आपने वहीं ऐलान किया था कि या तो हिन्दुस्तान को आज़ादी दो, वनाज़् में अब गुलाम देश में वापस नहीं जाऊंगा।
डाक्टर मुख्तार अहमद अंसारी
1927 में मद्रास में कांग्रेस के 42 वें इजलास में डाक्टर मुख्तार अहमद अंसारी सदर चुने गये। आप 25 दिसम्बर 1880 को गाज़ीपुर जिले के युसुफपुर गांव में पैदा हुए। आपके वालिद जमींदार थे। आपने मद्रास यूनीवसिज़्टी से मेडिकल ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। आपने एडम्बरा यूनीवसिज़्टी से एम.बी.बी.एस. किया और लन्दन यूनीवसिज़्टी से एम.आर.पी.सी.पी. की आला डिग्रियां हासिल कीं। वतन वापस होने पर आप कई राजा, महाराजा, नवाबों के फैमिली डाक्टर बन गये। माहत्मा गांधी, मोतीलाल नेहरू, श्रीमती कमला नेहरू और दूसरे बड़े-बड़े लीडरों का इलाज भी आपके सुपुदज़् था। तालिबे इल्मी के ज़माने से ही आपको मुल्क की आज़ादी की फिक्ऱ थी। वतन की गुलामी उनके दिल में कांटे की तरह चुभती थी। 1919 में रोलट एक्ट के खिलाफ गांधी जी के सत्याग्रह में उनका पूरा साथ दिया। सिविल नाफरमानी तहरीक में भी आपने सरगमीज़् से हिस्सा लिया। गया की खिलाफत कांफ्रेंस में आपने सदारत की। आप मुल्क में फिरकापरस्ती की आग बुझाने मे काफी कोशां रहे। 1923 में लाला लाजपत राय के साथ मिल कर डाक्टर अंसारी ने फिरकावाराना मुआहिदे का एक मुसव्विदा तैयार किया जो लाजपत- अंसारी पैक्ट के नाम से मशहूर हुआ। 10 मई 1936 को आपका इंतक़ाल हुआ।