उम्र की रहगुजर पर चलते सालहा साल बीते गये, अतीत का कोई $जर्द पत्ता सरसराता हुआ जब मेरे सामने आ गिरता है तब एक अजीब सी सिहरन मेरे तन-बदन में झुरझुरी भर देती है। य$कीनन मेरा रिश्ता आज उन शहरों से तो नहीं है लेकिन मेरी आंखें आज भी उन परछाईयों का पीछा करती रहती है तब यादों के दरीचों से कुछ जुगनुओं सा झिलमिल करता दिखाई देता है और फिर मैं डूबता-उतराता बेशुमार यादों की लहरों में गहरे उतर जाता हूँ।
मेरा जीवन मुसलसल संघर्षों का सहयात्री रहा है, मेरे जुझारूपन ने ही मुझे आगे बढ़ाया। मैंने सदैव अपनी आंखों में सम्भावनाओं का हिलोरे मारता हुआ समंदर देखा है और इसलिए जहन में हमेशा सृजन की लालसा बिजलियों की तरह चमकती रही है। इसी कल्पनाशीलता ने मुझे रेडियो में पहचान दी। बचपन में अपने बड़े भाई उर्दू के मशहूर अदीब जनाब शाहमीर राही की उंगली पकड़कर आकाशवाणी भोपाल जाया करता था। रेडियो का तिलिस्म तभी से मेरा हमसफर बना और 1964 ने मैंने रेडियो में पहली बार नाटक में भाग लेने के लिए स्वर परीक्षण दिया। चूंकि मैं स्कूल में नाटकों में अभिनय किया करता था, इसलिए शायद रेडियो नाटक की स्वर परीक्षा में पास हो गया। बीए कर रहा था और रेडियो के नाटकों में विभिन्न पात्रों का अभिनय भी करता रहा। समय बीतता रहा। जाने-अनजाने एक दिन मेरी आवा$ज और मेरे अभिनय की प्रशंसा रेडियो में होने लगी और इस तरह रेडियों का मैं मान्य ‘एÓ श्रेणी का कलाकार बन गया।
1966 की बात है अचानक एक दिन घर सन्देश आया कि दिल्ली से नाटकों के अखिल भारतीय कार्यक्रमों के प्रोड्ïयूसर श्री चिरंजीत आये हैं और मुझे बुलाया गया है। नाटकों के अखिल भारतीय कार्यक्रम में एक घंटे का नाटक भोपाल केंद्र पर तैयार होना था, जिसे देश के सभी केंद्र रिले करेंगे। नाटक प्रसिद्घ लेखक शंकर शेष का लिखा हुआ था। ‘मझली मांÓ यह नाटक भगवान श्री राम की सौतेली माता केकैयी के जीवन पर आधारित था और मुझे इस नाटक में मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम के अभिनय के लिए चुना गया। लक्ष्मण के अभिनय के लिए वर्तमान में फिल्मों में अपनी पहचान बना चुके अमिताभ बच्चन के साढू श्री राजीव वर्मा का चयन किया गया था। लक्ष्मण का चरित्र थोड़ा नटखटपन लिये था तथा भगवान राम का जो चरित्र मुझे करना था, वह तो शालीन एवं विराट मर्यादा के साथ करना था।
जब ये नाटक पूरे देश मे प्रसारित किया तब इस अभिनय से ही मुझे पहली बार अखिल भारतीय पहचान मिली। मेरी आवा$ज की गम्भीरता और उसकी खनक के लिये मुझे पहचाना जाने लगा।
रेडियो उद्ïघोषक के रूप में मेरी पहली पदस्थापना आकाशवाणी रायपुर में हुई थी। 1968 से 1971 तक तीन वर्षों से अधिक मैंने रायपुर केंद्र पर काम किया। मेरे साथ केशरीप्रसाद वाजपेयी (बरसाती भैया), श्री किशन गंगेले, बिप्रत बोस और वी.पी. साहू (बिसाहू भैया) कार्य करते थे। उन दिनों रेडियो रायपुर में इन सभी लोगों का जादू सिर चढ़कर बोल रहा था। जब मैं नया-नया रायपुर केंद्र पर पहुंचा तब मेरा परिचय सिर्फ मेरी आवा$ज थी। सभी ने मुझे पसंद किया।
रेडियो की मैंने पूरे 37 वर्ष सेवा की। विभिन्न पदों पर रहा, नाटक कलाकार से रेडियो का जीवन आरंभ हुआ फिर उद्ïघोषक हुआ, समाचार वाचक बना, हिन्दी प्रोड्ïयूसर के लिए चयन हुआ फिर तब सहायक केंद्र निदेशक, निदेशक तथा वरिष्ठï निदेशक के पद पर कार्य करते हुए रायपुर केंद्र से मई 2003 में सेवानिवृत्त हुआ।
रेडियो मेरी नस-नस में समाया हुआ है, रेडियो मेरी सांसों में है, मेरे खून के हर कतरे में रेडियो की तरंगे हिलोरे लेती हैं। मेरा दिल, मेरी संवेदनाएं, मेरे जज़्बात, मेरे अहसासात में और मेरे मुख से निकलते हुए हर शब्द में हर तरफ रेडियो ही रेडियो न$जर आता है। रेडियो एक तिलिस्म है जि़ंदगी का, रेडियो तराना है इंसानी भावनाओं का, रेडियो अमीरी-गरीबी नहीं देखता, रेडियो झोपडिय़ों में है, खेतों में है, रेडियो हर सुनने वाले को अपनी आकर्षक बाहों में भर लेता है, उसे गुदगुदाता है, हंसाता है और अपनी सुरीली तरंगों से मोहित करता है। रेडियो हर आम आदमी से उसकी $िजंदगी की बातें करता है, रेडियो चुनौतियां स्वीकार करता है, रेडियो समरसता बिखेरता है, सद्ïभावनाएं अर्पित करता है, प्यार बांटता है, रेडियो नफरत नहीं बल्कि प्रेम का संदेश देता है, रेडियो अश£ीलता से नफरत करता है, रेडियो देश की अखंडता के लिए वचनबद्घ है और इसलिए रेडियो के लिए श्रोताओं के मन में बड़ा सम्मान है।
मेरे हम सफर रेडियो ने मुझे एक अलग भी पहचान दी। मैं उसका अहसानमंद हूँ क्योंकि मेरी पहचान ही मेरा वजूद है। विभिन्न पदों पर रहते हुए रेडियो पर मैंने सामाजिक संस्कारों को कभी नहीं छोड़ा। मैंने सदैव सामाजिक सौहाद्र्र और सद्ïभावना के कार्यक्रमों को तरजीह दी और इसलिए जब मैं कुछ दिनों के लिए रेडियो श्रीनगर में गया, तो राष्टï्रीय प्रेम से ओत-प्रोत ‘वादी की आवा$जÓ कार्यक्रम के प्रस्तुतिकरण के लिए मुझे बेपनाह सराहना मिली। मैं हमेशा ऐसी ही भावभूमि के लिए समर्पित रहा हूँ।
देश प्रेम और अपनी धरती के लिए ऐसा पवित्र प्रेम मैंने राजस्थान की धरती पर ही देखा वहां की हर माँ अपने बच्चे को पालने में सिखाती है, बेटा धरती न देना प्राण न्यौछावर कर देना ऐसी भावनाएं रेगिस्तान के कण-कण में बसती है। एक वर्ष बाद ही बीकानेर से मेरा स्थानांतरण राजस्थान की गुलाबी नगरी जयपुर केंद्र के लिए हो गया। जहां मैंने अपने जीवन का अमूल्य समय 14 वर्ष व्यतीत किए। जयपुर के रेडियो के कार्यक्रमों का और वहां के कलाकारों की उन दिनों पूरे देश में ख्याति थी। उन दिनों उर्स के दौरान की गई रिकार्डिंग राजस्थान तथा देश के अनेकों आकाशवाणी केंद्रों से रिले की जाती थी उर्दू सर्विस मुख्य रूप से रिले करता था। पाकिस्तान तथा अन्य पड़ोसी देशों के लोग भी खूब सुनते थे। उर्स की बड़ी ख्याति थी।
उर्स की कवरेज एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी होती है, कई मुल्कों में इसे रेडियो के जरिए सुना जाता है। भारत की आन है ख्वाजा, भारत की शान हैं ख्वाजा। इसलिए हर शब्द तौलकर बोलना पड़ता था, हर सांस को सुना जाता था। 14 वर्षों तक मैंने अजमेर उर्स की कवरेज की और हर लम्हा मैंने ख्वाजा गरीब नवाज की $िखदमत में बिताया। ये लम्हें मुझे आज भी खुशियों की शाहराह दिखाया करते हैं। अजमेर दरगाह की बेमिसाल मर्सरतों के साथ-साथ मैंने मथुरा और वृंदावन की पावन कृष्ण भूमि से आनंद की अनुभूति भी अर्जित की है। मैं जब मथुरा के द्वारकाधीश मंदिर से सीधे प्रसारण हेतु भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की कमेंट्री के लिए चयनित हुआ तब अचंभित तो था ही लेकिन खुश भी बहुत था। वहां के कार्यकाल के बाद मुझे खूब सराहना मिली, मुझे प्रशंसा का प्रसाद मिला और मथुरा के प्रबुद्घजनों ने मुझे रसखान का नाम दे दिया। मैं आज भी सोचता हूँ कि मैंने शायद रसखान के कृष्ण प्रेम से अभिभूत हो ये कार्य किया था। मुस्लिम कवियों के कृष्ण प्रेम ने मुझे शक्ति प्रदान की थी या शायद भारतीय संस्कृति के प्रति गहरी आस्था ने ही मुझे प्रसिद्घि के शिखर तक पहुंचाया था।
मैं अनवरत 37 वर्षों तक रेडियो के साथ जिया। मैंने इस बीच प्रसारण के सैंकड़ों प्रतिमान स्थापित किए। किसे भूलूं किसे याद करूं मैं, मेरी हालत शायद अब ऐसी ही हो गई है। यादों का तिलिस्म जहां खुशियां देता है वहीं वो कभी-कभी दिल को बेचैन भी कर जाता है और जी चाहता है कि मैं यहां हर लम्हे को निचोड़कर रख दूं।
आने वाली नस्लें तुम पर रश्क करेंगी ऐ लोगो,
उनको जब मालूम ये होगा, तुमने फिरा$ख को देखा था।
हां मुझे फख्र है कि मैंने रघुपति सहाय, फिराख गोरखपुरी को देखा ही नहीं बल्कि रेडियो के लिए उनसे इन्टरव्यू भी किया था। जिसकी एक प्रति उनकी खनकदार आवा$ज के साथ मेरे पास आज भी महूज है।
लम्हे मु_ïी में रखी रेत की मानिंद फिसलते जाते हैं। ऐसा शायद सभी के साथ होता होगा। एक संस्मरण है जो मेरे दिल में हलचल मचा रहा है। 1990 की बात है, मैं भोपाल आकशवाणी केंद्र पर सहायक केंद्र निदेशक था। यह तय हुआ कि मध्यप्रदेश विधानसभा का बजट सत्र सीधे विधानसभा परिसर से आकाशवाणी भोपाल द्वारा प्रसारित किया जाएगा, जिसे मध्यप्रदेश स्थित अन्य आकाशवाणी केंद्र भी रिले करेंगे। शायद विधानसभा के इतिहास में ऐसा पहली बार रहा था। मुझे इस प्रसारण की जिम्मेदारी दी गई और मुझे ही वहां से अपनी आवा$ज में आंखों देखा हाल भी प्रसारित करना था।
नियत समय पर विधानसभा अध्यक्ष अपनी आसंदी पर बैठ गये। मैंने लाइव उद्ïघोषणाएं आरंभ कर दीं। अपनी आवा$ज के द्वारा विधानसभा कक्ष के वातावरण का मैंने एक चित्र खींचना आरंभ कर दिया। बोल ही रहा था कि अचानक नीचे सभा भवन से शोर उठने लगा, देखा कि सत्तापक्ष और प्रतिपक्ष किसी बात पर आपस में झगड़ पड़े। बस फिर क्या था, तुरंत नीचे सभा भवन से माइक काट दिया गया। क्योंकि हमें विधानसभा की संवैधानिक मर्यादाओ का पालन करना था। अब सिर्फ मुझे ही बोलते रहना था। मैं लगातार बोलता रहा, नीचे सभा भवन में शोर थमने का नाम नहीं ले रहा था। मैंने मध्यप्रदेश के गौरव का वर्णन आरंभ कर दिया। भोपाल के प्राकृतिक वर्णन से लेकर मध्यप्रदेश विधानसभा के इतिहास का वर्णन, भोपाल की हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसालें, ‘भारत भवन की गरिमा पर अनवरत्ï बोले जा रहा था। मेरे लिए यह क्षण किसी परीक्षा से कम नहीं था। मैं इन क्षणों को जीवन में कभी नहीं भुला पाऊंगा। मैं लगातार 35 मिनट तक बोलता रहा तभी अचानक मेरे भाग्य ने साथ दिया, मैंने नीचे से अध्यक्ष महोदय की आवा$ज सुनी, वे बजट प्रस्तुत करने की आज्ञा दे रहे थे। मैंने तुरंत माइक्रोफोन का रू$ख उनकी तरफ मोड़ दिया और फिर बजट सत्र का प्रसारण आरंभ हो गया।
प्रसारण के बाद इस कार्यक्रम के लिए श्रोताओं के बहुत पत्र आए, क्योंकि विधानसभा के इतिहास में वहां की कार्यवाही का जीवंत प्रसारण पहली बार सार्वजनिक रूप से रेडियो से किया गया था। उन्हें क्या मालूम कि रेडियो के लोग किन-किन परिक्षाओं से गुजरते हैं। लेकिन आकाशवाणी भोपाल को इसका श्रेय देते हुए तत्कालीन विधानसभा के सचिव श्री अशोक चतुर्वेदी ने इस प्रसारण को इतिहास के रूप में मध्यप्रदेश विधानसभा में दर्ज कराया तथा उन्होंने अपने कई आलेखों में मेरे नाम के साथ इस वाक्ïये का उल्लेख भी किया है।
मैंने रेडियो में एक लंबा सफर तय किया है। मैं कृतज्ञ हूँ रेडियो का कि उसने मुझे नाम दिया एक पहचान दी। मैंने रेडियो के लम्बे कार्यकाल में कुछ ऐसे कार्यक्रमों का भी निर्माण किया है जो आज भी मेरे मानस पटल पर अंकित हैं। महाकवि कालीदास की कालजयी कृति ‘मेघदूतÓ का धारावाहिक संगीतमय प्रस्तुतिकरण जो आधे-आधे घंटे के 9 भागों में प्रसारित हुआ, जो मुझे आज भी भाव विभोर कर जाता है।
मैं अपने जीवन, कैरियर और मन से जुड़े इस तथ्य को भी रेखांकित करना चाहता हूं कि मैं मनसा, वाचा कर्मणा, सद्ïभाव, पारस्परिक सौहाद्र्र और राष्टï्रीय एकता के प्राय: सभी सूत्रों से जुड़ा रहा हूँ। अपने कैरियर के दौरान महावीर जी, नाथद्वारा उदयपुर, पुष्कर अजमेर, कैला देवी, करौली, भरतपुर का घना पक्षी विहार तथा बृज भूमि की सामाजिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों से जुड़ा रहा हूँ तथा रेडियो में उनके प्रस्तुतिकरण के लिए सदैव सक्रिय रहा हूँ। जन्मत: मुस्लिम होने के नाते इस्लामिक धर्म एवं दर्शन से मेरा जुड़ाव स्वाभाविक तौर पर है। ये दर्शन भी मूलत: सद्ïभाव का पै$गाम देता है। यही मेरा लक्ष्य रहा है, यही मेरी भारतीयता है और यही मेरा गौरव।
ध्वनि का संसार और आवा$ज का जादू मेरा हमेशा हम सफर रहा। मेरे रेडियो के श्रोता मेरी पहचान बने। मैं बोलता रहा और वे सुनते रहे।
अपनी आवा$ज मैं दुनियां को डुबो दूं लेकिन,
तुमसे मिलती हुई आवा$ज कहां से लाऊं।
– हसन खान
पूर्व निदेशक, आकाशवाणी रायपुर