लेखक श्री दुलारे जख्मी द्वारा लिखित लेख सूरमा भोपाली की पंाचवी किश्त।
नवाब हमीद उल्ला खां (1926-49)
हमीद उल्ला खां ने सन्ï 1926 से 1949 तक बखूबी शासन चलाया। नवाब साहब की हुकूमत में सन्ï 1931 में कालीपरेड पर भोपाल का पहला हवाई अड्डïा बनाया गया था। वर्तमान में यहां यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री है।
सन्ï 1941 में बैरागढ़ हवाई अड्डïा बनाया गया था। नवाबी दौर में एक वर्ष में 52 छुट्टिïयां होती थीं। जिसमें तीस मुसलमानों को और बाईस हिन्दू त्यौहारों पर दी जाती थीं। रक्षाबन्धन पर तो विशेष तौर से दो छुट्टिïयां दी जाती थीं। नवाब भोपाल का भी बड़ा सुनहरी इतिहास है। परन्तु किताब में लेख को जगह कम मिलने के कारण विस्तार में न जाते हुए संक्षिप्त में सिर्फ इतना कहना चाहता हूँ कि हज पर जाने वाले यात्रियों को, यहां कुऱाअन्दा$जी से जो वहां मुफ्त में रूबाते आवंटित होती है वो भोपाल के नवाबों का ही कारनामा है।
राजधानी बना भोपाल
खेर- सन्ï 1947 में भारत आजाद हो गया और सन्ï 1949 को भोपाल भी आजाद भारत का हिस्सा बन गया। मध्यप्रदेश का हृदय स्थल होने का, ओर भोपाल का गौरवपूर्ण इतिहास होने के कारण इसे मध्यप्रदेश की राजधानी बनाया गया। इस तरह एक बार फिर भोपाल सत्ता का केंद्र बन गया। सत्ता का केंद्र बनने के अलावा भी भोपालवासियों को गर्व करने के कई कारण मिले, जैसे भारत की अंतरिम सरकार के पहले प्रधानमंत्री और क्रांतिकारी बरकतउल्ला भोपाली का भोपाल में जन्म लेना, पूर्व उपराष्टï्रपति माननीय हिदायत उल्ला जी का भोपाली होना और पूर्व राष्टï्रपति माननीय स्व. श्री शंकरदयाल शर्मा जी का भोपाली होना गर्व के कारणों में शामिल है। हमें इस पर भी गर्व करना चाहिए, क्योंकि भोपाल की बड़ी झील विश्व में शहर के अंदर से जाने वाली पांच झीलों में से एक है। और भोपाल ही ऐसा शहर है जिसके आसपास दो हैरिटेज स्थल हैं।
तो मियां नवाबी इतिहास तो बहुत हो गया। अब चलते हैं इस लेख के समापन की तरफ तो सुनिये देश आज़ाद हो गया। भोपाल पहले स्टेटबना और फिर स्टेट से मध्यप्रदेश की राजधानी बन गया। यहां विधानसभा, वल्लभ भवन और कानूनी इमारतें तामीर होने लगीं। बीएचईएल और एचईजी जैसे कारखानों का जाल फैल गया। भोपाल में देश के हर प्रांत से लोग आना शुरू हो गये। अब भोपाल आधुनिक भोपाल में तब्दील होना शुरू हुआ और बड़े शहरों की तरह यहां भी बदलाव की हवा बहने लगी।
पहले भोपाल में खासतौर पर उर्दू, हिन्दी के अलावा कुछ तादाद थी लोगों की, जो अंग्रेजी भी बोला करते थे। परन्तु जैसे-जैसे लोग यहां आते गये यहां सिंधी, पंजाबी, बंगाली, बिहारी, मद्रासी और मराठी सहित अनेक भाषाओं का आदान-प्रदान होने लगा। अनेक भाषा-भाषी लोगों से मेरा भोपाल महकने लगा।
आगे क्या लिखंू, देखो भैया मैं राज ठाकरे तो हूँ नहीं जो भाषा के नाम पर अपने देश के लोगों पर प्रहार करूं। मैं तो भैया सीधा-साधा भोपाली हूँ। और भारत के शांतिदूत आरिफ बेग साहब का चेला हूँ। हमारी तंज़ीम का तो यह नारा है, हम सबका मालिक एक, हम सबके बाबा एक, हम सबकी माटी एक। इसलिए फिर कहूंगा कि सभी प्रांतों के सभी समाजों के सतरंगे फूल मेरे भोपाल के गुलदस्ते में सज गये और अनेक भाषाओं की मीठी बयार से मेरा भोपाल महकने लगा।
जैसा कि पहले भी लिख चुका हूँ कि एक हजार साल से सत्ता का केंद्र रहे भोपाल को खुदा ने ऐसी खूबसूरती अता की है कि हर आने वाले को यह अपनी तरफ आकर्षित कर लेती है। जो भी यहां आता है बस यहीं का होकर रह जाता है। खुदा की दी हुई बेपनाह खूबसूरती तो आने वालों का मन मोह लेती है। बल्कि यहां के मु$कामी लोगों में सभी को अपना बना लेने की खासियत आने वालों को यहीं का हो जाने को मजबूर कर देती है।
इस शहर में अनेक प्रांतों से लोग आये और भोपाल वासियों ने पलकें बिछाकर उनका स्वागत किया और आने वाले भी खुले दिलों की मोहब्बतें पाकर यहीं बस गये बल्कि यूं कहें कि यहीं के रंग में पूरी तरह रंग गये। इसका सबसे सुखद पहलू यह है, कि अब वह लोग भी अपने को भोपाली कहने में गर्व महसूस करते हैं। अंत में इस लेख को पढऩे वाले और भोपाल से मोहब्बत करने वाले सभी हिन्दू मुसलमानों से पुराने और नये भोपालियों से मेरी गु$जारिश है कि भोपाल मोहबबत का गहवारा है, ये देश आपका है, भोपाल आपका है इससे मुहब्बत करों इसके लिए कुछ करो।
अब आप से बिदा लेते वक्त इस लेख के मूल टाइटल पर आता हूँ। अपना संदेश अगर ठेठ भोपाली में कहूं तो ऐसे कहूंगा।
अरे खां पान खा लो………., कि जाने कॉ कॉ से आ जाते हैं।
और कि जाने किया किया लिखते फिरते हैं।
जाओ मियां, खां म खां बख़्त $खराब मत करो।
अरे सूरमा भोपालियों, ……….भोपाल के लिए भी कुछ लिखो, कुछ करों। भोपाल के ऐतिहासिक कि़ले और इमारतें तो त$करीबन बर्बाद हो चुके हैं।
अरे भैया, ……….मैं तो केरिया हूँ। ………. अपने हाथों में कलम उठालो और कम से कम अपनी भाषा, अपने इतिहास और अपने कल्चर की हिफ$ा$जत कर लो। ………. फिर सीना तान कर कहो-
मियां ………. अपना नाम भी सूरमा भोपाली ………. ऐसैई नई है।