कैसे हो सूरमा भोपाली

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लेखक श्री दुलारे जख्मी द्वारा लिखित लेख सूरमा भोपाली की चाौथी किश्त।

नवाब शाहजहां बेगम
नवाब शाहजहां बेगम, बड़े हौसले और बुलंद इरादों वाली शासिका थीं। उनके कार्यकाल में सबसे ज्यादा तरक्की के काम हुए हैं। बेगम ने अपने पिता जहांगीर मोहम्मद खान के कामों को बहुत तेजी से आगे बढ़ाया। वर्तमान में साधन सम्पन्न होने पर भी, हमारी सरकारें जिस सोच पर काम करने का सोच बनाती है, यह सोच 140 वर्ष पूर्व ही शाहजहां बेगम की सोच बन चुकी थी। इतिहास बताता है कि, 1868 में नवाब बनते ही शाहजहां बेगम ने हर तहसील में एक सरकारी अस्पताल खुलवा दिया था। औरतों के लिये बड़ा लेडी अस्पताल बनवाया था। उस समय की सबसे भयंकर महामारी, बीमारी चेचक हुआ करती थी। इससे निपटने के लिये भी चेचक के टीके लगाने का बेगम ने खास प्रबंध करवाया था। और जो बच्चे टीके लगवाते थे उन्हें प्रोत्साहित करने के लिये इनाम दिये जाते थे।
बेगम ने शिक्षा के लिये सुलेमानियां को हाई-स्कूल तक बढ़वाया था और अपने पिता के नाम पर जहांगीरिया स्कूल खोला। जिसमें आज भी शिक्षा जारी है। (मोती मस्जिद के पार्क वाले गेट से बांये हाथ पर मौजूद इस स्कूल को जहांगीरिया स्कूल कहते हैं) शाहजहां बेगम ने मदरसा बिलकीसिया कायम किया। कई प्रेस भी कायम किये। मुसाफिरों के ठहरने के लिये बहुत बड़ी धर्मशाला सराय सिकंदरी बनवाई। सिंचाई के लिये नहरें, पुल और सड़कें बनवाई। (वर्तमान में सराय सिकंदरी, रेलवे स्टेशन के पूर्वी हिस्से में है, इसमें अब सैकड़ों परिवार निवास करते हैं)
भोपाल में डाक व्यवस्था और जल आपूर्ति व्यवस्था करवाने का श्रेय भी शाहजहां बेगम को जाता है।
भोपाल में पहली बार इटारसी-भोपाल रेल लाईन का निर्माण भी अपने निजी पैसे से शाहजहां बेगम ने करवाया था, और 01 नवम्बर 1884 को रेल यातायात के लिये इसे चालू करवा दिया था।
शाहजहां बेगम ने भोपाल को तरक्की के रास्ते पर ले जाते हुये रोजगार उपलब्ध कराने को यहां कॉटन मिल खुलवाया था। इस कॉटन मिल में धागे की गिट्टिïयां मशीनों पर पुतलियों की तरह गोल घूमती थी, इसलिये इसे पुतलीघर भी कहते थे। (वर्तमान में शाहजहांनाबाद में इस्लामी दरवाजे के पास और मदरसा बोर्ड के आफिस के पीछे, जो कुतुबमीनार जैसी मीनार खड़ी हुई है, यह मीनार इस पुतलीघर की धुएं को बाहर निकालने वाली चिमनी है।)
शाहजहां बेगम को बुलंद और खुबसूरत इमारतें बनवाने का शौक था। उन्होंने बेन$जीर जिसमें अब रजिस्ट्रार ऑफिस लगता है, जैसी अनेक इमारतें बनवाईं थीं। लेकिन उनके सबसे बड़े कारनामों में भोपाल रेल लाईन, ताज-उल-मसाजिद और भोपाल का ताजमहल बनवाना है। ताज-उल-मसाजिद इस समय भोपाल शहर की शान है, पहचान है और ऐशिया की सबसे बड़ी मस्जिद कहलाती है। इस मस्जिद को वह पूरा बनते हुये नहीं देख पाई थी, क्योंकि 16 जून 1901 को लम्बी बीमारी के बाद उनका देहांत हो गया था। परंतु ताज महल का निर्माण उनकी विशेष देख-रेख में हुआ था। यह ताजमहल इस समय थाना शाहजहांनाबाद के पास से शुरू होता है और बावेअली तक इमारत बनी हुई है। वर्तमान में इसके मुख्य गेट के पास तीन मोहरें यानि मेहराबदार गेट बने हुये हैं जिसके ऊपर राजस्व रिकॉर्ड का ऑफिस है यह इस समय जर्जर हालत में है और शासन ने इसका पुन: जीर्णोद्घार शुरू कर दिया है। शाहजहां बेगम ने अपनी लंदन यात्रा के दौरान लंदन में भी एक मस्जिद बनवाई थी जो कि लंदन की पहली मस्जिद है। शाहजहां बेगम ऐसे कई कारनामों की वजह से जानी जाती हैं, इसके अलावा वह एक नेक दिल इंसान थीं, उन्होंने अपने शासनकाल में हिन्दू प्रजा की मदद के लिये एक अलग विभाग कायम किया था, इसका नाम औकाफ एहले हुनूद था। इस विभाग से हिन्दू गरीबों के लिये महाना (मासिक) वजीफा, पेंशन और मदद दी जाती थी। इस काम के लिये हिन्दू अफसरों को मुकर्रर किया हुआ था। ताजमहल के सामने रोज दो मन अनाज गरीबों में बांटा जाता था, बाहर से आने वाले मुसाफिरों के लिये सदा बख्त खोली गई थी। जिसमें ऐसे हिन्दू फकीर जो किसी के हाथ का खाना नहीं खाते थे, उन्हें सूखा अनाज व आटा दिया जाता था।
शाहजहां बेगम की शादी सन्ï 1854 में बाकी मोहम्मद खां उर्फ उमराव दूल्हा के साथ हुई थी। उस समय उमराव दुल्हा के नाम से एक बहुत बड़ा बाग कायम किया गया था, जो कि ऐशबाग के न$जदीक था। वर्तमान में ऐशबाग में स्टेडियम बन गया है, और बा$ग उमराव दूल्हा में बहुत बड़ी बस्ती कायम हो गई है। ऐशबा$ग और बा$ग उमराव दूल्हा में अब एक या दो बावडिय़ां और कुछ अवशेष ही पुरानी यादों के शेष रह गये हैं।
दुर्भाग्य से विवाह के 11 वर्ष बाद ही सन्ï 1867 में उमराव दूल्हा का इंतकाल हो गया। जिसके 04 वर्ष बाद शाहजहां बेगम ने सिद्दीक हसन खां से निकाह कर लिया। सिद्दीक हसन साहब का म$कबरा वहीं है जो भोपाल टॉकीज चौराहे पर बैरसिया रोड के कोने पर बना है, जो कि अतिक्रमण में छुप कर गायब हो गया था और जिसे तत्कालीन मंत्री श्री बाबूलाल गौर ने अतिक्रमण हटाकर आजाद करवाया था। यह मकबरा सफेद संगेमरमर से बना है और नक्काशीदार जालियों से घिरा हुआ है। शाहजहां बेगम को सिद्दीक हसन से कोई औलाद नहीं हुई थी। इसलिये उनके इंतकाल के बाद पहले शौहर बाकी मोहम्मद खां उर्फ उमरावदूल्हा और शाहजहां बेगम की पुत्री सुल्तान जहां बेगम को नवाब बनाया गया था।
नवाब सुल्तान जहां बेगम
सुल्तानजहां बेगम ने सन्ï 1919 में शिक्षा को अनिवार्य कर दिया। तकनीकी शिक्षा का प्रबन्ध किया। मदरसा, तव, आसिफिया स्थापित किया, जिसमें यूनानी इलाज के साथ-साथ सर्जरी की शिक्षा भी दी जाती थी। सुल्तानजहां ने सबसे ज्यादा रूची लड़कियों के स्कूल खोलने में दिखाई। बिलकिसीया सुल्तानियां सुलेमानियां स्थापित किये, भोपाल में छोटे तालाब का निर्माण भी सुल्तान जहां बेगम के $जमाने में हुआ। उनके दीवान छोटे खां ने बुधवारा और जहांगीराबाद के बीच पुल पुख्ता का निर्माण करवाया था। इस पुल ने जहांगीराबाद को भोपाल शहर से जोड़ दिया था। भोपाल में ट्रेफिक नियमों को लागू करने का श्रेय भी नवाब सुल्तान जहां बेगम को जाता है। उन्होंने सन्ï 1916 में पहली बार ट्रेफिक नियम लागू किया। इससे पहले लोग सड़क पर दायीं तरफ चलते थे। इनकी हुकूमत का इतिहास तो इस छोटे से लेख में मुश्किल है। इसलिाए आगे चलते हैं।
सुल्तान जहां बेगम के तीन बेटे थे। नसरूल्ला खां, ओबेदुल्ला खां और हामिद उल्ला खां। सुल्तान जहां बेगम ने अपने जीवनकाल में हमीद उल्ला खां को सत्ता सौंप दी थी और भोपाल का नवाब बना दिया था।